गुजरात

यौन उत्पीड़न पीड़िताओं के लिए कानूनी मदद व्यवस्था पर गुजरात हाईकोर्ट ने जवाब मांगा

Deepa Sahu
23 Feb 2022 2:26 PM GMT
यौन उत्पीड़न पीड़िताओं के लिए कानूनी मदद व्यवस्था पर  गुजरात हाईकोर्ट ने जवाब मांगा
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गुजरात उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के एक निर्देश के अनुपालन पर पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से जवाब मांगा है,

अहमदाबाद, गुजरात उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के एक निर्देश के अनुपालन पर पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से जवाब मांगा है, जिसमें थानों को यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए वकीलों की सूची रखने का निर्देश दिया गया है।

न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध माई की पीठ ने पिछले सप्ताह अपने आदेश में कहा कि थानों में यौन उत्पीड़न के मामलों की शिकायतकर्ताओं के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व के संबंध में शीर्ष अदालत के आदेश का ''अक्सर उल्लंघन देखा गया है।''शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार पीड़िता को थाने में कानूनी सहायता प्रदान की जानी चाहिए, जहां एक वकील उसे कार्यवाही के स्वरूप के बारे में बताएगा, उसे मामले के लिए तैयार करेगा और थाना तथा अदालत में उसकी सहायता करेगा। इन मामलों में सहयोग के इच्छुक वकीलों की सूची उन पीड़िताओं के लिए थानों में रखी जानी चाहिए जिनके पास किसी अन्य वकील की सुविधा नहीं है।
उच्चतम न्यायालय के 1995 के आदेश में कहा गया है कि वकील पीड़िता को परामर्श या चिकित्सा सहायता के बारे में मदद प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन भी प्रदान करेगा। यौन हिंसा की पीड़िता के वर्तमान मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह पाया गया कि जांच अधिकारी ने भी शीर्ष अदालत के संबंधित आदेश के बारे में अनभिज्ञता जतायी। अदालत ने अपने आदेश में कहा, ''थानों में उपलब्ध अधिवक्ताओं की कोई सूची नहीं है।''
पीठ ने पुलिस महानिदेशक को बिना समय गंवाए 1995 में जारी निर्देशों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राज्य के प्रत्येक थाने को आवश्यक परिपत्र, निर्देश या अधिसूचना जारी कर अदालत में एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता की नाबालिग बेटी 10 जून 2021 को लापता हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध के साथ राज्य के मेहसाणा जिले के विसनगर थाने में संपर्क किया। पीड़िता को बंधक बनाकर रखा गया था और उसका यौन शोषण किया गया, तथा उसकी मेडिकल रिपोर्ट से पता चला कि वह 10 सप्ताह की गर्भवती थी। इसके बाद पीड़िता और उसके माता-पिता ने अदालत से भ्रूण गिराने की अनुमति का आग्रह किया। अदालत ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन कानून के प्रावधानों के तहत इसकी अनुमति दे दी थी। अदालत ने पीडिता को हर तरह की कानूनी सहायता प्रदान करने का निर्देश प्राधिकारियों कोदिया है।


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