छत्तीसगढ़

ये कैसा नेशनल मोनेटाइजेशन, क्या है इसके पीछे का माजऱा...?

Nilmani Pal
3 Sep 2021 5:25 AM GMT
ये कैसा नेशनल मोनेटाइजेशन, क्या है इसके पीछे का माजऱा...?
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ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव

रायपुर। सरकारी सम्पत्तियां बेचने से केंद्र सरकार द्वारा देश की परिसम्पत्तियों को एक प्रकार से निजी हाथों में गिरवी रखने के बहाने छह लाख करोड़ जुटाने की योजना पिछले दिनों पेश की है। केंद्र सरकार ने इसे नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन का नाम दिया है। और केंद्र सरकार ने इस पर यह सफाई दी है कि इन सम्पत्तियों की जमीन को बेचा नहीं जायेगा अब सवाल ये उठता है कि इसके पीछे का माजऱा क्या है। कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल इसके विरोध में देशभर में जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि केंद्र सरकार की बात सही है या विरोध प्रदर्शन कर रहे विपक्ष की बात सही है ? एक सवाल यह भी उठता है कि क्या नियत तिथि तक अगर सरकार को अपनी कमाई का लक्ष्य पूरा होते नहीं दिखाई देगी तब क्या होगा। उस वक्त सरकार उन सम्पत्तियों को वापस लेगी या कमाई का लक्ष्य पूरा करने के लिए उक्त संपत्ति की जमीन को भी निजी हाथों को बेचना मज़बूरी तो नहीं बन जाएगी। याद होगा अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार द्वारा फाइव स्टार होटलों को काफी कम कीमत पर निजी घरानों को बेच दिया था जिसका परिणाम लोग भूल गए हैं, जैसे पेट्रोल का दाम 90 रूपये लीटर हुआ था, तब हायतौबा मचा गया था, आज रायपुर में ही पेट्रोल 103 रूपये से भी ज्यादा हो गया है, जो अब लोगों की आदत में शुमार हो गया है, रसोई गैस का दाम 300 से 970 कर 300 रूपये सब्सिडी के रूप में कुछ दिन मिला, उसके बाद अब लगभग सब्सिडी बंद हो गया। लोग मजे से रसोई गैस सिलेंडर का 970 रूपये दे रहे हैं कोई चिल्लापुकार नहीं हो रहा है, उसी तरीके से मान लीजिये किसी सरकारी कंपनी या उसकी जमीन बिकी तो आम जनता के पास सोचने समझने का उतना वक्त ही नहीं है कि किसका क्या बिका क्योंकि उपरोक्त संपत्ति में आम जनता का कोई भागीदारी नहीं है। लोग यह भी सोचने लगे हैं कि सरकार की संपत्ति सरकार बेचने वाली, हमें क्या। हालांकि सरकार का दावा है कि किसी भी कीमत पर जमीने नहीं बेचीं जाएगी। जनता में खुसुर-फुसुर है कि सरकारी सम्पत्तियों को बेचने का कोई नया तरीका तो नहीं। सभी सरकारी सम्पत्तियों पर अगर बड़े उद्योगपतियों का कब्ज़ा हो जायेगा तो छोटे और मझोले उद्योगपति कहां जायेंगे उनके यहां ताले लग जायेंगे, रोजगार की भी समस्या उत्पन्न होगी, बेरोजगारी भी बढ़ेगी। बहरहाल जो भी हो सरकार की मंशा क्या है, वो ही जाने लेकिन जनता को परेशानी का सामना न करना पड़े । विडंबना यह भी है कि जब विपक्ष में होते हैं तो मंहगाई पर बड़ा सवाल उठाते हैं और जब सत्ता में आते हैं तो मंहगाई के जिम्मेदार विपक्ष को बताते हैं।

बंगाल में अब नेता टीएमसी की ओर

एक बार किसी ने सत्ता का स्वाद चख लिया फिर दूसरा स्वाद पसंद नहीं आता यानी जिसका दबदबा कायम हुआ वो उस दबदबे को कायम रखना ही चाहता है। इसी कड़ी में नेताओं के पाला बदलने को भी देखा रहा है। ताजा मामला पश्चिम बंगाल का है, जहां चुनाव के पहले भाजपा प्रवेश करने वाले नेताओं की लाइन लगी थी लेकिन अब भाजपा बुरी तरह से चुनाव हार गयी है अब वापस टीएमसी की ओर भागने लगे हैं क्योंकि भाजपा में रहने से दबदबा कायम नहीं रहेगा। और भाजपा से आये नेता तरह-तरह से आरोप भी लगा रहे हैं।

