गुजरात
गुजरात विधानसभा चुनाव में सबकी नज़र 'दलित वोट बैंक' पर, अपने-अपने तरीके से लुभाने में जुटे राजनीतिक दल
Renuka Sahu
24 March 2022 3:45 AM GMT
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फाइल फोटो
गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 (gujarat election 2022) चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. अन्य राज्यों की तरह ही गुजरात में भी जातिगत समीकरण के खास मायने हैं. दूसरे राज्यों के मुकाबले गुजरात में दलित आबादी का प्रतिशत काफी कम है, लेकिन कई सीटों पर यह जाति चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में सक्षम है. गुजरात पर पिछले 25 सालों से बीजेपी का शासन है. वहीं 1995 के बाद यहां पर कांग्रेस दोबारा कभी भी सत्ता पर काबिज नहीं हो सकी है. इसलिए 27 सालों से कांग्रेस इस वनवास को अब खत्म करना चाहती है.
पीएम मोदी का गृह राज्य है गुजरात
वहीं पूरे देश की निगाहें भी इस चुनाव (gujarat election 2022) पर है, क्योंकि पिछले चुनाव 2017 में कांग्रेस बहुत कम अंतरों से भाजपा से पीछे रह गई. कांग्रेस ने 2017 में अपने मजबूत प्रदर्शन से यह संदेश दे दिया कि अब वह गुजरात में कमजोर नहीं है. वहीं भाजपा गुजरात में फिर सत्ता पर काबिज होने के लिए तैयार है. गुजरात से ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आते हैं. दोनों ही इस चुनाव को लेकर सक्रिय हो गए हैं और बड़े स्तर पर तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं.
गुजरात की राजनीति में दलित वोट बैंक
गुजरात की राजनीति में जातिगत व्यवस्था पर अभी भी मतदान होता है. इसी आधार पर राजनीतिक दल भी जाति समीकरण को ध्यान में रखते हुए टिकट में सभी जातियों को उसकी संख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व देने का काम करती है. गुजरात की राजनीति में दलितों का प्रभाव अन्य राज्यों की अपेक्षा काफी कम है. राज्य की जनसंख्या के मुताबिक दलित की आबादी साथ फ़ीसदी है. वहीं गुजरात की सुरक्षित सीटों पर दलित मतदाताओं (Dalit Voters) की आबादी भी अलग-अलग है. ज्यादातर सुरक्षित सीटों पर दलित मतदाताओं की संख्या 10 से 11 फ़ीसदी ही हैं. फिर भी चुनाव में दलित मत प्राप्त करने के लिए सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से प्रयास में जुट चुके हैं.
2017 में दलित मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर
गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 में सबसे खास बात ये रही कि आदिवासी और दलित लोगों ने भाजपा के ऊपर अपना विश्वास जताया था. भाजपा के खिलाफ दलित नेता जिग्नेश मेवानी के धुआंधार प्रचार का भी कोई असर नहीं हुआ. भाजपा ने दोनों ही जगहों पर 15 फीसदी का भारी इजाफा हासिल किया. दलित और आदिवासी का भाजपा को इस तरह से समर्थन एक बड़े जातिगत बदलाव की ओर इशारा करता है.
आदिवासी मतदाताओं का गुजरात में प्रभाव
गुजरात की राजनीति में आदर्श मतदाताओं का खासा प्रभाव माना जाता है. राज्य की जनसंख्या भले ही 6 करोड़ तक पहुंच गई है, लेकिन इस जनसंख्या में 11 फीसदी आदिवासी मतदाता हैं. आदिवासी मतदाता कई सीटों पर चुनाव परिणाम को सीधे प्रभावित करते हैं. इसी वजह से कांग्रेस और भाजपा आदिवासी मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए चुनाव में जोर आजमाइश कर रहे हैं.
जिग्नेश से दलित जाति को उम्मीद
गुजरात की राजनीति में जिग्नेश का नाम अब मुख्यधारा के नेताओं में जुड़ गया है. गुजरात की दलित राजनीति में जिग्नेश मेवाड़ी एक बड़ा चेहरा बनकर उभर रहे हैं. गुजरात के चुनाव में उन्हें पूरी तरीके से खारिज कर देना भी उचित नहीं है. जिग्नेश दलित राजनीति को लेकर सजग हैं. इसी वजह से मायावती, रामविलास पासवान, मल्लिकार्जुन खड़गे और थावरचंद गहलोत की तरह ही उनका नाम भी अब दलित के बड़े नेता के तौर पर लिया जा रहा है.
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