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मुख्यमंत्री की उड़नदस्ता टीम ने कस्टोडियन की 3 हजार गज ज़मीन बेचने का किया खुलासा, जानिए पूरी खबर

Admin Delhi 1
14 Aug 2022 10:55 AM GMT
मुख्यमंत्री की उड़नदस्ता टीम ने कस्टोडियन की 3 हजार गज ज़मीन बेचने का किया खुलासा, जानिए पूरी खबर
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सोनीपत क्राइम न्यूज़: मुख्यमंत्री उड़नदस्ता टीम ने शहर में कस्टोडियन की 3 हजार गज जमीन को बेचने के मामले से पर्दा उठाया है। जमीन की खरीद-फरोख्त में तहसीलदार व नगर निगम अधिकारियों के साथ भू-माफिया से गठजोड़ का भी पता लगा है। बेशकीमती कलेक्टर रेट की जमीन का कृषि भूमि दिखाकर काफी कम रेट पर रजिस्ट्री कर दी गई। इसमें सरकार को करीब 5 से 6 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। पहले इस जमीन की रजिस्ट्री कृषि योग्य भूमि बताकर की गई। फिर एक माह में अलग-अलग टुकड़ों में 10 रजिस्ट्री आवासीय क्षेत्र बताकर की गई और अब तीन रजिस्ट्री कमर्शियल (व्यावसायिक) क्षेत्र बताकर की जा चुकी हैं। लॉकडाउन में इस जमीन पर पुराना कब्जा दिखाकर कुछ लोगों ने अपने नाम सेल डीड कराई थी। इस पूरे मामले में खुलासे के बाद मुख्यमंत्री उड़नदस्ता की टीम ने तत्कालीन तहसीलदार, नायब तहसीलदार, गिरदावर, पटवारी, निगम के सहायक अभियंता समेत 11 को नामजद किया गया।

शहर में काफी जगह कस्टोडियन की जमीन है और यह जमीन अधिकतर ऐसी जगह पर है, जहां उसकी कीमत करोड़ों रुपये है। कस्टोडियन की जमीन की पूरी जिम्मेदारी तहसीलदार सेल्स के पास होती है, लेकिन यहां कस्टोडियन की जमीन की सेल डीड बनाकर प्राइवेट लोगों को बेच दी गई। रोहतक रोड पर बोस्टल जेल के सामने कस्टोडियन की 3 बीघा जमीन को लेकर तीन साल पहले सामने आया था कि वहां कलेक्टर रेट के हिसाब से 3 बीघा जमीन की कीमत लगभग 5.20 करोड़ रुपये होती है तो बाजार भाव के हिसाब से इतनी जमीन की कीमत करीब 17 करोड़ से अधिक है। तत्कालीन पटवारी राजेंद्र ने उस जमीन का मूल्यांकन कृषि भूमि बताकर इसका रेट 1.60 करोड़ बताया। साथ ही बाजारी रेट के रूप में कीमत 2.30 करोड़ रुपये में बनाई गई। बाद में वह सरकारी जमीन प्राइवेट लोगों के नाम हो गई है।

उस सेल डीड को यह कहकर बनाया गया है कि उस जमीन को जिन लोगों को दिया गया है, उनका जमीन पर काफी समय से कब्जा था। वहीं तहसीलदार सेल्स के प्रतिनिधि का दावा है कि उस जमीन का आवंटन कुछ लोगों के पक्ष में किया गया है, लेकिन आवंटन के दौरान यह नहीं बताया गया कि उसका इस्तेमाल कमर्शियल या रेजिडेंसियल किस लिए किया जाएगा। अब मुख्यमंत्री उड़नदस्ता टीम के सदस्य एसआई सुनील कुमार ने सिविल लाइन थाना पुलिस को बताया कि वर्तमान में 7 हिस्सों में विभाजित 3 हजार गज की जमीन बिक्री में गड़बड़ी हुई। सुनील कुमार के बयान पर तत्कालीन तहसीलदार विकास, नायब तहसीलदार बलवान, पटवारी राजेंद्र, गिरदावर सुरेश कुमार, नगर निगम के सहायक अभियंता देवेंद्र, प्रॉपर्टी डीलर हरेंद्र सैनी, रामचंद्र, मामन, सतबीर, ओमी व रणधीर को नामजद किया गया है। आरोप है कि तहसीलदार पर अपनी देखरेख में जमीन की रजिस्ट्री कराई और एक परिवार ने कब्जा करके अपने नाम करा लिया। सिविल लाइन थाना पुलिस मामले की जांच कर रही है।

