छत्तीसगढ़

अलसी के रेशे से कपड़ा बनने की तकनीक सीख रहे हैं महिलाएं व किसान

Shantanu Roy
27 Sep 2023 6:09 PM GMT
अलसी के रेशे से कपड़ा बनने की तकनीक सीख रहे हैं महिलाएं व किसान
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छग
रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के रेवेन्द्र सिंह वर्मा कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, बेमेतरा में बीस दिवसीय अलसी के रेशे से धागाकरण प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने किया। इस अवसर पर कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना तथा उपरियोजना वेस्ट टू वेल्थ के अंतर्गत संचालित परियोजना लिनेन फ्राम लिनसीड स्टाक के प्रयोगशाला भवन का लोकार्पण भी किया।
कुलपति डॉ. चंदेल ने इस अवसर पर कहा कि इस परियोजना के अंतर्गत पूर्व में विकसित अलसी के डंठल से कपडा बनाने की तकनीक में आवश्यक परिशोधन कर औधोगिक स्तर पर कपडे बनाने की सुगम तकनीक विकसित की जाए और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि इस तकनीक से महिलाओं एवं किसानों की में आय में उत्तरोत्तर वृद्धि हो। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के तहत अलसी के डंठल से कपडा बनाने की तकनीक को इस तरह बढ़ावा दिया जाए कि भविष्य में बड उद्यमी इसमें रुचि दिखायें।
डॉ. चंदेल ने वैज्ञानिकों को सुझाव दिया कि अलसी के रेशे के साथ-साथ अन्य प्रचलित रेशा को मिलाकर कपडा बनाने की तकनीक विकसित कर उनकी गुणवत्ता जांच कर आम जनता के लिये उपलब्ध करायें और कपड़े की कीमत को कम करने का प्रयास करें। उन्होंने वैज्ञानिकों से आव्हान किया कि वे कृषि में रेशे वाली अन्य फसलें जैसे अरंडी, भिन्डी, आदि का धागा बनाने के लिये अनुसंधान करें जिससे इन फसलों का भी उपयोग ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधारने में मदद मिलें। उन्होने प्रयोगशाला में उपलब्ध सुविधाओं को देखकर प्रसन्नता व्यक्त की तथा संस्था में कार्य कर रही महिलाओं को प्रोत्साहित किया कि इस काम को अपना कर वे अपनी आर्थिक परिस्थिति को सुधार सकते है। इस परियोजना के अंतर्गत ग्रामीण महिलायों को धागा एवं कपडा बनाने का प्रशिक्षण जिला खनिज संस्थान न्यास बेमेतरा के वित्तीय सहयोग से दिया जा रहा है।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम से प्रशिक्षित महिलाओं को प्रशिक्षण उपरांत धागा बनाने का चरखा प्रदान किया जायेगा, जिससे ये महिलायें संस्था से अलसी का रेशा लेकर अपने-अपने घर में धागा बनाने का काम करेंगी। महिलाओं द्वारा निर्मित धागे को संस्था द्वारा एक हजार रुपये प्रति किलो की दर से क्रय किया जाएगा। महिलाओं को प्रति सप्ताह संस्था के मानक के अनुसार धागा तैयार कर देना होगा। इसमें महिलाओ को धागा बनाने के लिये अधिकतम मात्रा निर्धारित नहीं की गई है। इस तरह से प्रत्येक महिला तीन से चार हजार रुपये प्रति माह अपने घरेलू कार्य करते हुये कमा सकती हैं तथा अपने जीवन स्तर को खुशहाल बना सकती है। इस अवसर पर अधिष्ठाता डॉ. आर.एन. सिंह, नोडल आफिसर डॉ. के.पी. वर्मा, वैज्ञानिगण, कृषि विज्ञान केन्द्र बेमेतरा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं विषय वस्तु विशेषज्ञ तथा छात्र-छात्रायें उपस्थित थे।
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