छत्तीसगढ़

हमको उन से वफा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है

Nilmani Pal
18 Feb 2022 6:21 AM GMT
हमको उन से वफा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है
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ज़ाकिर घुरसेना-कैलाश यादव

चुनाव तो होते रहते हैं लेकिन वर्तमान चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप ही मुख्य मुद्दा बना हुआ है। मगर इस बार के चुनावों ज्यादा ही दिख रहा है। जिस प्रकार केवल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का चलन बढ़ा है तब से आम आदमी से जुड़े मुद्दे कहीं नजऱ ही नहीं आ रहे हैं। प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री या कोई मंत्री ही क्यों न हो वे पूरे देश और प्रदेश के लिए होते हैं, लेकिन जिस प्रकार से बोल कर प्रचार किया जा रहा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि ये किसी खास के लिए ही हैं। ऐसा लगता है इनकी जिम्मेदारी किसी खास वर्ग या क्षेत्र के लिए ही महदूद है। कल दो दुर्घटनाएं हुई एक छत्तीसगढ़ में जिसमें राजिम पुन्नी मेला में जा रहीं छह महिलाओं की दुर्घटना में मौत हो गई दूसरी ओर उत्तरप्रदेश में जहां चुनाव हो रहा है, शादी समारोह में तेरह महिलाये कुआं धंसकने से काल के गाल में समा गईं। अब प्रधानमंत्री जी द्वारा उत्तरप्रदेश की मृत महिलाओं के लिए मुआवजा राशि दो-दो लाख और घायलों के लिए पचास हजार देने की घोषणा की गई। वहीं छत्तीसगढ़ की महिलाओं के लिए जहां अभी चुनाव में काफी वक्त है उनके लिए मुआवजा राशि की घोषणा की ही नहीं गई। क्या छत्तीसगढ़ के सांसद प्रधानमंत्री जी से मृतकों के परिजनों को कुछ मुआवजा दिलाने की मांग नहीं कर सकते? हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी ने कुछ मुआवजा राशि दी है वो तात्कालिक जरूरतों के लिहाज से ठीक है, लेकिन प्रधानमंत्री की घोषणा के सामने नाकाफी है। अब सवाल ये उठता है कि जहां चुनाव हो रहा हो वहां के लोगों की जान का मुआवजा ज्यादा और जहां चुनाव नहीं वहां के लोगों का कम। बहरहाल चुनाव के मौसम में दूसरी बात यह भी है कि निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव आचार संहिता में भाषण की मर्यादा तय की गई है। मगर अब शायद ही कोई राजनीतिक दल उस मर्यादा का पालन करता देखा जाता हो। खासकर सत्ता पक्ष की तरफ से कुछ अधिक इसका उल्लंघन देखा जा रहा है। यों सत्ता पक्ष को ही सबसे अधिक सवालों का सामना करना पड़ता है, उससे मतदाता और विपक्ष पूछता है कि पांच साल पहले जो वादे किए थे, उनमें से कितने पूरे किए। इसलिए जिस सरकार का कामकाज संतोषजनक नहीं रहा होता, वह अनावश्यक बातों को मुद्दा बनाकर तमाम सवालों से बचने की कोशिश करते है। संविधान और ईश्वर की सौगंध खाकर वे प्रजातंत्र के मंदिर यानी संसद भवन और विधान भवन की सीढ़ी में कदम रखते हैं लेकिन अंदर जाकर कुर्सी पर बैठते ही सौगंध को भूल कर वे जाति, धर्म, इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ कर और एक-दूसरे पर व्यक्तिगत भद्दी टिप्पणियां करके लोगों को उत्तेजित करने और उन्हें अपने पाले में खींचने का प्रयास करते हैं। कितना अजीब है कि जनता जनार्दन भी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, खेती-किसानी आदि से जुड़ी बुनियादी समस्याओं पर कोई व्यावहारिक बात नहीं कर सिर्फ जाति धर्म में उलझी हुई है या उलझा दिए गए हैं। इसी बात पर मिजऱ्ा ग़ालिब साहब ने ठीक ही कहा है- हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।

और... क्या बोल गए योगी जी

यूपी चुनाव में मतदाताओं को संबोधित करते हुए एक वीडियो में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अगर उनकी तरफ से इस बार चुनाव में कोई भूल हुई तो जल्दी ही यूपी भी कश्मीर, बंगाल और केरल बन जाएगा। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि यदि उत्तरप्रदेश भी केरल की तरह विकास के रास्ते पर चलता तो वहां जातिवाद और धर्म के नाम पर लोगों की जान न जाती। केरल की तरह यूपी में भी स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार बेहतर होता। वही विपक्ष के नेता वीडी सतीसन ने कहा कि यूपी के लोगों से चुनाव में मध्यकालीन धार्मिक कट्टरता की बजाय बहुलता और समावेशी विकास को चुनने के लिए कहा। जनता में खुसुर-फुसुर है कि योगी आदित्यनाथ जी किस नजरिये से ऐसा बोले ये तो वो ही जाने, लेकिन अगर उत्तरप्रदेश चुनाव के बाद केरल, कश्मीर और बंगाल बनता है तो जरूर उत्तरप्रदेश की जनता को फायदा ही होगा क्योकि उत्तरप्रदेश में भी कश्मीर की सुंदरता, बंगाल की संस्कृति और केरल जैसे स्वास्थ्य व शिक्षा आएगी तभी उत्तरप्रदेश में भी खुशहाली आएगी। साथ ही लोगों का जीवन स्तर भी उठेगा क्योंकि एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरप्रदेश के मुकाबले कश्मीर का प्रति व्यक्ति आय दो गुना के आसपास है वहीं बंगाल का तीन गुना और केरल का सात गुना है। उस लिहाज से उत्तरप्रदेश की जनता क्या करती है 10 मार्च को पता चलेगा।

किसको किससे खतरा...

दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब और यूपी में कुछ प्रत्याशियों को चुनाव की प्रक्रिया समाप्त होने तक सुरक्षा प्रदान की है। कुछ नेताओं को राज्य की पुलिस सुरक्षा के अलावा केंद्रीय कवच प्रदान किया जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीआईएसएफ और सीआरपीएफ को इसका जिम्मा सौंपा है। बीजेपी ने आरोप लगाया था कि सपा के गुंडों ने राज्य के मैनपुरी जिले में बघेल के काफिले पर हमला किया था। जनता में खुसुर-फुसुर है कि योगी जी ने जब सारे गुंडों को जेल दाखिल करवा दिया था तो ये कहां से फिर बाहर आ पहुंचे। यूपी में सरकार उनकी, पुलिस उनकी है तो इनको जनता के बीच जाने में डर कैसा, समझ में नहीं आ रहा। जब अभी से ही पच्चीस पच्चीस सेक्युरिटी वाले इनके साथ रहेंगे तो चुनाव जितने के बाद तो इनके जान को खतरा ज्यादा हो जायेगा। आम आदमी फिर कैसे इनसे अपनी समस्याओं को लेकर मिल पायेगा।

ये चुनाव मैं तेरे लिए क्या-क्या न बना

पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में नेताओं की मजेदार बयनबाजी सामने आ रही है जो मतदाताओं को रोमांचित कर रहे है। हाल ही में ेदेहरादून में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हरीश रावत का नाम लिए बिना कमेंट्ेस किया कि धोबी का ..घर का न घाट का वाले बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि यदि उत्तराखंड के हितों पर चोट पहुंची तो वह भौंकने के साथ काटने से भी नहीं चूकूंगा। शाह के शब्दों को उत्तराखंडिय़ों के प्रति भाजपा का निकृष्ट सोच बताते हुए रावत ने कहा कि कुत्ता तो भैरव का अंश माना जाता है, यदि मैं कुत्ता हूं, तो मैं उत्तराखंड के लिए ही न, भौंकूंगा तो उत्तराखंड के लिए ही। जनता में खुसुर-फुसुर है कि चुनाव ही ऐसा है जो बड़े-बड़े नेताओं को क्या-क्या बना देता है। अभी तो ये टेलर है मेरे दोस्तों पिक्चर तो अभी बाकी है। कुछ दिनों में यह देखने मिलेगा कि नेता अपने भाषण के हिसाब से खाल पहनकर मंच में दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए?

