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गांवों में सिलिकोसिस रोग व टीबी के मरीज़ो की संख्या में हुई वृद्धि

Admin Delhi 1
1 Sep 2022 12:43 PM GMT
गांवों में सिलिकोसिस रोग व टीबी के मरीज़ो की संख्या में हुई वृद्धि
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नारनौल न्यूज़: नांगल चौधरी क्षेत्र के गांगोताना, धोलेड़ा, बखरीजा, खातोली, जैनपुर, बांयल आदि गांवों की सीमा में 100 से अधिक क्रेशर चल रहे हैं। अधिकतर क्रेशर निर्धारित मापदंडों पर खरे नहीं, उनकी डस्ट से ग्रामीणों की सांस अटकनी आरंभ हो गई। गांवों में सिलिकोसिस व टीबी के मरीज बढ़ने से लोग चिंतित हैं। परेशान ग्रामीण प्रशासनिक अधिकारियों के चक्कर लगा रहे है, लेकिन समाधान की प्रक्रिया केवल आश्वासनों तक सिमटी हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि क्रेशर व माइंस की मंजूरी देने से पहले जन सुनवाई हुई थी। जिसमें उपायुक्त समेत विभिन्न विभागों के आला अधिकारी मौजूद थे। उस दौरान प्रशासन को प्रदूषण व पानी की समस्या से अवगत करवाया गया था। जवाब में ग्रामीणों को आश्वासन दिया गया कि सभी क्रेशर संचालकों को प्रदूषण नियमों की पालना करनी होगी। साथ ही पत्थर पिसाई करते समय पानी का छिड़काव करना अनिवार्य रहेगा। विभाग द्वारा प्रत्येक क्रेशर व माइंस संचालक को पौधरोपण करने के निर्देश हैं।

जनसुनवाई के दौरान आबादी क्षेत्र के नजदीक हैवी ब्लास्टिंग नहीं करने का भरोसा दिया था, लेकिन क्रेशर संचालन की मंजूरी मिलते ही विभागीय मापदंडों को किनारे कर दिया गया है। हैवी ब्लास्टिंग के चलते मेघोत बींजा में 20 से अधिक मकान क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। जिसकी शिकायत उपायुक्त, माइंस विभाग, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड व अन्य सक्षम अधिकारियों को भेज दी गई। बावजूद कार्रवाई होना तो दूर की बात, अभी तक नुकसान का जायजा तक नहीं लिया गया। दूसरी ओर डस्ट उड़ने से धोलेड़ा, बिगोपुर, मेघोत, जैनपुर समेत करीब 15 गांवों में सिलिकोसिस, टीबी, आंख, गुर्दे, एलर्जी जैसी बीमारियां तेजी से पनप रही हैं। गर्मी के सीजन में लोगों को सांस लेने में भी परेशानी होती है। समाधान के लिए 20 गांवों की महापंचायत हो चुकी। प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन भी सौंप दिए हैं। ग्रामीणों ने सीएम व प्रधानमंत्री को पत्र भेजकर आरोपित क्रेशरों के खिलाफ कार्रवाई की गुहार लगाई है, लेकिन धरातल पर क्रेशरों पर मापदंडों की धज्जियां धड़ल्ले से उड़ रही हैं। जिससे परेशान लोगों ने पारदर्शी शासन प्रणाली पर सवाल खड़े करने आरंभ कर दिए हैं।

ओवरलोड डंपरों ने तोड़ी लिंक सड़कें: ग्रामीणों ने बताया कि डंपरों में 50-60 टन पत्थर ढोया जाता है। जबकी इनमें 20-25 टन माल लोड करने की क्षमता होती है। ओवरलोड के चलते ग्रामीण लिंक सड़कें जर्जर होने लगी हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि टोल टैक्स बचाने के लिए अधिकतर डंपर जैनपुर, धोलेड़ा व खातोली की सड़क का इस्तेमाल करते हैं।

क्रेशर संचालकों पर धमकाने के आरोप: मेघोत बींजा, धोलेड़ा व बिगोपुर के ग्रामीणों ने बताया कि डस्ट की समस्या को लेकर क्रेशर संचालकों से मिलने गए थे, लेकिन उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया। कहने लगे कि क्रेशर बंद होंगे तो राजनेता व अफसरों को भी नुकसान होगा। इसलिए शिकायतों का निपटारा कराना उनकी जिम्मेदारी है। यहां पानी की पहले ही किल्लत है, छिड़काव के लिए कहां से लेकर आएं। जवाब से मायूस ग्रामीण वापस घर लौट आए।

डस्ट से फेफड़े और लैंस खराब होने का खतरा: सीएचसी के एसएमओ डा. अशोक यादव ने बताया कि प्रदूषित वातावरण विशेषकर डस्ट से फेफड़े व लैंस को सर्वाधिक खतरा रहता है। सिलिकोसिस बीमारी होने पर पीडि़त का इलाज मुश्किल हो जाएगा। इसके अलावा क्रेशर जोन में डस्ट उड़ने से आंख, शारीरिक एलर्जी, दमा व अन्य बीमारियों का ग्राफ बढ़ा है।

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