छत्तीसगढ़

15,000 की वेबसाइट, 50,000 का विज्ञापन, बना गले की फांस

Admin2
9 Nov 2020 5:42 AM GMT
15,000 की वेबसाइट, 50,000 का विज्ञापन, बना गले की फांस
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एक मात्र भ्रष्ट अधिकारी ने चहेतों को बांट दी रेवडिय़ां

विज्ञापन और अधिमान्यता कार्ड के लिए गैर पत्रकार, गुंडे-माफिया भी वेबसाइट बना कर करने लगे पत्रकारिता

जसेरि रिपोर्टर

पोर्टल वाले पत्रकारों को अधिमान्यता देने की घोषणा कर सरकार फंसी

मुंह लगे नेताओं के दबाव में अधिकारी सरकारी फंड का बंदरबांट करने रच रहे साजिश

भाजपा सरकार के उपकृत अधिकारी कांग्रेस सरकार के लिए खोद रहे गड्ढा

जी हुजुरी करने वाले छुटभैया नेताओं से छुटकारा पाने अधिकारियों ने वेबपोर्टल खोलने की सलाह दी और सरकार की बढ़ाई मुश्किलें

बगैर आरएनआई रजिस्ट्रेशन और फर्जी गूगल एनालेस्टिक रिपोर्ट वालों ने भी खोल लिए पोर्टल

रायपुर। प्रदेश की भपेश सरकार की पत्रकारों के प्रति उदारता किसी से छिपी नहीं है। सरकार पत्रकारों को सम्मानजनक जीवनयापन कर सके इसके प्रति कापी गंभीर है। इसी गंभीरता और भावावेश में सरकार ने पोर्टल के पत्रकारों को अधिमान्यता देने की घोषणा कर अपने पैर में कुल्हाड़ी मार ली है। इस घोषणा के साथ भाजपा और कांग्रेस के छुटभैया नेताओं के मुंह लगे गुंडे-बदमाशों ने वेबपोर्टल खोलकर पत्रकार बन गए अब इनपेनलिस्ट विज्ञापन जारी करने और अधिमान्यता की मांग को लेकर बयानबाजी शुरू कर दी है। कांग्रेस की सत्ता में आते ही जहां पहले 100 के अंदर ही वेब पोर्टल थे, दो साल में उसकी संख्या 3 हजार पार कर दी है। जो अब सरकार की परेशानी की सबब बनने वाली है। जनता से रिश्ता लगातार वेबपोर्टल चलाने वालों के नाम से वसूली के करनामों को अधिकारियों और सरकार के संज्ञान में लाते रही है।

पहले से बनी सरकारी गाइड लाइन का पालन नहीं

केंद्र सरकार की गाइड लाइन में वेबपोर्टल का आरएनआई में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है, लेकिन वेबपोर्टल का रजिस्ट्रशन होना चाहिए, साथ ही उसके समाचार प्रदाता अपने आप को पत्रकार नहीं लिख सकते और न ही आई कार्ड जारी कर सकते है। न ही उन्हें अखबार की तरह सरकारी विज्ञापन का लाभ मिल सकता है। लेकिन यहां भाजपाई अधिकारियों सरकार को परेशान करने की नीयत से पोर्टल को विज्ञापन देकर लाभ पहुंचाने की योजना बनाकर मंजूर करवाने के साथ अधिमान्यता देने की घोषणा करवाया और भाजपा शासन में जनसंपर्क सहित तमात विभागों में खुरचन पानी मिलते रहे उसके लिए उन्हें वेब पोर्टल खोलने की सलाह ही सरकार के विभाग में बैठे भाजपा माइंडेट अधिकारियों ने दी, जिसके टसलते दो साल में स1 की जगह तीन हजार वेबपोर्टल पूरे प्रदेश में खुल गए आए और अधिकारियों की मेहरबानी से विज्ञापन सूची में भी इनपेनलमेंट हो गए । भाजपा सरकार में अधिकारियों छुटभैया नेताओं से पुराना लेनदेन रहा है जो सत्ता बदलने के साथ उनसे लोग उनसे जुड़े हुए है। उनको लाभ पहुंचाने और सरकार की परेशानी बढ़ाने वाला नुख्सा साप्ताहिक,पाक्षिक मासिक मैगजिन वालों को दे दिया, वे रातोरात पोर्टल मालिक बनकर विज्ञापन के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाने के साथ पुराने संपर्कों का वास्ता देकर अधिकारियों पर दबाव बनाया और अदिकारियों ने पुराने पोल खुलने से बचने के लिए वेबपोर्टल खोलने की घुट्टी दे दी और गेंद सरकार के पाले में डाल दी।

