गुजरात

सूरत पुलिस ने सुलझाई 28 साल पुरानी मर्डर मिस्ट्री, जानें कैसे

Gulabi Jagat
28 Jan 2023 10:27 AM GMT
सूरत पुलिस ने सुलझाई 28 साल पुरानी मर्डर मिस्ट्री, जानें कैसे
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देश की शीर्ष पुलिस में शुमार गुजरात पुलिस ने अब तक कई कठिन मामलों को सुलझाया है। शातिर से शातिर आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया है। इसी क्रम में आज हम आपके साथ 28 साल पुराने क्राइम स्टोरी की चर्चा करना चाहते हैं। सूरत क्राइम ब्रांच ने लगभग तीन दशक पुरानी हत्या की गुत्थी को सुलझाते हुए आरोपी को दबोचा है। हत्या के वक्त 23 साल के आरोपी की उम्र आज 52 साल की हो गई थी। इस केस पर सूरत क्राइम ब्रांच के अधिकारियों एएसआई शब्बीर अकबर शेख और एएसआई फरीद नसीब खान ने काम किया। हत्यारे को पकड़ने के लिए एक साल तक उड़ीसा से लेकर केरल तक खाक छानी। कई राज्यों में सर्च ऑपरेशन चलाए। 7 दिन वेश बदलकर केरल में रहना पड़ा। आईये, आपको बताते हैं ये पूरी क्राइम स्टोरी।
इस केस की जांच टीम का नेतृत्व कर रहे सूरत क्राइम ब्रांच के पीएसआई प्रीतेश चित्ते बताते हैं कि बात साल 1995 की है, जब सूरत शहर के पांडेसरा इलाके में एक हत्या हुई थी। हत्या के मामले के दोनों आरोपी कृष्णा रघुनाथ प्रधान एवं बीना गांधी शेट्टी, मृतक शिवराम ओडिशा के एक ही स्थान के रहने वाले थे। वे सूरत में मजदूरी करने आये और इसी दौरान उनकी पहचान हुई। वे लोग एक-दूसरे से कुछ दूरी पर अलग-अलग जगहों पर रहते थे। उस दौरान उनके बीच किसी प्रकार का कोई लेन-देन हुआ होगा, जिसका खुलासा होना बाकी है। कृष्‍णा रघुनाथ प्रधान और बीना गांधी शेट्टी को शिवराम पर भरोसा नहीं था और दोनों को लगता था कि शिवराम ठीक आदमी नहीं है। किसी बात पर उनके बीच अनबन हो गई और कृष्णा प्रधान, शिवराम को अपने साथ ले गया। 4 मार्च 1995 की रात दोनों ने मिलकर सूरत के पांडेसरा इलाके के सिद्धार्थनगर में शिवराम की तलवार और चप्पे से वार कर हत्या कर दी। बाद में उसके शव को पास की नहर में फेंक दिया। नहर पांडेसरा क्षेत्र में ही स्थित है। कृष्‍णा प्रधान नहर से कुछ दूर ही रहता था।
पांडेसरा पुलिस ने उस वक्त जांच की तो खुलासा हुआ कि मृतक शिवराम के दोस्तों ने ही उसकी हत्या की है। हालांकि, इससे पहले कि पुलिस उसके दोस्तों कृष्णा रघुनाथ प्रधान और बीना गांधी शेट्टी तक पहुंच पाती, दोनों फरार हो गए। पुलिस हत्यारों की खोज करते हुए उड़ीसा के बडाकोदंडा कस्बे में कृष्णा प्रधान के घर पहुंची, लेकिन वह अपने परिवार के साथ वहां से भी रफुचक्कर हो चुका था।
पीएसआई चित्ते बताते हैं कि एक साल पहले पुलिस को जानकारी मिली कि हत्या के एक आरोपी का बेटा भुवनेश्वर के एक ऑटोमोबाइल शोरूम में काम कर रहा है। वहीं से हमारी तलाश शुरू हुई। कृष्ण प्रधान ने हत्या को अंजाम दिया तब वह 23 साल का था। इस हिसाब से गिनती की गई कि उसके पुत्र की आयु अब क्या होगी? पड़ताल की गई कि भुवनेश्वर में दोपहिया शोरूम में कृष्‍णा प्रधान के सरनेम वाले और उसके पुत्र की उम्र के कितने लड़के हैं। उस पड़ताल के दौरान एक संदिग्ध पाया गया और इस प्रकार कई साल से बंद पड़ी जांच आगे बढ़ी और एक के बाद एक कड़ियां जुड़ने लगीं। फिर एक गुप्त सूचना के आधार पर ओडिशा के भुवनेश्वर और केरल राज्य में पड़ताल की गई।
