हरियाणा

HC का फैसला, कोर्ट भले ही आरोप मुक्त कर दे, लेकिन विभागीय जांच में दोषी तो नहीं होगी नौकरी बहाल

Gulabi Jagat
3 July 2022 1:20 PM GMT
HC का फैसला, कोर्ट भले ही आरोप मुक्त कर दे, लेकिन विभागीय जांच में दोषी तो नहीं होगी नौकरी बहाल
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पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि आपराधिक और विभागीय कार्रवाई पूरी तरह से अलग हैं। दोनों अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते है व दोनों का अलग-अलग उद्देश्य हैं। कोर्ट भले ही आरोप मुक्त कर दे, लेकिन विभागीय जांच में दोषी साबित होने पर नौकरी बहाल नहीं होगी।
हाई कोर्ट के जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने एक एएसआइ को पद पर बहाल करने के एकल बेंच के आदेश को चुनौती देने वाली हरियाणा सरकार की अपील स्वीकार करते हुए यह आदेश जारी किया। इसी के साथ खंडपीठ ने एकल बेंच के आदेश को भी रद कर दिया।
रोहतक सीआइए स्टाफ में तैनात एक एएसआइ को वर्ष 2014 में सतर्कता ब्यूरो द्वारा रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद रोहतक के एसपी ने विभागीय जांच के बाद उसे 2015 में बर्खास्त कर दिया था। ट्रायल कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए एएसआइ को आरोप से मुक्त कर दिया।
इसके बाद एएसआइ ने सेवा बहाली के लिए पुलिस विभाग को आवेदन किया लेकिन उसकी मांग को खारिज कर दिया गया। इस पर एएसआइ ने हाई कोर्ट में याचिका दायर सेवा बहाल करने की मांग की। एकल बेंच ने उसकी याचिका स्वीकार करते हुए अक्टूबर 2019 में सरकार को आदेश दिया कि वह एएसआइ को बहाल करे व उसे दो महीने के भीतर सभी लाभ जारी करे।
इसके खिलाफ हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट की डिविजन बेंच में एकल बेंच के आदेश को रद करने की गुहार लगाई गई। सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि भले ही ट्रायल कोर्ट ने एएसआइ को दोषमुक्त कर दिया, लेकिन उस पर लगे गंभीर आरोप के चलते विभागीय जांच की गई।
अनुशासनात्मक कार्रवाई के चलते उसे नौकरी पर नहीं रखा जा सकता। सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि एकल बेंच ने तथ्यों को अनदेखा कर यह आदेश जारी किया है।
सरकार का पक्ष सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि न्यायिक कार्रवाई में ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी करने के बाद विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई से आरोपित बरी नहीं माना जा सकता।
खंडपीठ ने कहा कि साक्ष्य के नियम जो आपराधिक मुकदमे पर लागू होते हैं, कई बार साक्ष्य के अभाव में आरोपित बरी हो जाते हैं लेकिन विभागीय अनुशासनिक जांच के नियम अलग होते हैं।
कोर्ट ने कहा कि एक आपराधिक मामले में आरोपी का बरी होना नियोक्ता को अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के अधिकार के प्रयोग करने से नहीं रोकता। इसी के साथ हाई कोर्ट ने सरकार की अपील स्वीकार करते हुए एकल बेंच का आदेश रद कर दिया व आरोपित की नौकरी बहाली की मांग खारिज कर दी।
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