छत्तीसगढ़

धौंस-इंप्रेशन जमाने अपराध की राह पकड़ रहे युवा...!

Nilmani Pal
14 Oct 2021 5:25 AM GMT
धौंस-इंप्रेशन जमाने अपराध की राह पकड़ रहे युवा...!
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  1. लक्जरी लाइफ की चाह में दायित्वों-कर्तव्यों को कर रहे नजरअंदाज
  2. अपराधी बनने के ये हैं कारण

लक्जरी लाइफ स्टाइल

युवा महंगे मोबाइल, बाइक्स, लैपटॉप जैसी कई सुविधाएं चाहते हैं। यही कारण है कि वे इस तरह की अनावश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए चोरी व लूट जैसी वारदातों को अंजाम देते है।

गर्लफ्रेंड का साथ

कॉलेज में गर्लफ्रेंड बनाने के बाद उसके सामने खुद को आर्थिक रुप से मजबूत दिखाने के लिए वे चोरियां करते है। महिला साथी को महंगे उपहार देने व उसे होटलों में ले जाने का खर्च जुटाने के लिए भी वे अपराध की ओर अग्रसर होते हैं।

साथियों से प्रतिस्पर्धा

कॉलेजों में मध्यम व सामान्य वर्ग के छात्रों के साथ उच्च वर्ग के छात्र भी पढ़ते हैं। कई बार सामान्य परिवारों के छात्र इन छात्रों की होड़ करने के लिए अपराधों के जरिए कमाई करने का रास्ता अपनाते है। कई बार अनावश्यक जरूरतों की पूर्ति साथियों से उधार लेकर करते हैं। पैसे नहीं चुकाने की स्थिति में वे अपराध करना ही पड़ता है।

पार्टियों की मस्ती

बाहर से आकर रहने वाले छात्र पार्टियों के आदी हो जाते है। दोस्तों के साथ उनकी आए दिन पार्टियां होती है। ऐसी ही पार्टियों के रास्ते युवाओं को शराब की लत भी पड़ जाती है। इसमें होने वाले खर्च की पूर्ति माता-पिता से मिलने वाली पॉकेट मनी से तो होने से रही।

हुक्का बार

शहर में कई जगह खुले शीशा लाउंज व हुक्का बारों पर पहुंचने वालों में भी युवाओं की तादाद काफी रहती है। इनके खर्च के लिए भी युवा अपराध को अंजाम देते है। पेरेंट्स से मिले फीस के पैसों को युवा यहीं उड़ा देते हैं। ऐसे में फीस का इंतजाम करने के लिए गलत रास्ते अपनाते हैं। पढ़ाई के साथ अधिकतर युवा किसी भी चीज को पाने के लिए शार्टकट अपनाते हैं। छोटे कस्बों व शहरों से बड़े शहरों में आने वाले छात्र ग्लैमर की चकाचौंध में खो जाते है। इन पर पेरेंट्स व कॉलेज का नियंत्रण भी नहीं रहता है। पेरेंट्स बच्चों को पढ़ाई का पैसा भेजना ही जिम्मेदारी मानते हैं।

मनोवैज्ञानिकों की माने तो आजकल के अधिकतर युवा सिर्फ वर्तमान में जीने की ही चाह रखते हैं। वो जो भी करते हैं उन्हें लगता है ये सही है। उन्हें यह परवाह भी नहीं है कि जो काम में अभी कर रहे हैं उसके दुष्परिणाम क्या होंगे। कई बार प्रेम में विफल होने पर भी अपराध करते हैं। जल्द अमीर बनने की चाहत में ऐसा करते हैं। युवाओं में संवेदनशीलता कम होती जा रही है। वे दूसरों की तकलीफों को नहीं समझते और अपराध कर बैठते हैं।

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। जवानी की दहलीज पर कदम रखते बच्चों को देख मां बाप के सपनों के पंख लग जाते हैं, मगर बदलते समय व हाई प्रोफाइल जीवन शैली के मोहपाश में युवाओं के कदम कॅरिअर की ओर मुडऩे की बजाय अपराध की दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं। सामाजिक बदलाव का यह नजरिया युवाओं की अपराधों में बढ़ती संख्या से साबित होता है। जानकारों की मानें तो इस उम्र में युवाओं के कदम अपराध की ओर बडऩा घातक है। ऐसे युवा आगे चलकर संगीन वारदातों को अंजाम देने में भी कभी कभी सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे में प्रो एक्टिव पुलिसिंग की जरूरत महसूस की जा रही है।