पीएसआई चित्ते बताते हैं कि जांच में सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि आरोपी के तब और अब के चेहरे में क्या अंतर होगा? पहचान के लिए आसपास के लोगों से बात की। पीड़ित परिवार से भी बात की। गांव में जाकर भी वेरीफाई किया कि आरोपी कैसा दिखता था। हाईट-बॉडी का अंदाजा पुलिस पहले ही लगा चुकी थी। वह कैसा दिखता है, रंग-रूप कैसा है, आदि का भी पता था। लेकिन आरोपी इतने सालों में काफी बदल गया था, इसलिए सामने खड़ा भी होता तो पूरी तरह वेरीफाई करना मुश्किल था।
जानकारी मिली कि वह फर्नीचर की दुकान पर काम करता है। इसलिए देखा कि केरल में फर्नीचर की दुकानें कहां हैं। उन पर फोकस किया, जो संदिग्ध लग रहे थे। जब एक व्यक्ति पर संदेह गहरा हुआ तो उस पर कड़ी नजर रखी गई। उसकी अंगुलियों आदि तक की पड़ताल हुई और पुष्टि की गई कि यह वही आदमी है। वह केरल में बढ़ई का काम ही करता था।
भूसे के ढेर में सुई खोजने का ये काम एएसआई शब्बीर अकबर शेख और एएसआई फरीद नसीब खान ने किया। दोनों ने ही केरल जाकर कृष्णा प्रधान को गिरफ्तार किया था। शब्बीर शेख बताते हैं कि कृष्णा प्रधान को पकड़ने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। कुछ दिन केरल में रहे। हम करीब 4 बार ओडिशा गए। उसे पहचानने और पकड़ने में करीब एक साल दो महीने लग गए, क्योंकि जब आरोपी भागा था तब उसकी उम्र 23 साल थी, इसलिए अब वह हमारे लिए एक अनजान व्यक्ति था। उसके रंग-रूप और नाम का वेरीफिकेशन करना था। एक ही नाम के दो व्यक्ति भी हो सकते हैं। हमें लगा कि यदि कहीं कुछ चूक रह गई तो वहां की पुलिस सहयोग न भी करे। इसलिए कृष्णा को शुरू से अपराध की जानकारी नहीं दी गई। वह खुद अपराध स्वीकार करे, यह जरूरी था।
एएसआई शब्बीर अकबर शेख कहते हैं कि इसके अलावा भाषा की भी चुनौती थी। वहां हिंदी नहीं बोली जाती है। दूसरी चुनौती यह थी कि जहां कृष्ण प्रधान रहता था, वहां ज्यादातर उड़िया लोग किराए पर रहते थे। इसलिए अगर हम उसे वहां से पकड़ लेते और लोग इकट्ठा हो जाते तो उसे यहां लाना मुश्किल हो सकता था। इसके लिए हमने एक युक्ति की और उसे प्रलोभन दिया। एक आदमी के जरिए हमने उसे बढ़ईगीरी का कोन्ट्राक्ट देने और अच्छी सैलरी देने की बात कही। इस तरह उसे उस क्षेत्र से बाहर बुलाया गया।
एएसआई शब्बीर अकबर शेख के अनुसार हमने उससे जानकारी हासिल करने के लिए केरल पुलिस की मदद ली। किसी तरह की हाइप नहीं होने दी गई और उसे कुछ भी सोचने का मौका नहीं दिया गया। हमने मनगढ़ंत कहानी गढ़ी और उससे डराने के लिये कहा कि हम गुजरात क्राइम ब्रांच से आ रहे हैं और आपसे कुछ पूछना चाहते हैं। यह सुनकर 52 वर्षीय कृष्णा रघुनाथ प्रधान के कान खड़े हो गए। हमने कहा कि तेरा बेटा किसी नाबालिग लड़की को लेकर भाग गया है। कृष्णा प्रधान को शुरू से ही चौंका देने के लिए हमने अलग तरीके से पूछताछ की थी। वे दोनों कहां हैं? अगर तुम दोनों का साथ दोगे तो तुम भी फंस जाओगे। कृष्णा ने तुरंत कहा कि मेरा बेटा किसी लड़की के साथ नहीं भागा है। वह पढ़ाई कर रहा है। क्या मैं आपसे बात करवाऊं? हमने बातचीत में उसके जन्म स्थान के बारे में पूछा। उसने कहा कि मेरा जन्म उड़ीसा के बड़कोदंडा में हुआ था। वहां एक बात पक्की हो गई।
