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स्वास्थ्य विभाग में लाखों का घोटाला, विजिलेंस जांच की मांग

HARRY
26 Jun 2022 12:03 PM GMT
स्वास्थ्य विभाग में लाखों का घोटाला, विजिलेंस जांच की मांग
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भिवानी: हरियाणा के भिवानी में नगर परिषद में करोड़ों के घोटाले की गूंज अभी शांत भी नहीं हुई थी कि स्वास्थ्य विभाग में अब लाखों का घोटाला और उजागर हो गया है। विशेष बच्चों के हेल्थ चेकअप के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य विभाग ने अनुबंध आधार पर गाड़ियां हायर की थी, लेकिन इनमें अधिकतर गाड़ियां तो लगातार छह साल तक कागजों में ही दौड़ाई गई, जबकि रिकॉर्ड की खानापूर्ति के लिए ट्रैक्टर, ऑटो रिक्शा और स्कूटर व डॉक्टरों के निजी वाहनों के नंबर तक दर्ज कर फर्जी तरीके से लाखों का भुगतान कर डाला। इसकी पोल तब खुली जब एक पूर्व ईएमटी ने सीएम विंडो में मामले की शिकायत कर डाली।

शिकायत मिलने के बाद आनन-फानन में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने डिप्टी सीएमओ की अगुवाई में चार सदस्यीय चिकित्सकों की टीम से जांच कराई। जांच करने वाले स्वास्थ्य अधिकारियों ने भी घोटालेबाजों की करतूत देखकर दांतों तले उंगली दबाई।
क्योंकि कॉमर्शियल एसी वाहनों की जगह रिकार्ड में फर्जी तरीके से ट्रैक्टर, स्कूटर, ऑटो रिक्शा और निजी दुपहिया वाहनों के नंबर तक दर्ज किए गए थे। जांच में 2013 से 2019 तक हायर किए गए वाहनों में गड़बड़झाला सामने आया। इसके हिसाब से जांच अधिकारी खुद इसमें 80 लाख से करीब पांच करोड़ तक के फर्जीवाड़े की आशंका जता रहे हैं।
इस संबंध में भिवानी निवासी राज कुमार ने दिसंबर 2021 में सीएम विंडो में शिकायत दी थी। राजकुमार ने बताया कि उसने स्वास्थ्य विभाग में करीब साढ़े तीन साल तक रेफरल ट्रांसपोर्ट सिस्टम में बतौर ईएमटी कार्य किया था। उसने शिकायत में बताया कि 2013 से लेकर 2019 तक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत विशेष बच्चों की जांच के लिए चार सदस्यीय चिकित्सकों की टीमों को स्कूलों में जाकर बच्चों का हेल्थ चेकअप करना था।
इसमें एक चिकित्सक, एक फार्मासिस्ट, एक नर्स और एक चपरासी शामिल था। इस टीम के आने-जाने के लिए एसी कॉमर्शियल वाहनों को हॉयर किया गया था, लेकिन इसमें व्यापक स्तर पर फर्जीवाड़ा हुआ। जिसमें रेफरल ट्रांसपोर्ट सिस्टम के स्वास्थ्य अधिकारियों की मिलीभगत से लाखों रुपयों का फर्जी भुगतान भी किया गया।
उसने स्वास्थ्य विभाग से आरटीआई में सूचना भी मांगी थी, जिसमें स्कूल हेल्थ में हॉयर किए गए वाहनों की जगह ट्रैक्टर, स्कूटर, ऑटो रिक्शा और दुपहिया वाहनों के नंबर मिले, जिसकी पुष्टि खुद जांच अधिकारियों ने आरटीए कार्यालय के रिकार्ड अवलोकन के बाद कर दी।
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के मुताबिक जिन ट्रांसपोर्ट कंपनियों से ये वाहन हायर दर्शाये गए उनके कार्यालयों के पते भी फर्जी दर्शाये गए थे, जहां ऐसा कोई कार्यालय ही नहीं था। जबकि जिन ट्रांसपोर्ट कंपनियों के फर्जी बिल लगाए गए, उनमें न आयकर विभाग का कोई नंबर मिला, न सर्विस नंबर दर्शाया गया था। इस घोटाले की जांच करने वाले स्वास्थ्य अधिकारियों ने भी आरटीए कार्यालय से इन वाहनों के नंबरों की जांच की तो फर्जीवाड़े से पर्दा उठा।
विजिलेंस जांच की मांग, फर्जीवाड़े से खुलेंगी और नई परतें
शिकायतकर्ता राजकुमार ने बताया कि सीएम विंडो की जांच में स्वास्थ्य अधिकारियों ने खुद लाखों का घोटाला माना है, जिसके बाद अब इसकी विजिलेंस जांच की मांग है। वहीं इस फर्जीवाड़े की विजिलेंस जांच में कई नई परतें खुलेंगी और कई बड़े मगरमच्छ भी जांच की आंच में फंस जाएंगे। वे खुद स्वास्थ्य मंत्री से मुलाकात कर इस घोटाले से रूबरू कराकर जांच में दोषी पाए गए स्वास्थ्य अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और कानूनी कार्रवाई भी कराएंगे।
ऐसे हुआ गड़बड़झाला
स्कूल हेल्थ में टीम को बच्चों के चेकअप के लिए अस्पतालों से ले जाने और लाने के लिए हॉयर किए गए एसी वाहनों की व्यवस्था की गई थी। मगर ट्रैक्टर, स्कूटर और निजी दुपहिया वाहनों के नंबर रिकार्ड में दर्शाकर इनमें प्रति वाहन निर्धारित रेट से भुगतान के फर्जी बिल बनाए गए। ये बिल फर्जी ट्रेवलिंग एजेंसी के नाम बने और फिर इनमें से अधिकर वाहन तो सिर्फ कागजों में ही दर्शाये गए, जिनका स्कूल हेल्थ से कोई लेना देना तक नहीं था। ऐसा लगातार छह साल तक होता रहा।
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