न्यूज़ क्रेडिट : अमर उजाला
हरियाणा | हिसार के अश्व अनुसंधान केंद्र की लैब में राजस्थान से जांच के लिए भेजे गए सैंपल पॉजिटिव मिले हैं। वैज्ञानिक इन नमूनों के आधार पर विश्लेषण में जुटे हैं। लंपी स्किन डिजीज यानी लंपी वायरस के कारण पशुओं के शरीर में गांठें बन जाती हैं।
देश के विभिन्न हिस्सों में गोवंश में फैली लंपी स्किन डिजीज यानी लंपी वायरस अब अन्य जानवरों में भी फैलने लगा है। कुछ दिन पहले भैंसों में बीमारी के लक्षण मिले थे। अब राजस्थान के घोड़ों व ऊंट के सैंपल जांच में पॉजिटिव मिले हैं। राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार के वैज्ञानिक इन नमूनों के आधार पर विश्लेषण में जुटे हैं।
लंपी पॉक्स (पशुओं का चेचक) बीमारी के केस सबसे पहले वर्ष 2019 में ओडिशा में मिले थे। मक्खी व मच्छरों से इस बीमारी के वायरस तेजी से एक से दूसरे पशु में पहुंचते हैं। इस साल गुजरात व राजस्थान समेत हरियाणा के पशुओं में इस बीमारी का प्रकोप ज्यादा है। हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र को इस बीमारी की रोकथाम के लिए टीके की खोज करने की जिम्मेदारी मिली थी।
केंद्र ने लंपी प्रोवैक आईएनडी नाम से वैक्सीन की खोज भी कर ली है, लेकिन इन सबके बीच चिंता वाली बात यह है कि इस बीमारी के वायरस अन्य पशुओं को भी संक्रमित करने लगे हैं। हिसार के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में राजस्थान से भेजे गए घोड़े व ऊंटों के कुछ नमूनों में लंपी पॉक्स वायरस की पुष्टि हुई है। केंद्र निदेशक डॉ. यशपाल ने बताया कि रैंडम आधार पर लिए गए ऊंट व घोंड़ों के कुछ नमूनों में वायरस मिले हैं, जिनका गहनता से जांच की जा रही है।
यह है लंपी वायरस : लंपी स्किन डिजीज यानी लंपी वायरस के कारण पशुओं के शरीर में गांठें बन जाती हैं। इससे पशुओं को बुखार आता है और उनका वजन कम हो जाता है। पशुओं को सही समय पर उपचार न मिलने से उनकी मौत हो जाती है। यह वायरस मच्छरों, मक्खियों, जूं और पीसू से दूसरे पशु में जाता है।
परीक्षण के लिए लगाए जा रहे टीके
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन कुमार ने बताया कि लंपी प्रोवैक आईएनडी वैक्सीन की करीब डेढ़ लाख डोज को तीसरे चरण के परीक्षण के लिए तैयार किया गया है। हिसार समेत कई अन्य स्थानों की कुछ गोशालाओं में पशुओं को यह टीका लगाया जा रहा है। जिन गोशालाओं को टीके दिए जा रहे हैं, वहां के पशुओं का पूरा रिकॉर्ड लिया जा रहा है। अभी करीब तीन हजार पशुओं को टीका लगाकर उनका विवरण मंगाया है। टीके का शत प्रतिशत असर हो रहा है। टीकों के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति भारत सरकार के कृषि मंत्रालय से मिलती है। इसके लिए प्रक्रिया चल रही है।
भैंस अनुसंधान केंद्र में सभी पशुओं को लगा टीका
राष्ट्रीय भैंस अनुंसधान केंद्र हिसार के निदेशक डॉ. टीके दत्ता ने बताया कि एहतियात के तौर पर लगभग 500 भैंसों को टीका लगाया जा चुका है। भैंसों में भी गोवंश जैसे लक्षण ही मिल रहे हैं और उनका उपचार उसी तरह से होता है। इस बीमारी से बचाव के लिए पशुपालक सरकार की तरफ से जारी दिशा निर्देशों का पालन करें। मक्खी व मच्छरों पर नियंत्रण कर बीमारी का फैलाव रोका जा सकता है।
जिले में अभी तक लगाए जा चुके 2380 टीके
पशुपालन विभाग के उप निदेशक श्रीभगवान ने बताया कि अभी हिसार जिले में केवल गायों में ही इस बीमारी के लक्षण मिले हैं। जिले को 8300 टीके मिले हैं, जिसे राजस्थान बार्डर के नजदीक स्थित गोशालाओं में प्राथमिकता से भेजा गया है। बुधवार शाम तक 2380 टीके पशुओं को लगाए जा चुके हैं। वहीं, बीमार 15 पशुओं की हालत में भी सुधार आ रहा है। जिन पशुओं में बीमारी के लक्षण मिलें तो उसे तत्काल आइसोलेट कर लक्षण के आधार पर उपचार शुरू कराना है। पशुपालकों से अपील है कि बीमार पशुओं की सूचना नजदीक के पशु अस्पताल पर जरूर दें, जिससे बीमारी के उपचार व रोकथाम की प्रक्रिया शुरू की जा सके।