अधिकारियों को भ्रम की हम चला रहे सरकार

सुपरसिट मंत्रियों के कार्यालय और बंगले में ड्यूटी करने वालेे अधिकारियों को यही भ्रम रहता है कि हम ही सरकार चला रहे है, हमारे बिना कोई कुछ भी नहीं कर सकता है। सरकार तो आती जाती रहती है, सरकार किसी की भी हो अपना रूतबा बरकरार रखने पल्टीमार अधिकारी तुरंत चोला बदल कर रंग बदल लेते है। संघ से जुड़े जनसंपर्क विभाग में सैकड़ों अधिकारी और कर्मचारी पूर्व डीपीआर राजेश सुकुमार टोप्पो की तरह वर्तमान डीपीआर को मुगालते में रखकर विज्ञापन की नई नीति अख्तियार कर अखबारों में से कुछ खास को विज्ञापन देने की नीति और जनसंपर्क में लूट मचाने की नई योजना बनाई है। विज्ञापन से वंचितों को कमीशन की नई तकनीक के साथ बेव पोर्टल चलाने की सलाह देकर यूपी, बिहार, राजस्थान, झारखंड और दक्षिण भारत से जुड़े अधिकारी सरकार की लोकप्रियता की परवाह किए बगैर बेवपोर्टल खोलने का फंडा देते फिर रहे है। जिसमें उनका गणित फिट हो गया है। इस समय बड़े अधिकारियों के संरक्षित बेव पोर्टलों की बाढ़ आ गई है। जिन्हें नियम कायदे को ताक में रखकर धड़ाधड़ विज्ञापन रिलीज किया जा रहा है। और यह जचाने की कोशिश की जा रहा है कि सरकार के लोक कल्याणकारी योजनाओंं को प्रमुखता से पूरे देश में प्रचार प्रसार किया जा रहा है। अंगद की तरह जनसंपर्क विभाग में जमे अधिकारियों का मानना है कि सरकार बदले चाहे नहीं बदले, उनका पावर नहीं बदलना चाहिए, बस इसी के फिराक में बड़े अधिकारी अतिमहत्वाकांक्षा के साथ आगे बढ़ते हुए मुख्यमंत्री के शरणागत होकर मनचाही जगह में स्थान पाकर फिर से जनसंपर्क विभाग में कानून कायदे की धज्जियां उड़ाने भिड़ गए है।

पुराना ढर्रा बरकरार

दरअसल पिछले सरकार के दौरान अखबारों, न्यूज चैनल्स और वेबसाइटस को विज्ञापन देने का जो ढर्रा बना हुआ था वह सरकार बदलने के बाद भी चला आ रहा है। सरकार बदलने के बाद कुछ मामलों की जांच और अधिकारियों पर कार्रवाई के आदेश के बाद लगा था कि अब जनसंपर्क विभाग में काम-काज का तरीका बदलेगा और उसमें पारदर्शिता आएगी लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। कमीशन खोरी में लिप्त अधिकारी आज भी उसी ढर्रे पर अपने चहेतों को भर-भर कर विज्ञापन जारी कर रहे हैं। इसके लिए वे अपने ही बनाए विज्ञापन नियमों और नीतियों को भी किनारे रखने में संकोच नहीं कर रहे हैं। कुछ साल पहले तक छोटे दैनिक, साप्ताहिक-पाक्षिक और मासिक अखबारों-पत्रिकाओं की लंबी फेहरिस्त हुआ करती थी जिनके नुमाइन्दे अधिकारियों के आगे-पीछे घुम-घुमकर कमीशन का लालच देकर तथा तब के मंत्री विधायकों की चापलूसी कर अपने लिए विज्ञापन स्वीकृत करा लेते थे, अब डीएवीपी की सख्ती के बाद जब ऐसे अखबारों-पत्रिकाओं की संख्या कम हुई तो अधिकारियों ने अपने चहेतों को 15000 में वेबसाइट बनवाने का तरीका बताकर उन्हें महीने में 50,000 तक विज्ञापन स्वीकृत कर उनकी दूकानदारी चालू रखने का फार्मूला इजाद कर दिया।

