हरियाणा
हरियाणा: लंबे समय से है माफिया का सत्ता व अफसरशाही से गठजोड़, अवैध खनन की कड़वी सच्चाई
Kajal Dubey
21 July 2022 4:57 PM GMT

x
पढ़े पूरी खबर
चंडीगढ़। हरियाणा में अवैध खनन एक कड़वी सच्चाई की तरह है। राज्य में सत्ता, अफसरशाही और खनन माफिया का गठजोड़ काफी लंबे समय से चल रहा है। प्रदेश में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार हो, खनन माफिया के साथ यह गठजोड़ हमेशा मजबूत ही हुआ है। कोई मुख्यमंत्री यदि खनन माफिया और अफसरशाही के गठजोड़ को तोड़ना भी चाहे तो उसकी अपनी सरकार के मंत्री, सांसद और विधायक यह गठजोड़ टूटने नहीं देते। रही-सही कसर अफसरशाही पूरी कर देती है।
प्रदेश में किसी भी दल की सरकार हो, खनन माफिया के साथ उसका गठजोड़ हमेशा मजबूत हुआ
यह भी कड़वी सच्चाई है कि कई मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के राज्य के खनन माफिया के साथ व्यापारिक रिश्ते रहे हैं। पूरे पांच साल कमाकर देने वाले खनन माफिया के पैसे से ही सांसद और विधायक अगले चुनाव की तैयारी करते हैं।
राज्य के मंत्री, सांसद और विधायक अपनी ही सरकार पर दबाव बनाकर टूटने नहीं देते यह गठजोड़
खनन के हिसाब से हरियाणा चार जोन में बंटा हुआ है। उत्तर हरियाणा के यमुनानगर क्षेत्र में सबसे अधिक खनन होता है। खनन माफिया ने यहां यमुना नदी का सीना पूरी तरह से छलनी कर डाला है। यमुनानगर में न केवल हरियाणा बल्कि पंजाब और उत्तर प्रदेश का खनन माफिया भी यमुना से रात के अंधेरे में खनन करता है। सोनीपत क्षेत्र में नेता और अधिकारी खनन माफिया की जेब में हैं। भिवानी के डाडम में 300 फीट तक पहाड़ को काट डाला गया, लेकिन आज तक खनन माफिया के राजनीतिक संबंधों को उजागर करने की हिम्मत किसी सरकार ने नहीं जुटाई है। ऐसा किया गया तो राजनीतिक नुकसान संभव है।
हरियाणा के एनसीआर में खनन माफिया बहुत अधिक प्रभावशाली
एनसीआर के गुरुग्राम, फरीदाबाद, नूंह और बहादुरगढ़ इलाके में खनन माफिया बहुत अधिक प्रभावशाली है। राज्य का खनन विभाग हर बार अपने पास प्रशासनिक अमला नहीं होने की बात कहकर सरकार के सामने पल्ला झाड़कर खड़ा हो जाता है। थानों में तैनाती माफिया की पसंद से होती है।
कर्मियों की कमी भी बन रही बाधा
पिछले दिनों सरकार ने खनन विभाग को करीब डेढ़ दर्जन स्टाफ उपलब्ध कराया है, लेकिन पांच दर्जन से अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों की जरूरत अगले दस साल भी पूरी होती दिखाई नहीं दे रही है। नूंह में जिस तरह डीएसपी के ऊपर डंपर चढ़ाकर उसकी हत्या की गई है, उसी तरह से खनन माफिया का पूरा खौफ राज्य की थाने-चौकियों में कायम है। राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति के बिना खनन माफिया पर अंकुश सिर्फ सपने की बात है।
इसलिए आती है अवैध खनन कराने की नौबत
