हरयाणा न्यूज़: कोरोना ने हमारी व्यवस्था पर चौतरफा मार की है। इससे न्यायपालिका भी अछूती नहीं रह पाई है। संक्रमण के डर से पहले छुट्टियां हो जाने और बाद में ऑनलाइन सुनवाई तो हुई, लेकिन केसों के फैसले आधे भी नहीं हो पाए और पेंडिंग केसों की तादात बढ़कर दो गुणा से भी ज्यादा हो गई। हालात यह रहे कि 2019 में जहां हरियाणा में हमारी अदालतों ने पांच लाख से ज्यादा केसों का निपटारा किया, वहीं 2020 में कोरोना के चलते यह संख्या घटकर महज दो लाख से कुछ ज्यादा रह गई। स्थिति यह थी कि चालू वर्ष 2022 में महज पांच माह में ही 2,52,944 केसों का निपटान हो गया। वहीं कोरोना के कारण 2020 के पूरे साल में यह संख्या केवल 2,29,402 रही। केवल इतना ही नहीं लोक अदालतें और फास्ट ट्रैक कोर्ट का कामकाज भी खासा प्रभावित हुआ। जिसके चलते अदालतों में लंबित केसों की संख्या दो गुणा से भी ज्यादा हो गई। अब केस निपटान के कार्य ने रफ्तार तो पकड़ी है, लेकिन जजों व अन्य स्टाफ की कमी कार्य में तेजी नहीं आने दे रही।
मामलों के निपटान पर फोकस: प्रदेश के 21 जिलों में करीब 418 जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में तेजी से सुनवाई के बावजूद अभी भी 13,63,549 मामले लंबित हैं। इनमें दीवानी 4,49,241 तथा फौजदारी के 9,14,308 केस फैाले का इंतजार कर रहे हैं। केवल जिला न्यायालयों में ही 12,030 सरकारी मामले अटके हुए हैं। लंबित केसों में दो लाख से ज्यादा तो पांच साल पुराने हैं। हालांकि इनमें दीवानी से दो गुना फौजदारी के हैं। दो जून को ही दस साल पुराने 1150 ऐसे मामले निपटान के लिए रजिस्टर्ड किये गए है, जिनमें 75 दीवानी और 1075 फौजदारी के शामिल हैं। पिछले दस साल पुराने 52 मामलों का निपटान भी किया गया है, जिसमें 24 दीवानी और 28 फौजदारी के हैं।
हाईकोर्ट में केसों के निपटान की रफ्तार तेज: पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में 4,49,120 लंबित मामलों का अंबार लगा हुआ है, जिसमें 2,83,796 दीवानी और 1,65,324 फौजदारी के शामिल हैं। यहां 28 फरवरी 22 तक 14,710 सरकारी मामले लंबित थे, जिसमें भारत संघ एक पक्षकार है। हाईकोर्ट ने भी लंबित मामलों के निपटान में तेजी लाने की दिशा में 10,94,540 दीवानी और 8,53,878 फौजदारी के मामलों समेत 19,48,418 का निपटारा दो जून 22 तक कर दिया है। इस साल 21 फरवरी तक हाई कोर्ट ने हरियाणा के 28901 लंबित मामलों का निपटारा किया, जिसमें 13190 दीवानी और 15711 मामले फौजदारी के शामिल हैं। गत अप्रैल में ही हाईकोर्ट में हरियाणा के पंजीकृत 10846 मामलों के विपरीत 11955 मामलों यानी 110.22 प्रतिशत तथा मार्च में 12,078 मामलों के विपरीत 13,289 यानी 110.02 प्रतिशत मामलों का निपटान किया है। इस साल अब तक हाईकोर्ट में डेढ़ हजार से ज्यादा याचिकाओं का भी निपटारा किया गया है।
लोक अदालतों की भूमिका रही अहम : प्रदेश में दिसंबर 2021 तक आयोजित 21 लोक अदालतों के आयोजन किया गया। इनमें से पिछले तीन साल में 74,661 मामलों का आपसी सुलह के तहत निपटारा किया गया। जबकि राज्य लोक अदालतों में पिछले ती साल में ही 2,75,136 लंबित मामले निपटाए गये, जिसमें साल 2021 में 92,174, 2020 में 48,453 तथा 2019 में 134509 मामलों का निपटान किया गया। साल 2020 में निपटान में 3627 मामले मुकदमे से पूर्व के शामिल रहे। इसी प्रकार इन तीन सालों में राष्ट्रीय लोक अदलतों में साल 2021 में 96,875 (26538 मुकदमे से पूर्व), साल 2020 में 17,392 (12906 मुकदमे से पूर्व) तथा 2019 में 62665(40633 मुकदमे से पूर्व) मामलों का निपटान किया गया।
