छत्तीसगढ़

सरसों की खेती कर बन सकते है लखपति

Nilmani Pal
24 Nov 2022 5:20 AM GMT
सरसों की खेती कर बन सकते है लखपति
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जांजगीर-चांपा। कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा द्वारा जिले के किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से कृषि विभाग सहित अन्य संबंधित विभागों को विभागीय योजनाओं का निर्धारित समय पर क्रियान्वयन करते हुए संबंधित हितग्राहियों को जमीनी स्तर पर लगातार आवश्यक मार्गदर्शन दिए जाने के निर्देश दिए जा रहे हैं। जिससे किसान उन्नत तकनीक से खेती किसानी कर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सके। इसी क्रम में कलेक्टर सिन्हा सहित कृषि विभाग और संबंधित अधिकारियों द्वारा जिले के किसानों को रबी फसल 2022-23 में धान के बदले अन्य फसल जैसे सरसों गेहूं तिवड़ा का उतेरा फसल आदि के बुवाई के लिए प्रोत्साहित किए जा रहा हैं। कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी अनुसार इस रबी फसल के लिए जिले में कुल 556 एकड़ में सरसों के किस्म आरएच 725 की खेती का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जिसके लिए प्रत्येक विकासखंड में 111 एकड़ का लक्ष्य प्रदान किया गया है। जिसमें से 218 एकड़ में सरसों बीज उतेरा फसल के रूप में बोनी किया गया है। सरसों की उन्नत तकनीक द्वारा खेती करने पर असिंचित क्षेत्रों में 15 से 20 क्विंटल और सिंचित क्षेत्रों में 20 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दाने के उपज से अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है।

कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी अनुसार सरसों की बुवाई के लिए अक्टूबर से नवम्बर सही समय होता है और इसकी खेती के लिए तैयारी के समय अच्छी सड़ी हुई गोबर से खाद 7 से 12 टन प्रतिएकड़ की दर से मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए तथा खाद के सही प्रयोग के लिए मिट्टी की जांच करवाना चाहिए। बीज की मात्रा 2 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से आवश्यक होती है तथा बीज 4 से 5 से.मी. गहरे बीजने चाहिए। सरसों में 40 किलो नाइट्रोजन (90 किलो यूरिया), 12 किलो फासफोरस (75 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और 6 किलो पोटाशियम (10 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ डालें। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सारी खाद बिजाई से पहले डालें। सरसों के लिए खाद की आधी मात्रा बिजाई से पहले और आधी मात्रा पहला पानी लगाते समय डालना चाहिए। ध्यान रहे उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही प्रयोग करें। सरसों की खेती के लिए भूमि को देसी हल या कल्टीवेटर से दो या तीन बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें। फसल की बुवाई सिंचाई के बाद करें। अच्छी फसल लेने के लिए बुवाई के बाद तीन हफ्तों के फासले पर तीन सिंचाइयों की जरूरत होती है। ज़मीन में नमी को बचाने के लिए जैविक खादों का अधिक प्रयोग करें। सरसों की खेती में खरपतवार की रोकथाम के लिए 15 दिनों के फ़ासलो में 2-3 बार निराई-गुड़ाई करें। फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती है। अतः पोधों के पीले पड़ने एवं फलियां भूरी होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। फसल को सूखाकर थ्रेसर या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता है। बीजों को सुखाने के बाद बोरियों में डालना चाहिए और नमी रहित स्थान पर भण्डारित करना चाहिए। सरसों की खेती रेतीली से लेकर भारी मटियार मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी सर्वाधिक उपर्युक्त होती है।

उतेरा फसल से खेतों की नमी का होता है बेहतर उपयोग -

किसानों के अतिरिक्त आय में वृद्धि करने के लिए उतेरा खेती एक बेहतर विकल्प है। उतेरा खेती का मुख्य उद्देश्य खेतों में मौजूद नमी का उपयोग अगली फसल के अंकुरण तथा वृद्धि के साथ ही द्विफसलीय क्षेत्र विस्तार को बढ़ावा देना है। उतेरा फसल के रूप में अलसी, सरसों, उड़द, चना, तिवड़ा, गेंहू आदि की बुवाई की जाती है। फसल उगाने की इस पद्धति में दूसरे फसल की बुवाई पहली फसल के कटने से पूर्व ही कर दी जाती है। इसके माध्यम से किसानों को धान के साथ-साथ दलहन, तिलहन और अतिरिक्त उपज मिल जाती है। दलहन फसलों से खेतों को नाईट्रोजन भी प्राप्त होता है। इस विधि से खेती करने से मिट्टी को नुकसान नही पहुंचता और जैव विविधिता व पर्यावरण का संरक्षण भी होता है तथा इस विधि से खेती करने से फसलों से डंठल व पुआल जलाने की जरूरत नही पड़ती।

कलेक्टर ने किसानों से खरीफ फसल के बाद उतेर फसल लेने की अपील -

कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने खरीफ फसल के बाद किसानों को खेत की नमी का फायदा उठाते हुए उतेरा फसल के रूप में अलसी, सरसों, उड़द, चना, तिवड़ा, गेंहू आदि की बुवाई करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि इससे जिले के किसानों को अतिरिक्त आय होने से उनकी आर्थिक स्थिति और बेहतर होगी।

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