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हरियाणा | सुप्रीम कोर्ट ने सावधि जमाओं के कथित दुरुपयोग के मामले में डीबीएस बैंक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को निरस्त कर दी.
अदालत ने कहा कि बैंक के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देना ‘न्याय का मखौल उड़ाना’ होगा. यह मामला लक्ष्मी विलास बैंक के नवंबर, 2020 में डीबीएस इंडिया के साथ विलय होने के पहले का है.
न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक कार्यवाही असल में लक्ष्मी विलास बैंक के चार अधिकारियों की हरकतों की देन है. उस समय इसका डीबीएस बैंक के साथ विलय भी नहीं हुआ था. पीठ ने कहा कि आपराधिक कानून के मुताबिक विलय के बावजूद संबंधित अधिकारियों की व्यक्तिगत जवाबदेही एवं जिम्मेदारी बरकरार रहती है.
न्यायालय ने कहा कि ऐसे में लक्ष्मी विलास बैंक के अधिकारियों की हरकतों के लिए डीबीएस के खिलाफ के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से न्याय का मखौल उड़ेगा. इसलिए डीबीएस के खिलाफ लंबित सभी तरह की आपराधिक कार्यवाही को निरस्त की जाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला डीबीएस की ओर से दायर अपील पर सुनाया है. डीबीएस ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें बैंक और अपने निदेशकों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही निरस्त करने से इनकार कर दिया गया था. यह मामला लक्ष्मी विलास बैंक के खिलाफ रेलिगेयर फिनवेस्ट लिमिटेड की ओर से दायर मुकदमे से संबंधित है. रेलिगेयर ने बैंक पर 791 करोड़ रुपये की अपनी जमाओं के कथित रूप से दुरुपयोग का आरोप लगाया था.
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