सिख रेजिमेंट के नायक निरमल सिंह जौहलां को 25 सैनिकों की टुकड़ी के साथ कारगिल युद्ध मैदान में भेजा गया और देखते ही देखते उन्होंने 26 पाकिस्तानी घुसपैठियों को अकेले ही ढेर कर दिया था। उनकी इस बहादुरी के चर्चे आज भी सेना में किए जाते हैं।
कारगिल ऑपरेशन के दौरान नायक निरमल सिंह जौहलां पठानकोट में तैनात थे। सेना मुख्यालय से 8 रेजिमेंट के जवानों को कारगिल जाने का आदेश आया। रेजिमेंट से नायक निरमल सिंह के साथ 25 जवानों को कारगिल के लिए रवाना कर दिया गया। युद्ध के मैदान की पहाड़ी चोटियों पर पहुंचते ही नायक निरमल सिंह जौहलां और उनके साथी 25 जवानों ने दुश्मन का सफाया शुरू कर दिया।
दुश्मन के ट्रैप में फंस गई थी टुकड़ी
देखते ही देखते नायक निरमल सिंह और साथी जवानों ने 26 दुश्मनों की लाशें बिछा दीं। नायक निरमल सिंह अपनी टुकड़ी के साथ लगातार आगे चल रहे थे। अचानक दुश्मन की तरफ से गोलीबारी बंद हो गई लेकिन ये दुश्मन का ट्रैप था जिसमें निरमल और साथी जवान फंस गए। अचानक से दुश्मन की तरफ से जबरदस्त फायरिंग और बम फेंके जाने लगे। इस हमले में नायक निरमल सिंह और उनकी टुकड़ी के अधिकतर जवान शहीद हो गए।
शहादत के बाद मिला था सेना मेडल
भारत सरकार की तरफ से नायक निरमल सिंह जौहलां को उनकी बहादुरी के लिए शहादत के बाद सेना मेडल से नवाजा गया। जिला लुधियाना की तहसील रायकोट के गांव जौहलां में निरमल सिंह का जन्म 1970 में पिता अवतार सिंह और माता गुरचरण कौर के घर हुआ था। 10वीं पास करने के बाद निरमल सिंह भारतीय सेना की 8 सिख रेजिमेंट में भर्ती हो गए थे। 1994 में उनकी शादी जसविंदर कौर के साथ हुई। उनके घर एक बेटे ने जन्म लिया जिसका नाम दविंदर सिंह रखा गया। शहीद नायक निरमल सिंह जौहलां की याद में हर साल उनकी बरसी धूमधाम से मनाई जाती है। गांव के स्कूल और मुख्य सड़क का नाम शहीद निरमल सिंह जौहलां के नाम पर रखा गया है। गांव के पार्क में उनकी आदम कद प्रतिमा भी स्थापित की गई है।
सिपाही बलवंत सिंह: टाइगर हिल से 50 फुट दूर दुश्मन ने गोलियों से किया था छलनी
भारत-पाकिस्तान के बीच 3 मई से लेकर 26 जुलाई तक कारगिल की ऊंची चोटियों पर हुई जंग के दौरान शहीद होने वालों में एक थे गांव बड़ैच के सिपाही बलवंत सिंह। सिपाही बलवंत सिंह की मंगनी हो चुकी थी। मां अमरजीत कौर को बलवंत की शादी की बहुत जल्दी थी। बलवंत ने भी अगली छुट्टी पर शादी करने की सहमति दे दी थी। उन्होंने छुट्टी रद्द करवाते हुए कहा था कि दुश्मन को धूल चटाकर जल्द लौटेंगे और शादी करेंगे। मां अमरजीत कौर से किया वादा तो नहीं निभा पाए, लेकिन धरती मां से किया वादा निभा गए।
24 साल पहले देश की सेना ने कारगिल की जंग पर फतेह तो हासिल कर ली थी, लेकिन 527 से अधिक जांबाजों की शहादत दी थी। वहीं, 1300 से अधिक जख्मी हुए जिनमें से कइयों के शरीर के अंग कट गए और कई विकलांग हो गए। सिपाही बलवंत सिंह बड़ैच की गौरवमय गाथा गांव के बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। पिता हरजिंदर सिंह का दुलारा और माता अमरजीत कौर की कोख से जन्मे बलवंत सिंह ने 15 सितंबर 1999 की रात बलिदान दिया था। 15 सितंबर 1999 की रात 80 फुट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों को ढेर करते हुए सिपाही बलवंत सिंह अभी 20 से 30 फुट ऊपर पहुंचे थे कि दुश्मनों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया।