ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव
पिछले दिनों अर्नब गोस्वामी अपने घर से गिरफ्तार कर लिए गए थे किसी की वफा के चलते जल्दी बाहर भी आ गए । जनता में खुसुर फुसुर है कि अर्नब गोस्वामी की क्या विशेषता थी जो इतनी जल्दी बाहर आ गए । बहरहाल जनता को मालूम है कि वे पत्रकारिता कम और केंद्रीय सरकार के भोंपू ज्यादा बने हुए थे, सो स्वामी भक्ति का इनाम भी तो मिलना था, सरकार ने अपना इनाम दे दिया और चारों ओर एक ही धुन सुनाई देने लगा ..हम बेवफा हरगिज ना थे...।
ये कैसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है...
अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार इसलिए किया गया कि उस पर आरोप था एक इंटीरियर डिजाइनर और उसकी माँ को आत्महत्या के लिए मजबूर किया था। परिवार वाले आरोप लगा रहे थे कि काम पूरा होने के बाद भी पूरा पैसा नहीं दिया गया इसलिए मृतकों ने ऐसा कदम उठाया। अब ये सिद्ध करना पुलिस काम है हमारा नहीं। मामला आपराधिक था पत्रकारिता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से कोई लेना देना नहीं था। जनता में खुसुर फुसुर है कि केरल से हाथरस आने वाले पत्रकारों पर देशद्रोह का मामला दर्ज कर लिया जाता है,गुजरात के एक पत्रकार को इस बिना पर गिरफ्तार कर लिया जाता है कि पत्रकार ने लिखा कि मुख्यमंत्री का काम सही नहीं है,मिड- डे मील स्कीम में घोटाले को उजागर करना एक पत्रकार को भारी पड़ जाता है उसके खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कर लिया जाता है, सेना के पूर्व अधिकारी की बेटी रिया चक्रवर्ती के खिलाफ भी कोई अपराध सिद्ध नहीं हुआ, लेकिन उसे भी जेल जाना पड़ा क्योंकि अर्नब गोस्वामी ने अपने चैनल में उसके खिलाफ झूठा अभियान चलाया था। ऐसे कई उदाहरण है जिसका अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं है, ये सिर्फ चाटुकारिता है पत्रकारिता नहीं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी की निजी जिंदगी में दखल देना न्यायसंगत नहीं है आज प्राय: यही हो रहा है।
हाथी के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग
पिछले दिनों बिहार में विधान सभा चुनाव संपन्न हुआ। चुनाव के पहले राजनीतिक दलों ने खूब सभाएँ की सोशल डिस्टेंसिंग का जम कर माखौल उड़ाया गया। जब सरकार बनी तो नीतीश बाबू कोरोना के कारण पटना के गाँधी मैदान में शपथ लेने के बजाय राजभवन में लिया। जनता में खुसुर फुसुर है कि चुनाव नतीजे के पहले बिहार में कोरोना नहीं था, परिणाम आने के बाद कोरोना आ गया।
एजाज ढेबर ने कर दिखाया, अब पूरे शहर की सफाई की तैयारी में...
कहावत है कि जहाँ चाह वहां राह। बूढ़ा तालाब सफाई को लेकर जनमानस में एक बात घर कर गई थी कि कोई भी महापौर बूढ़ा तालाब की सफाई नहीं करवा सकता शायद यही बात महापौर एजाज ढेबर को लग गई, सो उन्होंने दिन रात एक कर बूढ़ा तालाब का कायाकल्प कर बता दिया जहाँ चाह वहां राह। और जनता को बोलने पर मजबूर कर दिया गुड जॉब ढेबर जी।
सुआ नाच की धूम...
दिवाली के अवसर पर पूरे छत्तीसगढ़ में सुआ नाच की धूम रहती है। सुआ नाच छत्तीसगढ़ की सभ्यता,संस्कार और गौरवशाली परंपरा है। सुआ नाच अभी छत्तीसगढ़ चैम्बर ऑफ कामर्स और हमारे मीडिया वाले भाईयों ने भी जमकर किया। चैम्बर के प्रत्याशी और उनके समर्थक तो अब मार्च महीने तक सुआ नाच कर समर्थन और आशीर्वाद मांगेंगे।
भाजपा वालों की दिवाली में कोरोना अटेक...
15 साल प्रदेश में राज करने वाली पार्टी के बड़े नेता से लेकर छोटे नेता दिवाली से लेकर भाईदूज तक नदारद रहे। सत्ता में रहने के दौरान 15 साल तक पटाखों की लड़ छोडऩे वालों के घरों में फुलझड़ी चलाते कोई नहीं दिखाई दिया। न ही भाजपाई नेता गौरी-गौरा पूजा स्थल में जाकर मत्था टेके। लगता है कोरोना का रोना है। सत्ता में नहीं है तो क्या हुआ विपक्ष में तो हैं, जनता ने ही आपको 15 साल राज करने का मौका दिया था, राज चले जाने से इतने मायूस होने की जरूरत नहीं।
दिवाली में मिठाई घोटाला...
बड़े-बड़े राजनीतिक दलों ने कुछ खास लोगों के लिए दिवाली में मिठाई और गिफ्ट देने की प्रथा चला रखी है। इससे उपकृत होने वाले लोगों की दिवाली आतेे ही आकांक्षाएं जागृत हो जाती है और वे आस लगाए बैठे रहते हैं। इस स्थिति का संबंधित राजनीतिक दल में उक्त जिम्मेदारी निभाने वाले लोग भी लाभ देखते है और कई लोगों तक मिठाई और गिफ्ट न पहुंचा कर खुद इस्तेमाल कर लेते हंै। इस बात की जानकारी छले हुए व्यक्ति को होती है तो वह इसकी शिकायत पार्टी के जिम्मेदारों को करते है तो बड़े नेता भी अपने सहयोगियों के इस कृत्य पर लजा जाते हैं। जनता में खुसुर-फुसर है कि अभी तक कई घोटाले सुने है लेकिन मिठाई घोटाला पहली बार सुन रहे है।