सपा और पसीना

पूर्वांचल में सपा का गठबंधन दल राहत कम और सिरदर्द ज्यादा बढ़ाने वाला हो गया है। नेता जी हर सीट पर अच्छा उम्मीदवार चाहते है, लेकिन सहयोगी दलों के असहयोग के चलते मामला उलझते जा रहा है। जिस पर अलग-अलग सिंबल की बजाए सपा के सिंबल पर सहयोगियों के प्रत्याशी लड़ाने पर सहमति बनाई जा रही है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि नेता जी को यह बात गठबंधन करने से पहले सोचना चाहिए था, ये स्थिति को उपस्थित होगी ही क्योंकि यहां भी विचारधारा की लड़ाई है, भले ही चुनावी गठबंधन हो गया है लेकिन वे अपने सिंबाल पर ही चुनाव लडऩे के लिए उतावले दिखाई दे रहे है। ऐसे में नेताजी का सिरदर्द तो बढ़ेगा ही, संभल कर रहिए नेता जी येन वक्त पर पसीना पोंछने वाले भी नहीं मिलेंगे।

योगी हम पर निशाना साध कर निकाल रहे भड़ास

राजनीति में कब कौन क्या कह दे कोई कह नहीं सकता,हाल ही में योगी ने जो ट्वीट किया उसमें कहा था कि भाई-बहन के आपसी विवाद और वर्चस्व के कारण कांग्रेस डूब जाएगी। इस कांग्रेस महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने योगी को खरा-खरा सुनाते हुए कहा कि मैं अपने भाई के लिए जान दे दूंगी, वहीं मेरा भाई भी मेरे लिए जान दे सकता है। इसमें कौन सा विवाद है। योगी जी मेरे और राहुल गांधी पर निशाना साध कर मोदीजी और अमित शाह पर अपनी भड़ास निकलना चाहते है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि ये गंगा घाट का पानी है गंगा-जमुना-सरस्वती की सांस्कृतिक परंपरा है। यहां कही पर निगाहें और कही पर निशाना साधने का दस्तूर है। नहीं तो योगी जी योग छोडकऱ राजनीति में कैसे रंग जमाते। अब तो योगी जी की नजर ऊपर तक पहुंचने लगी है। इसलिए गुरु और चेला के लिए योगी जी नया गुरुकुल खोल रहे है।

पंजाब में चल रहा मान न मान मैं तेरा मेहमान

पंजाब की राजनीति में चुनाव से पहले जो राजनीतिक भू-चाल आया उसमें बड़े-बड़े राजनीतिक किले ढह गए तो कुछ नए बन गए। अब रस्साकसी कै दौर चल रहा है। नवजोत सिंह सिद्धू सेलेकर चरणजीत चन्नी और भगवंत मान अपनी-अपनी सीटों में फंसते जा रहे है। अपनी सीट बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। सिद्धू का मानना है कि सब अकाली दल का खेल है। मजीठिया और सुखबीर बादल ने उनकी टिकट के लिए यह खेल रचा था, अब सिद्धू अपनी सीट से निकल नहीं पा रहे है। वही सबसे बड़ी टक्कर अमृतसर पूर्वी विस में देखने को मिल रहा है, शिरोमणि अकाली दल के नेता विक्रम सिंह मजिठिया और भगवंत मान मिलकर सिद्धू की घेराबंदी कर दी है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि ये लड़ाई सिर्फ चुनाव तक है, उसके बाद तो सभी नेता चुनाव बाद हम प्याला हम निवाला हो जाएंगे।

Nilmani Pal

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