हरयाणा न्यूज़: प्रदेशभर के पशुपालक इन दिनों पशुओं में चल रही लंपी बीमारी को लेकर बेहद चिंतित हैं। प्रदेश में अभी तक लगभग सात हजार से ऊपर पशु इसकी चपेट में आ चुके हैं। लेकिन कृषि एवं पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने पशु पालकों को अफवाहों में नहीं आने व एहतियात बरतने की अपील की है। उन्होंने कहा कि हम इस दिशा में पूरी गंभीरता के साथ काम कर रहे हैं। इस बार तीन दिन के मानसून सत्र के दौरान भी पशुओं में फैल रही लंपी बीमारी का मुद्दा कईं विपक्षी और सत्तापक्ष के विधायकों की ओर से उठाया था। सदन में भी सूबे के कृषि एवं पशुपालन मंत्री जेपी दलाल ने स्वीकार किया था कि राज्य के लगभग साढ़े छह हजार पशु इसकी चपेट में है, जिसको ध्यान में रखते हुए सरकार कईं कदम उठा रही है। कुल मिलाकर अब इनकी संख्या सात हजार तक पहुंच चुकी है।पशु पालक फिलहाल, खतरनाक बीमारी से अपने पशुओं को बचाने की दिशा में लगातार मुहिम चला रहे हैं।
पशु मेले और पैंठ पर लगी रोक: इस क्रम में पशुपालन विभाग के विशेषज्ञों ने भी फिल्हाल राज्यभर के अंदर सभी जिलों में लिखित निर्देश जारी करते हुए सभी तरह की पैंठ और पशु मेले पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है। सभी जिलों में विभाग के अधिकारियों के निर्देश दिए हैं कि ये भी सुनिश्चित किया जाए कि जब तक बीमारी पर पूरी तरह से नियंत्रण नहीं आती, तब तक पशुओं की बिक्री और खरीद नहीं करने के लिए पशुपालकों को भी इस बारे में आगाह किया जाए, ताकि बीमारी अन्य पशुओं में नहीं फैले। वहीं विशेषज्ञ बताते हैं कि यह बीमारी गुजरात से आई है। ये रोग पाकिस्तान के रास्ते अप्रैल महीने में भारत में रिपोर्ट हुआ है। बीमारी की शुरुआत अफ्रीका से बताई जा रही है। जो अब भारत व राज्यों में फैल रही है।
पंजाब, राजस्थान से सटे एरिया में ज्यादा खतरा: जानकारों का कहना है कि बीमारी का प्रकोप फिलहाल गुजरात और राजस्थान में ज्यादा है। वहीं पंजाब में भी निरंतर बीमारी के नए मामले रिपोर्ट किए जा रहे हैं। जिस कारण से पंजाब और राजस्थान से सटे हरियाणा के जिलों में विशेष नजर रखी जा रही है ताकि एहतियातन जरूरी कदम उठाए जा सकें। एक्सपर्ट्स ने ये भी बताया कि फिलहाल ज्यादा खतरा यमुनानगर,जींद, फतेहाबाद, सिरसा और कैथल जैसे जिलों में है। बीमारी भैंस में कम अर्थात एक से दो फीसदी ही बताई जा रही है।दूसरी तरफ गाय में ज्यादा फैलती है, 5 फीसद मृत्यु दर। य़हां पर यह भी बता दें कि उपरोक्त बीमारी की चपेट में भैंस कम आ रही हैं। बीमारी बड़े पैमाने पर गायों को चपेट में ले रही है। अनुमानित तौर पर बीमारी 40-50 गायों में से एक को होती है। वहीं बीमारी से होने वाली पशुओं की मृत्यु दर 2 से 5 फीसद तक बताई जा रही है। आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में कुल 71.26 लाख पशुधन है। इसमें से करीब 20 लाख गाय तो 43 लाख भैंस हैं।
दूध घटने की शिकायत ज्यादा: विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि बीमारी के चलते पशु खाना बेहद कम कर देता है और इसके चलते दुधारू पशु में दूध भी घटता है। इसमें पशु को तेज बुखार होता है। पशु के पूरे शरीर पर गांठ पड़ जाती है और ये बाद में कई बार फूट भी जाती है। बीमारी होने के अपंग होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसके अलावा पशु के बांझ होने और गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है। इसके अलावा पशु के मुंह से लार और आंख व कान से तरल बहता है। ये बता दें कि बीमारी होने पर सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इसके लक्षण सामने आने में करीब एक महीने का समय लग जाता है। वैसे, आंकड़ों पर गौर करें, तो कैथल जिले में अब तक कई पशुओं की जिंदगी समाप्त होने से पशुपालकों पर मानसिक और आर्थिक मार पड़ी है। कैथल के रसूलपुर गांव में पशुओं में बीमारी के मामले रिपोर्ट हुए हैं। ऐसे में आस पास के गांव में भी बीमारी के चलते पशुपालकों में डर है कि कहीं उनके पशु भी बीमारी की चपेट में ना आ जाएं। इसके अलावा आस पास के जिलों में भी पशुओं में बीमारी फैलने की आशंका है।
जिला स्तर पर टीम रख रही नजर: हरियाणा राज्य का पशुपालन विभाग से जुड़े उच्च अफसरों ने अधिकारियों ने जिला स्तर पर एसडीओ, डिप्टी डायरेक्टर समेत तमाम अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं कि अपने अपने जिले में हर संभव कदम उठाएं। इसके लिए एक्सपर्ट्स की टीम भी तैनात कर दी गई हैं। 5 अगस्त को इसको लेकर एक उच्च स्तरीय मीटिंग भी रखी गई जिसमें पशु एक्सपर्स्ट और वैज्ञानिक भी मौजूद रहे। इसके अलावा रायशुमारी कर निर्देश जारी किए हैं।
बीमारी की चपेट में आने पर ज्यादा तनाव नहीं लें: किसी पशु में बीमारी के लक्षण पाए जाते हैं., तो पशुपालक को ज्यादा परेशान होने और तनाव नहीं लें बल्किअन्य पशुओं से दूर रखें। ये बीमारी एक तरह का वायरल है और इससे घबराने की जरुरत नहीं है। पशु को बुखार का इंजेक्शन लगवाएं और काफी कुछ पशु की इम्युनिटी पर निर्भर करता है। बीमारी को देखते हुए पशु मेलों और पशुओं की पैंठ पर रोक लगा दी गई है। लक्षण पाए जाने पर पशु चिकित्सक से संपर्क करें। अगर कोई दुधारू पशु बीमारी की चपेट में आता है तो उसका दूध गर्म करके ही पीएं, अन्यथा परेशानी हो सकती है। संक्रमित पशु को अन्य पशुओं से दूर रखें, नहीं तो दूसरे पशुओं में भी बीमारी फैल सकती है। संक्रमित पशु को तालाब में ना लेकर जाएं।