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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : गुजरात के विधानसभा चुनाव में अब महज 6 महीने का ही वक्त बचा है और उससे पहले पिछले दिनों ही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है।आदिवासी नेता और तीन बार के विधायक अश्विन कोतवाल ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है। वह उन 13 मौजूदा और पूर्व विधायकों में से एक हैं, जो 2017 के बाद से अब तक कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। कोतवाल कांग्रेस के चीफ व्हिप भी रह चुके हैं और बीते कुछ वक्त से नाराज चल रहे थे। दरअसल वह नेता विपक्ष बनने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने एक अन्य आदिवासी नेता सुखराम राठवा को उनके स्थान पर चुन लिया।कोतवाल का कहना है कि वह आदिवासी इलाकों में कांग्रेस के काम करने के तरीके से निराश थे।
पाटिल की रणनीति 2017 में कितनी कामयाब थी, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि सूरत की सभी 12 शहरी सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी।इसके अलावा कुल 15 में से जिले की 14 सीटें जीत ली थीं। यह स्थिति तब थी, जबकि करीब डेढ़ साल पहले ही पाटीदार आंदोलन हुआ था। अब भाजपा आदिवासी बेल्ट में ऐसी ही चुनौती का सामना कर रही है और उसे 2017 के रिपीट होने की उम्मीद है। यहां तक कि भाजपा सरकार ने पिछले दिनों केंद्र से अपील की थी कि वह पार-तापी-नर्मदा परियोजना को रोक दे
क्योंकि इससे बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापित करना पड़ेगा।कोतवाल ने ऐसे वक्त में भाजपा जॉइन की है, जब आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने भरूच जैसे आदिवासी इलाके का दौरा किया है। उन्होंने ऐलान किया है कि आम आदमी पार्टी गुजरात में विधायक छोटू वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी के साथ मिलकर चुनाव में उतरेगी। बीटीपी ने 2017 में दो विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा के एक नेता ने कहा, 'दलित समुदायों की सीटों पर भाजपा अच्छा प्रदर्शन करती रही है।उसी तरह से आदिवासी सीटों पर भी एक मजबूत ट्राइबल नेता की जरूरत है।'
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