छत्तीसगढ़

शांति के टापू में अशांति के स्वर

Nilmani Pal
26 July 2023 7:04 AM GMT
शांति के टापू में अशांति के स्वर
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राजनीतिक संपादक

छत्तीसगढ़ शांत प्रदेश है। यहां साम्प्रदायिकता के नाम पर दंगा नहीं होता। इतिहास के पन्नों को पलटा जाये तो छत्तीसगढ़ में जातीय हिंसा कभी हुआ ही नहीं। छत्तीसगढ़ की पावन धरा हमेशा गंगा-जमुनी संस्कृति से सराबोर रहा है।

बस्तर में आदिवासी समुदाय के बीच शव दफनाने को लेकर इस प्रकार का वैमनस्यता फैलाने की भी कोशिश की जा चुकी है लेकिन छत्तीसगढ़ की गिनती शांतिप्रिय और उन्नतशील राज्यों में होती है। राज्य बनने के पहले की बात हो या बाद की । कभी भी इस प्रकार की घटना नहीं हुई है। इसे बेवजह मणिपुर में हो रहे जातीय हिंसा से जोडऩा दुर्भाग्यपूर्ण है। जातिवाद की घिनौनी राजनीति का खेल इस प्रदेश में असंभव है। राज्य बनने के बाद अजित जोगी के तीन साल का कार्यकाल देखें या भाजपा के डा रमन सिंह का पंद्रह साल का कार्यकाल हो या फिर वर्तमान मुखिया भूपेश बघेल का कार्यकाल, कभी भी छत्तीसगढ़ में जातीय हिंसा या दंगा फसाद नहीं हुआ है। जातीय हिंसा या दंगा फसाद की कुछ छोटी घटनाओं को छोड़ दें तो शायद ही कोई जातीय या धार्मिक हिंसा के नाम पर रक्तपात हुआ हो। सोशल मीडिया में इस तरह भडक़ाऊ पोस्ट किया जाना एक प्रकार से आदिवासियों के मध्य तनाव और ऐसे जातीय समूह जिनकी संख्या कम है उनमें डर का माहौल बढ़ेगा। जो दीर्घकालीन समय में अराजकता का माहौल पैदा करेगा। यह देश और प्रदेश के लिए शुभ संकेत नहीं है। आखिर शांति के टापू में अशांति के स्वर क्यों सुनाई दे रही है। इस प्रकार के बयान से समाज में कटुता बढ़ेगी और लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ेगी तथा माहौल तनावपूर्ण होगा। गौरतलब है कि पूर्व विधायक और अब भाजपा के एक नेता द्वारा सोशल मीडिया में यह पोस्ट किया जाना कि मणिपुर के बाद अगला नंबर छत्तीसगढ़ का, धर्मान्तरण।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है। मणिपुर में क्या हो रहा है किसी से छुपा नहीं है। समूची दुनिया के लोग देख रहे हैं। आने वाले कुछ महीनों में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होना है, ऐसे में प्रमुख पार्टी के नेता द्वारा सोशल मीडिया में इस तरह पोस्ट किया जाना एक प्रकार से अल्पसंख्यकों को डराना ही है । जो एक प्रकार से हेट स्पीच के दायरे में आता है। पिछले दिनों से सुप्रीम कोर्ट ने नफरत फैलाने वाले भाषणों को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में बिना देर किए स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्यों से केस दर्ज करने को भी कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि ऐसा नहीं करना शीर्ष अदालत के आदेश की अवमानना होगी। राज्य सरकारें हेट स्पीच के खिलाफ कार्रवाई करने को स्वतन्त्र हैं । कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा था कि किसी भी पार्टी से कोई मतलब नहीं, हम स्पष्ट हैं उसके बाद भी इस प्रकार की डराने वाली स्पीच देना या सोशल मीडिया में भडक़ाऊ पोस्ट करना कहां तक न्याय संगत है। क्या मणिपुर में लोगों को डराने के लिए ही सब खामोश होकर तमाशबीन बने हुए हैं? यदि ऐसा है तो यह बहुत ही गंभीर मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि नफरत फैलाने वाले भाषण को देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को प्रभावित करने वाला गंभीर अपराध है। सुको ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को निर्देश दिया कि वे स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई करें। कोर्ट ने कहा भी कि ऐसे भाषण देने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करें, भले ही उनका धर्म कुछ भी हो। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि राज्य सरकारें नफरत भरे भाषणों के खिलाफ कार्रवाई करे। पीठ ने कहा था कि अदालत ने पिछले साल जनता की भलाई को ध्यान में रखते हुए अभद्र भाषा के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेने का आदेश पारित किया था। नफरती भाषणों के खिलाफ कोई शिकायत नहीं करे, तो भी एफआईआर दर्ज किया जाना चाहिए। समाज में नफरत फैलाने के मकसद से बेहद गंभीर मुद्दे पर कार्रवाई करने में किसी भी तरह की देरी किये बिना कार्रवाई की जानी चाहिए। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में ऐसा कुत्सित प्रयास किया गया था लेकिन यहाँ की जनता ने इसे अस्वीकार कर यह बता दिया है की यहां नफरत की राजनीति करने वालों के लिए कोई स्थान नहीं है।

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