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जनता से रिस्ता वेबडेसक | "शरीर नाशवान है लेकिन मेरी आत्मा इस आश्रम में मौजूद है तो वह हमेशा जीवित रहेगी। यदि आश्रम का वातावरण, जिसके लिए हम सब प्रयास कर रहे हैं, वह भी स्वयं का वातावरण बन जाए, तो आश्रम में कभी अकेलापन नहीं लगेगा।"
राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी ने आश्रमवासी प्रभुदास को उनकी चिट्ठी के जवाब में यह लिखा था। जब वे उनकी अनुपस्थिति में अकेलापन महसूस कर रहे थे। यह पत्र फरवरी 1918 का था। ऐसी कई बातें और कई पत्र महादेव देसाई की डायरी में दर्ज हैं। देसाई ने 1917 में गांधीजी के निजी सचिव के रूप में काम करना शुरू किया। उसी वर्ष साबरमती आश्रम की स्थापना की गई थी। सभी आश्रमवासी, कुल मिलाकर लगभग 40, अस्थायी तंबुओं में रह रहे थे और एक साथ भोजन करते थे। आश्रम तब आकार ही ले रहा था। अब इसी आश्रम के पुनर्विकास की गुजरात सरकार की योजना को लेकर पिछले कई दिनों से गांधीवादी जमकर विरोध कर रहे है।
बापू के साबरमती आश्रम के कथित व्यावसायिक पर्यटन केंद्र के रूप में बदलने के विरोध में देशभर के गांधीवादी कार्यकर्ताओं ने हाल ही में सेवाग्राम से साबरमती तक की संदेश यात्रा का आयोजन भी किया था। कुछ समय पहले, प्रसिद्ध गांधीवादी इतिहासकारों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारियों , उद्योगपतियों और सार्वजनिक हस्तियों समेत 100 से अधिक प्रमुख लोगों ने प्रस्तावित पुनर्विकास कार्य का विरोध करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र भी लिखा था।
पत्र में कहा गया कि प्रस्तावित "गांधी थीम पार्क" उनकी 'दूसरी बार हत्या' होने जैसा है, क्योंकि इस परियोजना की वजह से गांधी का सबसे महत्वपूर्ण स्मारक और स्वतंत्रता संग्राम की स्मृतियां व्यावसायीकरण में हमेशा के लिए खो जाएंगी। रामचंद्र गुहा, राजमोहन गांधी, नयनतारा सहगल, आनंद पटवर्धन, गणेश देवी, प्रकाश शाह जैसे गांधीवादी इस अभियान का हिस्सा हैं।
अब महात्मा गांधी के प्रपौत्र, जाने माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी ने साबरमती आश्रम पुनर्विकास परियोजना के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट का रुख कर लिया है। तुषार गांधी महात्मा गांधी के तीसरे पुत्र मनिलाल के बेटे अरुण गांधी के बेटे हैं।
विवाद क्या है
पांच मार्च 2021 को गुजरात सरकार के उद्योग और खान विभाग के एक सरकारी प्रस्ताव जारी करने के बाद यह विवाद खड़ा हुआ है। जिसमें गांधी आश्रम स्मारक के व्यापक विकास के लिए एक गर्वनिंग काउंसिल और एक एग्जीक्यूटिव काउंसिल का गठन किया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड, जो अहमदाबाद नगर निगम की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है, उसे गांधी आश्रम परिसर के प्रस्तावित पुनर्विकास की योजना को अमल में लाने का काम सौंपा गया है।
263 परिवार आश्रम छोड़ने को मजबूर
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 1,200 करोड़ से अधिक की साबरमती आश्रम पुनर्विकास परियोजना के तहत आश्रम के चारों ओर 55 एकड़ क्षेत्र का पुनर्विकास किए जाने की उम्मीद है। कथित तौर पर नए बनाए जाने वाले स्मारक में संग्रहालय, एक एम्फीथिएटर, एक वीआईपी लाउंज, दुकानें और एक फूड कोर्ट सहित कई अन्य सुविधाएं शामिल होंगी। बताया जा रहा है कि सरकार की योजना स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान का मंदिर समझे जाने साबरमती आश्रम और स्मारक को एक वाणिज्यिक पर्यटक केंद्र के तौर पर बदलने की है।
बताया जा रहा है कि गांधीजी के साथ जो आश्रमवासी उनके साथ थे उनके वंशजों के करीब 263 परिवारों को परिसर खाली करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। आश्रमवासियों का मानना है कि यहां उनकी आखिरी दिवाली होगी। आश्रम परिसर को खाली करने के लिए उन्हें अपार्टमेंट या 65 लाख के मुआवजे की पेशकश की जा रही है ताकि अगले तीन सालों में पुनर्विकास किया जा सके।
तुषार गांधी क्यों कर रहे हैं विरोध
'अमर उजाला डिजिटल' से बातचीत में तुषार गांधी ने कहा-"महात्मा गांधी का कोई भी आश्रम कभी भी सरकारी नियंत्रण में नहीं रखा जा सकता। ट्रस्टी इसे पिछले 70 से अधिक सालों से अच्छी स्थिति में रखे हुए हैं, इसलिए ऐसी कोई वजह नहीं है कि सरकार इसका नियंत्रण अपने हाथों में ले।