किसी भी व्यक्ति को घर बनाने के लिए रेत, बजरी, पत्थर, बालू, सीमेंट और सरिये की जरूरत होती है। अगर रेत, मौरंग, बदरपुर, गिट्टी या बोल्डर की राज्य में जितनी आवश्यकता या खपत है और उसी के परिमाण या अनुपात में आपूर्ति के दृष्टिकोण से खनन के पट्टे जारी किये जाएं तो अवैध खनन की नौबत नहीं आएगी, लेकिन ऐसा होता नहीं है। सरकार और अफसरशाही से खनन माफिया का जबरदस्त मेल-मिलाप है, जिसके आधार पर सरकार न तो भरपूर मात्रा में खनन के पट्टे जारी करती है और न ही खनन माफिया करने देता है।
खनन माफिया व उनका गठजोड़ खनन के पर्याप्त संख्या में पट्टे दिए जाने के खिलाफ सक्रिय
सामान्य परिस्थितियों में वैध खनन से प्राप्त निर्माण सामग्री अवैध खनन के मुकाबले बहुत सस्ती नहीं होती, लेकिन कोई भी अधिकारी, राजनेता और लोकल माफिया सिस्टम कभी नहीं चाहता कि खनन के पर्याप्त पट्टे दिए जाएं, अन्यथा इससे उनकी कमाई तो शून्य हो जाएगी। वैध खनन से राजस्व मिलता है, जो सरकारी खाते में जाता है और अवैध खनन से काली कमाई होती है जो माफिया की जेब में जाती है। इसलिए अवैध खनन सबके फायदे में है, सिर्फ आम व्यक्ति को छोड़कर। जिस दिन खनिज सामग्री की मांग के सापेक्ष खनन के पट्टे दिये जाने लगेंगे, उसी दिन से इस अवैध खनन का कारोबार कमजोर होगा।
ऐसे काम करता है खनन माफिया
भले ही खनन माफिया सुनकर मन में हथियारबंद लोगों से घिरे एक अंडरवर्ल्ड डान की तस्वीर सामने आती हो, लेकिन ऐसा नहीं है। यह माफिया दरअसल सरकार से कुछ जगह पर खनन की अनुमति लेता है, जो बहुत मामूली जगह की होती है और जिसे देने में सरकार को अधिक परेशानी भी नहीं आती। उस पर वह एक तय टैक्स भी चुकाता है, लेकिन बाद में वह एक बड़े इलाके में अतिक्रमण कर लेता है और मोटा मुनाफा कमाना शुरू कर देता है।
यही होता है खनन माफिया के काम का तरीका जो लगभग हर जगह एक जैसा ही होता है। यही वजह है कि जब भी खनन माफिया से जुड़ी कोई घटना सामने आती है तो यह आरोप लगता ही है कि उन्हें सत्ता और अधिकारियों का संरक्षण मिला है। इस आरोप में पूरी तरह से सच्चाई है।
अवैध खनन पर चली गई थी गोवा की कांग्रेस सरकार
अवैध खनन के मुद्दे पर ही एक बार गोवा में कांग्रेस चुनाव हार गई थी और भाजपा सत्ता में आई थी। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने विधानसभा में यह बात स्वीकार की थी कि सरकारी कोशिश के बावजूद गोवा में अवैध खनन जारी है। उन्होंने साफ कहा था कि इसमें खनन विभाग के अधिकारी भी शामिल हैं और राजनेताओं का हस्तक्षेप भी पूरा है।
अवैध खनन हर सरकार के गले की फांस बना
अवैध खनन हर सरकार के गले की फांस बन चुका है, जिससे कोई भी निजात नहीं दिला पा रहा है। देश में खनन का इतिहास करीब छह हजार साल पुराना है। आजादी के बाद देश के विकास में खनिजों की अहमियत समझ आई और सरकार ने इस ओर ध्यान देना शुरू किया। 1994 में कानूनों का संशोधन किया गया। साथ ही राज्य सरकारों को खनन के लिए पट्टे का अधिकार दिया गया। लेकिन तभी से इस अधिकार का दुरुपयोग हो रहा है। अवैध खनन के मामले में ही पंजाब की कांग्रेस सरकार पर जमकर सवाल उठाए गए थे।
Next Story