प्रदेश का हो अलग हाईकोर्ट: अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में बढ़ने के कई कारण है। फिर भी प्रदेश में लंबित मामलों के जल्द से जल्द निपटान के लिए अदालतों में जजों की अधिक से अधिक नियुक्तियां होनी चाहिए। वहीं हरियाणा हाई कोर्ट की अलग से स्थापना होनी चाहिए। - लेखराज शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता, पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय
मध्यस्थता के विकल्प को मिले बढ़ावा: कोरोना की वजह से दो साल तक प्रभावित हरियाणा समेत देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ी। अदालतों में लंबित केसों के निपटाने की दिशा में अदालतों में चल रही जजों की कमी को पूरा करने और नियुक्तियां बढ़ाई जानी चाहिए। वहीं हाईकोर्ट की गाइडलाइन पर मध्यस्थता के लिए बनाई गई स्थायी लोक अदालतों को और भी ज्यादा बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
फास्ट ट्रैक कोर्ट भी प्रभावित: प्रदेश में बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों के मामलो के जल्द निपटान की दिशा में 16 स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट यानी त्वरित न्यायालय स्थापित हैं, इनमें 12 ई- स्पेशल पॉक्सो कोर्ट भी कार्यरत हैं। हरियाणा सरकार ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के तेजी से निपटान की दिशा में स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट पर भी सबसे पहले पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने काम शुरू करने की पहल की है। कोरोना के कारण फास्ट ट्रैक कोर्ट भी प्रभावित हुई है। यही कारण है कि पिछले पांच साल में लंबित 1.07 लाख मामलो में से केवल 30445 मामलों का निपटान किया जा चुका है। केंद्र सरकार ने फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिए पिछले तीन साल में 10.8 करोड़ रुपये भी जारी किये हैं, जिसमें से अभी तक 50 फीसदी राशि खर्च की गई है।
अदालतों में न्यायाधीशों की कमी: प्रदेश जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में स्वीकृत पदों के मुकाबले 295 जजों के पद खाली हैं। जबकि हरियाणा की अदालतों में जजों के 772 पद स्वीकृत हैं और कार्यरत केवल 477 हैं। यही स्थिति उच्च न्यायालय पंजाब एवं हरियाणा में भी हैं, जहां स्वीकृत 85 पदों के मुकाबले केवल 49 पद कार्यरत हैं यानी 36 पद अभी भी खाली हैं। हाईकोर्ट में 64 पीएमटी व 21 एडीडीएल के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से पीएमटी के 21 व एडीडीएल के 15 पद रिक्त हैं। हालांकि पिछले आठ सालों में हाईकोर्ट में 45 जजों की नियुक्तियां हुई, लेकिन उसी औसत से जज सेवानिवृत्त भी हुए हैं। हाईकोर्ट में 2018 में सात, 2019 में दस, 2020 में एक तथा 2021 में छह जजों की नियुक्ति हुई। इससे पहले 2017 में 8, 2016 में 01 तथा 2014 में 14 जजों की नियुक्तियां की गई।
लंबित मामलों का निपटान: जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों पिछले एक दशक में 43,45,824 मामलों का निपटान किया जा चुका है, जिसमें सिविल के 13,49,005 और फौजदारी के 29,96,819 मामले शामिल हैं। चालू वर्ष के दौरान पांच माह में 2,52,944 मामले निपटाए गए, जिसमें 1,94,016 फौजदारी के हैं। जबकि साल 2021 में 3,99,258 मामलों के निपटान में फौजदारी के 3,12,170 थे। कोरोना की मार के बीच वर्चुअल सुनवाई के बावजूद अदालतों ने फौजदारी के 1,76,214 मामलों समेत 2,29,402 मामलों का निपटान किया। इससे हरियाणा की अदालतों में साल 2019 में 5,29,403, साल 2018 में 5,48,580, साल 2017 में 5,14,776, साल 2016 में 5,31,058 तथा साल 2015 में 4,62,559 मामलों का निपटान किया है।
न्यायालयों का डिजिटलीकरण: हरियाणा में न्यायालयों के अभिलेखों का डिजिटलीकरण के लिए 14वें वित्त आयोग के अधीन 49 करोड़ रुपये की निधि जारी की गई है। 28 मार्च 2022 तक तक राज्य के 33.51 लाख पेज स्कैन करके उनका डिजिटलीकरण किया जा चुका है।