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फिर जब हमने उससे पूछा कि कहां-कहां काम किया है, तो उसने कहा कि मुझे ठीक से याद नहीं लेकिन 1991-92 में मैं सूरत में कारपेंटर का काम करता था। गली तो याद नहीं लेकिन सिद्धार्थनगर-पांडेसरा इलाका कहा जाता था। वहाँ हम रहते थे। यह सुनते ही गुजरात पुलिस के जवानों की आंखों में चमक और उनके चेहरों पर एक फीकी मुस्कान आ गई।
आरोपी पहले से ही बिछाए गए जाल में फंस गया था। इसके साथ ही इस बात की पुष्टि हो गई कि वह हत्या का आरोपी है। एएसआई शेख ने आगे बताया कि हमने उसे झटका दिया और कहा कि हम 28 साल पुराने मर्डर केस में पूछताछ करने आए हैं। तब जाकर आरोपी को अहसास हुआ कि अब वह गुजरात पुलिस से बच नहीं सकता।
आखिर में आरोपी ने माना कि मृतक शिवराम और अन्य आरोपी बीना गांधी शेट्टी मेरे दोस्त थे। हम सिद्धार्थनगर में अलग-अलग रहते थे। बीना शेट्टी की शिवराम से निजी दुश्मनी थी। बीना कहता था कि शिवराम मेरे से गद्दारी कर रहा है। शिवराम को रास्ते से हटाने और उसकी हत्या करने के इरादे से बीना ने कृष्णा प्रधान को उसके कमरे से बुला कर खुले मैदान में लाने का काम सौंपा। उस समय शिवराम अपने भाई के साथ खाना खा रहा था। कृष्णा प्रधान उसे बुलाकर ले आया। उस समय रात के 8.30 से 9 बजे थे। शिवराम के आते ही बीना ने उस पर हमला बोल दिया। उस पर तलवार से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया और फिर उसकी लाश को नहर में फेंक दिया।
एएसआई शब्बीर अकबर शेख कहते हैं कि अव्वल तो कृष्‍णा प्रधान एक दूसरे राज्य में था। 2007 से केरल में रहते हुए वह मलयालम भी अच्छी तरह सीख चुका था। उड़िया और हिंदी भी बोल सकता था। इन सभी वर्षों में, उसने उड़ीसा के आवासीय प्रमाण को केरल के आवासीय प्रमाण में बदल दिया था।
एएसआई शब्बीर अकबर शेख के अनुसार कृष्णा प्रधान ने पूछताछ में स्वीकार किया कि हत्या के बाद उसने अपनी साइकिल गांव में एक दोस्त को 300 रुपए में बेच दी। वहां से वह उड़ीसा के लिए रवाना हुआ। उड़ीसा जाने के लिए 3 ट्रेनें बदलीं। घर जाकर परिजनों को जानकारी दी। फिर वहां अपने माता-पिता के साथ घर खाली कर दिया और उनके साथ ब्रह्मपुर में बस गया।
एएसआई शेख कहते हैं कि हत्या से पहले या बाद में कृष्‍णा प्रधान का कोई आपराधिक इतिहास सामने नहीं आया है। कृष्‍णा प्रधान का भरा-पूरा परिवार है जिसमें पुत्र के अलावा नाती-पोते और भाई आदि हैं। जबकि मृतक शिवराम के माता-पिता की मौत हो चुकी है। शिवराम की शादी नहीं हुई थी। हत्या के समय वह 21 साल का था। हत्या के बाद कृष्णा प्रधान और बीना दोनों अलग-अलग दिशाओं में भाग गए। उस दिन के बाद से आज तक दोनों एक दूसरे से नहीं मिले हैं और बीना का कोई पता नहीं है।
खैर, सूरत में 1995 में हुई इस हत्या की गुत्थी सुलझाने में पुलिस ने कितनी मेहनत की, यह इस क्राइम स्टोरी से पता चलता है। आपको ये रियल स्टोरी कैसी लगी, कमेंट करके अवश्य बताएं।
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