विभाग ने बाकायदा इन वेबपोर्टल्स को विज्ञापन जारी करने के लिए गुगल एनालिस्टिक को आधार बनाया लेकिन जब सूचीबद्ध वेबसाइट्स द्वारा उपलब्ध कराए गए गुगल एनालिस्टिक की जानकारी मांगी जाती है तो कहा जाता है कि उपलब्ध नहीं है।

कांग्रेसियों को भी है शिकायत

पिछले 15 सालों में भाजपा शासनकाल कांग्रेस से जुड़े लोगों को तथाकथित भाजपा समर्थित अधिकारियों ने बहिष्कृत कर दिया था। अब पिछले डेढ़ साल से कांग्रेस की सरकार आने के बाद भी भाजपाई समर्थित अखबारों और बेबपोर्टलों को ही भरपेट विज्ञापन जारी किया जा रहा है। जबकि नई सरकार की नीति को अधिकारियों ने अपने विवेक से शिथिल कर नया विकल्प ढूंढ लिया है।

प्रदेश में नई सरकार के साथ अधिकारियों की मेहरबानी से सैकड़ों बेव पोर्टल लांच हो गए और सरकारी धन के हिस्सेदार बन गए है। कांग्रेसियों का भी आरोप है कि सरकार की विज्ञापन नीति के अनुसार सूची में पंजीकृत होने के बाद भी उन्हें अन्य बेव पोर्टल और अखबारों की तरह विज्ञापन रिलीज नहीं हो रहे है, इसके बनिस्बत रमन सरकार में जी हुजुरी करने वाले अखबार और वेबपोर्टलों को ही धड़ल्ले से विज्ञापन जारी हो रहे है। जबकि जारी होने वाले अखबारों की प्रसार संख्या और बेवपोर्टलों की डेली स्कोर का सत्यापन नहीं कर पुरानी नीति की दुहाई देते हुए विज्ञापन जारी किया जा रहा है। जबकि वे भाजपा से जुड़ी खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित करते है और सरकार के जनहित वाली खबर को स्तान नहीं देते है।

जनसंपर्क विभाग में दोहरी नीति की गंगा बह रही है जिसमें पुराने भरेपेट वालों को ही हाथ धोने का मौका दिया जा रहा है। कांग्रेसियों का आरोप है कि सरकार बदलने के बाद भी अधिकारियों की नियत नहीं बदली है, वे पुराने ढर्रे पर ही चल रहे है।