भूपेश के नक्शे कदम पर योगी

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कई योजनाओं को केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा पुरस्कार मिल चुका है। कई केंद्रीय मंत्री जनकल्याणकारी योजनाओं की तारीफ कर इसे पूरे देश में लागू करने की भी बात कह चुके हैं। अब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी गोधन न्याय योजना का अनुसरण करते हुए घोषणा की कि छत्तीसगढ़ के तर्ज पर गोबरधन सेल का गठन होगा और पूरे प्रदेश में बायो गैस प्लांट खोले जायेंगे । उसके लिए उत्तरप्रदेश सरकार किसानो से गोबर खरीदेगी।

किसानो की मूल समस्या का समाधान हो

करनाल में किसानों पर लाठीचार्ज को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लौल खट्टर और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भिड़ गए है। दोनों किसान हितैषी होने का दावा करने के साथ आंदोलन को लेकर बड़ी लाइन खींचने में लगे हुए है। आरोप-प्रत्यारोप कर नेता, जनता और किसानों का ध्यान भटका रहे है। मूल समस्या पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। किसानों की मांग पूरी करने और तीनों किसान कानून रद्द कराने नेताओं को दबाव बनाने चाहिए न कि खोखली राजनीति और बयानबाजी ऊपर उठकर किसानों की मांग को मंजूर करने केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए । नेताओं की नूरा कुश्ती किसान अच्छी तरह समझते है। किसानो की बात सरकार सुन नहीं रही है दूसरी ओर किसान भी अपनी एक सूत्रीय मांग पर अड़े है कि काले कृषि कानून सरकार वापस ले। खट्टर सरकार के एसडीएम पुलिस वालो यह भी कहते पाए गए कि किसानो का सिर फोड़ दो। छत्तीसग? में इसी प्रकार की हरकत कलेक्टर ने की थी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कलेक्टर को तत्कात बिस्तर समेटने आदेश दिया था। जिस प्रकार से बजुर्ग किसानो को करनाल में दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया अंग्रेजों ने भी ऐसी हिमाकत नहीं की थी।

राहुल गांधी की यात्रा का बेसब्री से इंतजार

बचे निगम-मंडलों में जगह पाने के लिए पुराने और खाटी कांग्रेसी नेता राहुल गांधी की यात्रा का बेसब्री सेे इंतजार कर रहे है। ढाई साल बाद निगम मंडलों में नियुक्ति हो गई, जिसमें कुछ जमीनी नेता सत्ता के लाभ से वंचित हो गए । उन्हें उम्मीद है कि शेष बचे निगम मंडलों में उन्हें जगह मिलना तय है। क्योंकि राहुल गांधी से कार्यकर्ताओं सीध बातचीत करेंगे। इस दौरान कार्यकर्ता अपनी बात रख सकेंगे। वैसे भी कांग्रेस में बरवाही का दौर चल रहा है, सत्ता और संगठन के साथ कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय बनाकर चलने के लिए राहुल गांधी पहले ही कह चुके है। इससे कार्यकर्ताओं की उम्मीद बढ़ गई है।

मुख्यमंत्री भूपेश किसानों के साथ, तो भाजपा किसके साथ

कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि भाजपा के नेता को बताना चाहिये कि ये राजीव गांधी किसान न्याय योजना के पक्ष में हैं या नहीं। भाजपा नेता स्पष्ट करें कि वे किसानों के साथ न्याय के पक्ष में खड़े है या अन्याय के पक्ष में खड़े है। इस वर्ष अवर्षा की स्थिति बनी हुई है। सूखे की आशंकायें किसानों के सामने खड़ी है। ऐसे समय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ी महत्वपूर्ण घोषणा की है कि राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ 9000 रूपयें प्रति एकड़ की दर से किसानों को मिलेगा। चाहे सूखा पड़े, चाहे अकाल पड़े छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार किसानों के साथ खड़ी है।

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