बीबीए-एमबीए या इंजीनियरिंग जैसे प्रोफेशनल कोर्सेस करने के बाद अच्छी कंपनी में बेहतर सेलरी के साथ नौकरी हासिल करने के बजाए स्टूडेंट्स या यूथ कमाई के शॉर्टकट अपनाते हुए अपराध की गलियों का रूख कर रहे हैं। युवाओं में बढ़ता अपराध का यह ट्रेंड समाज के सामने कई सवाल खड़े कर रहा है। शहरी चकाचौंध और साथियों के बीच इम्प्रेशन जमाने की चाहत में युवा जल्दी पैसा कमाना चाहता है। इसके चलते भटकता जा रहा है अपराध की राह पर चल रहा है।

युवाओं को अपराधी बना रहा नशा

शहर की युवा पीढ़ी में तेजी से नशे की लत फैल रही है. वहीं जवान हो रही पीढ़ी (12 से 20 साल) भी अब नशे की आदी हो रही है। यह नशा शराब या सिगरेट का नहीं है, बल्कि गांजा, कोकीन, अफीम, डेंडराइट, स्मैक और नशीली दवाओं का है। इस तरह का नशा करने की वजह से युवाओं की मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। कई का तो मनो चिकित्सालयों में इलाज भी चल रहा है, वहीं इस नशे के आदि होने के बाद से क्षेत्र में क्राईम भी बढ़ते जा रहे है। युवा पीढ़ी नशे के आदी हो कर चोरी, लूटपाट, मारपीट, चाकूबाजी, रेप-हत्या जैसे अपराधों में लिप्त हो रहे हैं।

आसानी से मिल जाती है स्मैक की पुडिय़ा

शहर के युवाओं के लिए स्मैक खरीदना आसान सी बात है, अवैध स्मैक का कारोबार करने वाले युवाओं को ही अपना टारगेट बना रहे हैं। शहर से लगे गांवों में युवाओं स्मैक तस्कर खुलेआम स्मैक बेचते है। शहर के मुख्य बाजार चौराहों व गली-मोहल्लों पर भी खुलेआम स्मैक की पुडिय़ा बिकने लगी है। शहर की रगों में नशा बसता जा रहा है। दिनों दिन नशे की जड़ें मजबूत होती जा रही हैं। कभी चोरी छिपे बिकने वाले नशे का सामान, आज धड़ल्ले से बिक रहा है। स्मैक के धुएं से जवानी सुलग रही और नशीले इंजेक्शन नशों में उतारे जा रहे हैं। शहर की गली-गली में नशे के दीवाने झूमते दिख रहे हैं। सुनसान स्थानों पर स्मैक और नशीले इंजेक्शन लगाते देखे जा सकते हैं। स्कूल और कॉलेज में पढ़ रहे कई छात्र नशेडिय़ों के चंगुल में फंस जाते हैं। शुरू में इन्हें शौक के लिए स्मैक का नशा कराया जाता है। बाद में यह नशा छात्रों के जेहन में इतना उतर जाता है कि वे इसके आदी हो जाते हैं।

अभिभावक बच्चों का सही मार्गदर्शन करें

पुलिस एक हद तक अपराधों पर लगाम लगा सकती है, लेकिन युवाओं को रोकने के लिए समाज को ही प्रयास करना होगा। पहले परिवार में जो अनुशासन हुआ करता था वह कम होता जा रहा है। पुलिस के हाथ में जितना है उतना तो हम करेंगे, लेकिन सरकार से करोड़ों रुपए लेने वाले एनजीओ की जिम्मेदारी है कि वे युवाओं को अवेयर करे। हर पेरेंट्स को बच्चों से प्रॉपर कम्युनिकेशन बनाए रखना चाहिए। उन्हें मोबाइल, बाइक जैसी लक्जरी चीजें दिखावे के लिए न दें। बचपन से उनमें ऐसी आदत डालें कि वे आपसे हर बात शेयर करें। बच्चों के नेटवर्क खासकर फ्रेंड सर्कल की जानकारी भी रखें।

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