कारगिल युद्ध में लेखराम की शहादत के समय उनकी पत्नी दो माह की गर्भवती थी। बाद में वीरांगना कृष्णा देवी निवासी सोहला ने छोटे बेटे को जन्म दिया। बेटे के जन्म के समय ही वीरांगना ने ठान लिया था कि वह अपने बेटे को आर्मी में भेजेंगी। जब बेटा बड़ा हुआ तो वह उसे सेना के लिए प्रोत्साहित करती रहीं। उसे अपने पिता की कहानियों के बारे में बताती रहीं।
मां ने पिता की तरह बेटे को बनाया सैनिक
बेटे ने भी पिता शहीद लेखराम के कदम पर चलने का फैसला कर लिया। मात्र 20 साल की उम्र में वीरांगना का बेटा पिता की बटालियन अल्फा कंपनी, ग्रेनेडियर 18 में बतौर सिपाही के पद पर भर्ती हो गया। वर्तमान में बेटा पिथौरागढ़, काला पानी नामक स्थान पर चीन बॉर्डर पर देश सेवा कर रहा है। वहीं बड़ा बेटा कर्मपाल अपने गांव सोहला का सरपंच है।
पिता की वीरता की कहानी सुनकर बड़ा हुआ बेटा
वीरांगना कृष्णा देवी ने बताया कि 8 अप्रैल 1999 को उनके पति छुट्टी बिता कर ड्यूटी पर गए थे। घर से जाते समय उन्होंने जल्दी आने का वादा किया था, लेकिन 3 जुलाई 1999 को उनकी शहादत की खबर आई थी। जब उनका पार्थिव शव लाया गया तो वह पति को पहचान भी नहीं पा रही थीं। ऐसा लग रहा था कि उनका सारा संसार ही उजड़ गया हो।
शहादत के बाद देवर-जेठ ने पूरा सहयोग किया
बड़ा बेटा कर्मपाल मात्र आठ साल का, बड़ी बेटी पूनम 6 साल, छोटी बेटी मनीषा 2 साल की थी, जबकि छोटा बेटा दो माह का गर्भ में था। बाद में सरकार की ओर से उनको गैस एजेंसी का आवंटन किया गया। उनकी शहादत के बाद देवर-जेठ ने पूरा सहयोग किया। अब वह जीवन यापन कर रही हैं, लेकिन वह अपने पति को कभी भुला नहीं सकतीं, उन्हें वह हमेशा याद आते हैं।
पेट में अपवर्त्य स्प्लिंटर लगने से हुए शहीद
गांव सोहला निवासी हवलदार लेखराम ऑपरेशन विजय के दौरान बटालिक सेक्टर में 22 ग्रेनेडियर्स अल्फा कंपनी के फायर बेस एरिया में पुन: निर्माण व सहायता संगठन में हथियार व गोला बारूद पहुंचाने का हिस्सा थे। 3 जुलाई 1999 को सुबह 11:00 बजे घनाघस क्षेत्र में दुश्मनों की ओर से भारी गोलाबारी होने पर भी वह अपने साथियों को हथियार और गोला बारूद पहुंचाते रहे। इस दौरान उन्हें पेट में अपवर्त्य स्प्लिंटर लग गया। इससे वह वीरगति को प्राप्त हो गए थे।