उन्होंने आगे कहा सरकार ने सार्वजनिक तौर पर किसी को इस पुनर्विकास योजना के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है। हमें खबरों से पता चल रहा है कि सरकार इस आश्रम को लेकर क्या कल्पनाएं कर रही है। पुनर्विकास परियोजना को लेकर अलग-अलग बातें सुनाई दे रही है। कभी कहा जा रहा है कि भव्य व्यवसायिक पर्यटन स्थल बनाया जाएगा जिसमें पर्यटकों के लिए सहूलियतें बढाई जाएंगी, तो कभी कहा जाता है कि 1947 से पहले की स्थिति में इसे बनाएंगे, उनकी योजना या परिकल्पना के बारे में हमें कुछ ज्यादा नहीं पता है। हैरानी की बात है कि जब गांधी की बात होती है तो इसमें कोई पारदर्शिता नहीं है।
गांधी की संस्थाओं में सरकार का दखल नहीं चाहिए
तुषार गांधी ने यह भी बताया कि "जब गांधी स्मारक निधि की स्थापना की गई थी, तो उसके संविधान में यह बात साफ तौर पर कही गई थी कि गांधी से संबंधित जो भी संस्थाएं होंगी उसे चलाने में सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी। इन संस्थाओं को चलाने के लिए जो कॉर्पस भी बनाया गया उसमें भी किसी तरह सरकार से कोई सहायता नहीं लेने की बात कही गई थी। बाद में जब यह लगा कि सरकार से पैसा लेना जरूरी होगा तो यह तय किया गया कि सरकार की भूमिका केवल दाता के रूप मे होगा, निर्णय करने या कोई दखल देने का अधिकार सरकार के पास नहीं होगा।
उन्होंने कहा मुझे यह जानकारी मिली है कि सरकार ने नया ट्रस्ट बना दिया है और कहा जा रहा है कि वे ही अब आश्रम संभालेंगे। यह पहली दफा हो रहा है कि जब सरकार ट्रस्टी को कह रही है कि वे हट जाएं अब सरकार इस आश्रम का देखरेख करेगी।
याचिका में क्या कहा गया
याचिका में कहा गया है कि गांधी आश्रम स्मारक के पुनर्विकास के लिए प्रस्तावित परियोजना महात्मा गांधी की व्यक्तिगत इच्छाओं और विचारधारा के विपरीत है। याचिका अधिवक्ता भूषण ओझा के माध्यम से दायर की गई है और वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई अदालत में इस पर जिरह करेंगे।
मिहिर देसाई ने अपने एक बयान में कहा है कि "महात्मा गांधी कभी नहीं चाहते थे कि आश्रम को एक आकर्षक पर्यटक स्थल बनाया जाए। आश्रम की सादगी को बनाए रखना होगा। अगर सरकार इस योजना को अमल में लाती है तो आश्रम का इतिहास और उसकी पवित्रता नष्ट हो जाएगी"।
तुषार गांधी बताते हैं कि याचिका में हमने उन्हें पार्टी बनाया है जिन्हें साबरमती आश्रम के पुनर्विकास का दारोमदार बनाया गया है। साथ ही हमने छह ट्रस्ट को भी पार्टी बनाया है जो लगता है कि अपनी जिम्मेदारी से चूक गए हैं। हमने इन ट्रस्टों के सामने सवाल उठाया है कि वे अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभा रहे हैं? साबरमती आश्रम को लेकर बापू की जो सोच और देन थी, सरकार उसके खिलाफ जा रही है।
वे आगे कहते हैं 'हरिजन सेवक संघ को जो आश्रम सौंपा गया था उस पर बापू ने लिखा था कि दलितों के उत्थान के लिए इसका इस्तेमाल होना चाहिए, मुझे नहीं लगता कि पुनर्विकास योजना में इस पर कुछ सोचा गया है। यदि सरकार की ऐसी कोई योजना है तो वह बताएं। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह बापू की सोच के बिल्कुल विपरीत है। इसलिए हमने कोर्ट से इसे भी यथावत स्थिति में रखने की अपील की है।' उन्होंने याचिका में 1,200 करोड़ रुपये की राशि खर्च करने का मुद्दा भी उठाया गया है क्योंकि उनके मुताबिक वर्तमान परिस्थितियों में इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
साबरमती आश्रम की महत्ता
साबरमती सत्याग्रह आश्रम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की धरोहर और स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत है। बापू ने साबरमती नदी के तट पर इस स्थान को बहुत सोच समझकर चुना था क्योंकि पास ही में एक ब्रिटिश जेल था। गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, "सभी आश्रमवासियों को किसी भी समय जेल जाने के लिए तैयार रहना चाहिए।" गांधी 1917 से 1930 तक साबरमती आश्रम में रहे। उनके प्रवास के दौरान यह आश्रम दांडी मार्च सहित कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह है। यह महात्मा और स्वतंत्रता संग्राम का जीवंत स्मारक है। यह आश्रम बापू की शांति और सादगी का प्रमाण माना जाता है।
लगभग 36 एकड़ में फैला इस आश्रम साल के 365 दिन खुला रहता है। इसे देखने दुनियाभर के लोग आते हैं। इस आश्रम का मुख्य स्थान हृदय कुंज हैं जहां बापू अपना अधिकांश समय बिताया करते थे। यहां उन वस्तुओं को भी सहेज कर रखा गया है जिनका इस्तेमाल बापू करते थे।
साबरमती आश्रम संरक्षण और स्मारक ट्रस्ट की अध्यक्ष, इलाबेन भट्ट, ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा, "सरकार ने हमें परियोजना के तहत कुछ भी नहीं करने का आश्वासन दिया है, जो गांधीवादी मूल्यों के खिलाफ है। मेरा मानना है कि इसमें कोई दलगत राजनीति शामिल नहीं है।"