एक मात्र भ्रष्ट अधिकारी ने चहेतों को बांट दी रेवडिय़ां

भाजपा और कांग्रेस से जुड़े छुटभैया नेताओं ने वेबपोर्टल खोलकर धडड़ाधड़ जनसंपर्क विभाग इनपेनलमेंट के लिए अर्जी लगा दी, जिसके अर्जी रिजेक्ट हुए ऐसा कोई कानून ही नहीं है। ये कानून इन अधिकरियों ने ही बनाया जिसमें अपनों को उपकृत किया जा सके। मंत्रियों के बंगले के चक्कर काटने वाले और माइक लेकर मंत्रियों और अधिकारियों को इर्दगिर्द घूमने वाले छुटभैया नेताओं के संरक्षित पोर्टल वालों की तो निकल पड़ी है। वे तो पत्रकार बोने के साथ बकायदा आईकार्ड जारी कर पत्रकार लिख रहे है। लेकिन यहां तो जनसंपर्क में जमे वहीं अधिकारी जनसंपर्क विभाग और सहयोगी संस्थान संवाद में पिछले 15-20 सालों से जमें हुए है। ये तथाकथित बड़े अधिकारी विज्ञापन के तौर पर अपने चहेतों को जमकर रेवडिय़ां बांट रहे हैं। इसके लिए उन्हें सरकार से अनुमति लेने की भी जरुरत नहीं पड़ रही है।

फैक्ट फाइल

15 हजार की वेबसाइट को बगैर किसी इंटलेक्चुअल मापदंड के इनपेनलमेंट साल भर के लिए कर दिया गया

कड़े मापदंड गूगल एडसेंस की रेवेन्यू और यूजर बिबेहियर चार्ट की जांच

मान्यता प्राप्त सरकार के व्दारा रजिस्टर्ड कॉम- स्कोर तथा डीएवीपी से मान्यता प्रप्त आडिट साइट से आडिट अनिवार्य

डीएवीपी के निर्धारित मापदंड़ों को पूरा करने वाली वेबसाइट को ही इनपेनलमेंट किया जा सकता था।

फर्जी गूगल एनलेस्टिक की जांच प्रत्येक माह करना विज्ञापन नीति में शामिल करना था जिससे कि नियमित वेबसाइट चल रही है या विज्ञापन लेकर एक दो खबर लगाकार सरकार से जबरन विज्ञापन के नाम पर वसूली कर रही जांचा जा सकता था

अधिकांश न्यूज वेबपोर्टल साइट छोटे से इंटरनेट कनेक्सन से मोबाइल में संचालित बगैर किसी कर्मचारी के स्वयं-भू फर्जी पत्रकारों की है

समय रहते कड़े नियम और इंटलेक्चुअल मापदंड एवं इंटलेक्चुअल प्रापर्टी एक्ट को भी नहीं बनाया गया, 5 साल में धीरे -धीरे करते 10 हजार वेबसाइट प्रदेश में सरकार, अधिकारी और विभाग का सिरदर्द बनने के लिए तैयार

कमोबेश वेबसाइट के पत्रकारों को अधिमान्यता देने वाली समिति में एक भी ऐसा सदस्य नहीं है, एक सरकारी सदस्य को छोड़कर जिसको गूगल एनालेस्टिक के नियम अधिनियम तथा वेबसाइट संचालन का लंबा अनुभव और इंटलेक्चुअल प्रापर्टी एक्ट की संपूर्ण जानकारी मिली हो या जानकारी रखने का तरीका मालूम हो न ही सही टेक्निकल एक्पर्ट और इंटरनेट और वेबसाइट के साफ्टवेयर इंजीनियरिंग का ज्ञान भी नहीं

जानकारी अनुसार 10 हजार न्यूज वेबपोर्टल निर्माण की ओर अग्रसर है जिसमें छुटभैया नेता दादा, गुंडा माफिया, रेत माफिया, बिल्डर माफिया, अवैध प्लाटिंग वाले माफिया, सट्टा और जुआ अड्डा चलाने वाले माफिया पूरी तैयारी के साथ न्यूज वेबपोर्टल तैयार कर अपने आफिसों में बकायदा बोर्ड और पोस्टर चिपका दिए है। और प्रेस का कार्यालय न्यूज पोर्टल का कार्यालय लिखा जाना आम बात हो गई है।

आकर्षित होने का एकमात्र कारण अधिमान्याता पत्रकार कार्ड की आसानी से उपलब्धता सरकार की नीति के अनुसार वेबपोर्टल के पत्रकारों को देने के बाद कुकुरमुत्ते के जैसा गली-गली में वेबपोर्टल के दफ्तर खुल गए है।

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