जिंदगी के विजेता: साइकेट्रिक नर्स और मनोचिकित्सक से इस शख्स को नशे से मिली आजादी
अम्बिकापुर। दोस्तों की महफ़िल से नशे की शुरुआत क्या हुई, 36-वर्षीय शंकर रजवाड़े (बदला हुआ नाम) का तो जीवन ही बदल गया । सामान्य जीवन जीने वाले शंकर का पूरा जीवन अंधकारमय हो गया । नकरी लगभग जाती रही और बीवी और बेटा छोड़ कर चले गए ।
``सही समय पर उपचार न करवाया होता तो मानसिक स्थिति और ज्यादा बिगड़ जाती । उपचार में पूरा एक वर्ष लगा लेकिन अब बहुत बेहतर हूँ और सामान्य जीवन जी रहा हूँ,'' शंकर बताते है । नशे से अब उन्होंने पूरी तरह तौबा कर ली है ।
कृषक पिता का इकलौता बेटा शंकर, शासकीय विद्यालय में चपरासी के पद पर नौकरी कर रहा था| दो वर्ष पहले दोस्तों की बुरी संगत और दबाव की वजह से उसने शराब पीना शुरू क्या किया कि आदत ही लग गयी और बाद में गांजा भी पीना शुरू किया जिसके वजह से उसकी मानसिक स्थिति भी बिगड़ गई थी । विचित्र और अनुचित व्यवहार करना उसकी आदत बन गयी| गाली गलोच करना, कानों में आवाजें आना, भ्रमित होना, पत्नी के साथ मारपीट करना, डर महसूस होना, काम करने में मन नहीं लगना, अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाना, और नशा करने की तीव्र इच्छा होना जैसी परेशानी होने लगी थी जिसके वजह से वह अपना काम भी ठीक से नहीं कर पाता था और कुछ महीनों के बाद उससे वेतन मिलना भी बंद हो गया था।
``वेतन न मिलने के कारण घर में आर्थिक तंगी होने लगी थी । मारपीट करने की वजह से पत्नी और बेटा भी मुझसे अलग हो गए थे| मुझे तो पता भी नहीं था कि मेरे साथ क्या हो रहा है या मैं गलत व्यवहार कर रहा हूं। जब मैं ठीक हुआ तो मेरे घरवालों ने मुझे बताया मेरे अंदर ये सब लक्षण थे| मेरे पिताजी बहुत दुखी हो गए थे,'' शंकर ने बताया।
मितानिन दीदी की रही महत्वपूर्ण भूमिका
``एक दिन गांव की मितानिन ने पिताजी को नशा मुक्ति और मानसिक रोग के इलाज की सुविधा के बारे में बताया और वह मुझे नवापारा स्थित स्पर्श क्लिनिक लेकर आयी जहाँ पर मेरा इलाज किया गया और काउंसलिंग भी की गई,'' शंकर ने बताया|
मनोचिकित्सक के मार्गदर्शन में हुआ इलाज
मनोचिकित्सक डॉक्टर रितेश सिंह द्वारा शंकर राजवाड़े का इलाज किया गया । कितनी बार काउंसलिंग की आवश्यकता होगी और इनके व्यवहार परिवर्तन के लिए क्या-क्या उपाय किए जाएं, इन सब के बारे में बताया गया और काउंसलिंग के लिए साइकेट्रिक नर्स को नियुक्त किया गया ।
साइकेट्रिक नर्स द्वारा की गया काउंसलिंग
साइकेट्रिक नर्स नीतू केसरी, जिसने शंकर की काउंसलिंग की, ने बताया मानसिक स्वास्थ्य में कुछ टूल्स होते हैं जिसका प्रयोग मरीज के मानसिक व्यवहार को समझने के लिए किया जाता हैं| नशा जीवन का नाश करता है । नशा छोड़ने के लिए मरीज में भी दृढ़ इच्छाशक्ति होना जरूरी है जो शंकर में थी ।
``हमने उनको शुरुआती बातचीत में सलाह दी कि वह 21 दिन तक नशे से दूर रहें फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाया । इसके साथ दवाइयां और काउंसलिंग भी की गयी| ऐसा करते करते उनकी नशे की आदत छूट गई| इसके लिए अस्पताल से निशुल्क दवाइयां भी उपलब्ध कराई गई । जिले में स्पर्श क्लीनिक के माध्यम से निशुल्क इलाज की व्यवस्था है साथ ही व्यक्ति की जानकारी भी गोपनीय रखी जाती है,'' नीतू ने बताया ।
पिता ने निभाई जिम्मेदारी
शंकर के पिता ने काउंसलिंग के दौरान मिले निर्देशों का अक्षर सा पालन किया| उन्होंने शंकर की समस्त गतिविधियों पर निगाह रखी और साथ ही किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर शंकर को परामर्श भी दिया । धीरे-धीरे शंकर के व्यवहार में परिवर्तन हुआ और लगभग एक वर्ष के बाद आज वह एक सामान्य जीवन जी रहे हैं । उनको किसी भी प्रकार के नशे की जरूरत नहीं होती है । अब शंकर जिंदगी के असली विजेता बने है ।
शंकर कहते है: ``अब मैं सामान्य हो गया हूं और मैं अपनी ड्यूटी अच्छे से कर रहा हूं| मेरे बर्ताव में परिवर्तन आया है । मानसिक समस्या के कारण गांव के लोग मुझ से डरते थे और मुझे अजीब नज़रों से देखते थे| अब सब मुझे स्वीकार कर चुके हैं और मुझसे अच्छा व्यवहार करते हैं । मैं अपने को एक स्वयंसेवक के रूप में स्थापित करना चाहता हूं ताकि मानसिक समस्या से जूझ रहे लोगों को सही समय पर स्पर्श क्लिनिक तक पहुंचा सकूं और उनको बेहतर जीवन जीने का मार्ग दिखा सकूं अब यही मेरी सबसे बड़ी कोशिश होगी,'' शंकर कहते है ।