आईटीआई चौक के पास है जमीन: यह विवादित जमीन आईटीआई चौक के पास है। दिसंबर, 2004 में इसके आसपास की कॉलोनी को अधिकृत कॉलोनी में बदला जा चुका था। नगर निगम सोनीपत के संपत्ति कर रिकार्ड में वर्ष 2016-17 व 2020-21 के अनुसार यह जमीन खाली कमर्शियल प्लाट अंकित है तथा वर्ष 2004 से अधिकृत कॉलोनी में है। शहरी क्षेत्र के कलेक्टर रेट की सूची में सडक के दोनों तरफ 100 फुट की गहराई तक कमर्शियल जगह मानी गई है। ऐसे में यह व्यावसायिक जगह है। यहां का व्यवसायिक रेट वर्ष 2020 मे 17 हजार रुपये प्रति गज और रिहायशी रेट 12 हजार रुपये गज था। जमीन की बाजारी कीमत इससे काफी ज्यादा है। किन्तु जब रजिस्ट्री संख्या 2709 कराई गई तो वह महज 4 हजार 843 रुपये गज के हिसाब से ही करा दी। सरकार को इससे 5 से 6 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। इस जमीन पर हाईकोर्ट में केस लड़ा गया। जिसमें 5 अक्तूबर, 2018 को सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया गया था। उसके बाद भी आगे बेच दी गई।

12 हजार रुपये प्रति गत के हिसाब से कराई रजिस्ट्री: विवादित जमीन का मालिक बनने के बाद हरेंद्र सैनी, रामचंद्र, मामन, सतबीर, ओमी, रणधीर आदि ने एक महीने बाद ही इस जमीन को बेचना शुरू कर दिया। इसे अलग-अलग लोगों को रिहायशी प्लाट दिखाकर रजिस्ट्री कराई गई। इसकी रजिस्ट्री 12 हजार रुपये प्रति गज के हिसाब से कराई। बाद में इसमें से तीन प्लाट व्यावसायिक बताकर 20 हजार रुपये प्रति गज के हिसाब से बेचे गए। एक प्लाट मालकिन अब यहां शोरूम बना रही है। मुख्यमंत्री उड़नदस्ता टीम की जांच में सामने आया कि 20 मई, 2020 को हलका पटवारी राजेंद्र सिंह ने तहसीलदार बिक्री कार्यालय के पत्र के बाद मौके पर जाकर जमीन का निरीक्षण किया। जिसमें जमाबंदी में रामदिया 1/2 भाग और जागेराम को 1/2 भाग दर्ज होने पर इनका कब्जा माना। जमाबंदी वर्ष 2018-19 तक भी इनका नाम दर्ज है, जबकि रामदिया की मौत 1981 और जागेराम की मौत 1985 में हो चुकी थी। इसलिए रामदिया व जागेराम के वारिसों रामचंद्र, मामन, ओमी, सतबीर व रणधीर निवासी कबीरपुर का कब्जा माना। पटवारी ने इसे कृषि भूमि बताया था, जबकि गिरदावरी रिकॉर्ड अनुसार वर्ष 1999 से यहां कोई खेती नहीं हुई है। अधिकारियों ने भी पटवारी की रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज नहीं की। यहां खाली कमर्शियल प्लाट अंकित होने के बाद भी रिहायशी भूमि के चार्ज लेकर 25 सितंबर, 2020 को नो ड्यूज सर्टिफिकेट (एनओसी) दिया गया। जांच में आया कि जमीन व्यावसायिक रेट पर बेची जाती तो सरकार को 5-6 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान न होता।

कई अधिकारियों पर आरोप: तत्कालीन पटवारी राजेंद्र सिंह पर व्यवसायिक जमीन की केवल अपने रिकॉर्ड के आधार पर कृषि भूमि दिखाकर बिक्री के रेट निर्धारित करने का आरोप है। गिरदावर सुरेश कुमार पर पटवारी राजेंद्र सिंह की रिपोर्ट की पुष्टि कर अपनी रिपोर्ट की। तत्कालीन तहसीलदार बिक्री विकास ने विवादित भूमि व्यावसायिक होते हुए बिना जांच पड़ताल व मौका निरीक्षण किए कृषि भूमि रेट पर भूमि बेचने के सेल्स ऑर्डर जारी किए। तत्कालीन नायब तहसीलदार बलवान सिंह ने व्यवसायिक जमीन होते हुए और रिहायशी जमीन का एनओसी होते हुए रिकॉर्ड की अनदेखी कर व्यवसायिक भूमि की कृषि भूमि रेट पर रजिस्ट्री कर दी। नगर निगम के सहायक अभियंता देवेंद्र ने नगर निगम सोनीपत के रिकॉर्ड अनुसार उस दौरान संपत्ति कर रिकॉर्ड में विवादित जमीन व्यावसायिक, खाली प्लाट अंकित होते हुए भी रिहायशी रेट के चार्ज लेकर एनओसी जारी की। सभी अधिकारियों संग मामले में प्रॉपर्टी डीलर हरेंद्र सैनी, रामचंद्र, मामन, सतबीर, ओमी और जागेराम पर धोखाधड़ी, गबन समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ है।

क्या है कस्टोडियन की जमीन: भारत-पाक बंटवारे के समय जो लोग हिंदुस्तान छोड़कर दूसरे देश में चले गए या जो लोग दूसरे देश के नागरिक हैं। उनका कोई वारिस भी यहां नहीं है तो उसकी संपत्ति कस्टोडियन मानी जाएगी। अथवा जिस जमीन का कोई खुद को वारिस साबित नहीं कर पाता और वह सरकार के नियंत्रण में होती है। वह कस्टोडियन की जमीन में दर्ज होगी।

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