कोरोना महामारी की आड़ में खूनी खेल खेलने वाले नकली रेमडेसिविर व्यापारियों का खुला चिट्ठा
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। कोरोना काल में रेमडेसिविर इंजेक्शन की बड़े पैमाने पर कालाबाज़ारी के मामले सामने आये थे। पुलिस ने रेमडेसिविर कालाबाज़ारी करते हुए कई मामलों में गिरफ्तारी भी की है। पुलिस और ड्रग विभाग ने बड़ी संख्या में इंजेक्शन भी बरामद किये है। पुलिस गिरफ्तारी तक की कार्रवाई करके आगे की कार्रवाई ड्रग विभाग को दे दिया था। लेकिन अभी तक इस मामले में पुलिस और ड्रग विभाग ये पता नहीं कर पाई है कि जब्त किये हुए इंजेक्शन असली है या नकली। इस मामले में ड्रग विभाग का ये कहना है कि अभी जो जब्त इंजेक्शन है वो वैसे ही रखे हुए है। और इंजेक्शन के असली और नकली की कार्रवाई तभी होगी कोर्ट का आदेश आएगा।
ड्रग विभाग का है ये कहना
रायपुर में दवाओं की ब्लैकमार्केटिंग और नकली इंजेक्शन के कालेधंधे में अस्पतालों के स्टाफ का भी कनेक्शन सामने आ रहा था। रायपुर पुलिस ने ऐसे ही मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया था। लेकिन सभी आरोपियों में से आधा दर्जन आरोपियों की जमानत भी हो गई है। लेकिन इंजेक्शन की असली नकली जांच अब तक नहीं हुई क्योंकि ड्रग विभाग का कहना है कि कोर्ट से जब तक आदेश नहीं आता तब तक इंजेक्शन की जांच नहीं की जा सकती।
रायपुर में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाज़ारी
राजधानी में रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने वाली एक गैंग को पकड़ा है। गैंग के सदस्य लोगों की मदद के नाम पर इंजेक्शन की व्यवस्था करते थे और फिर जरूरतमंदों को 25 हजार रुपये तक में बेचते थे। पुलिस ने गैंग के चार सदस्यों को गिरफ्तार करने के साथ उनके पास से सात इंजेक्शन भी बरामद किए। पुलिस ने गैंग के सदस्यों को शहर के सरस्वती नगर और मौदहापारा इलाके से गिरफ्तार किया है। पुलिस ने बताया कि शहर में लंबे समय से रेमडेसिविर की कालाबाजारी की सूचना मिल रही थी। पुलिस की साइबर सेल लगातार इस पर नजर रख रही थी। पुलिस की दो टीमें शहर के अलग-अलग इलाकों में रेमडेसिविर का ग्राहक बनकर घूम रही थी। इसी दौरान वे गैंग के एक सदस्य के संपर्क में आए। उसने ग्राहक बने पुलिसकर्मी को 15 हजार रुपए में इंजेक्शन बेचने की डील की। पुलिसकर्मी मरीज के परिजन बनकर इंजेक्शन लेने गए और गैंग का भंडाफोड़ किया। गिरफ्तार किए गए सदस्यों से मिली जानकारी के मुताबिक गैंग के साथ एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव भी काम कर रहा था। वही गैंग के इंजेक्शन की आपूर्ति करता था।
इंजेक्शन की कालाबाज़ारी के कई मामले
प्रदेश में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाज़ारी करने का जाता मामला सामने आया है। रायपुर पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है। दोनों के खिलाफ केस दर्ज कर पुलिस पूछताछ कर रही है। जानकारी के अनुसार राजधानी पुलिस ने सूर्यकांत यादव निवासी बलोदाबाज़ार और रोहनीपुरम निवासी विक्रम सिंह को गिरफ्तार किया है। पुलिस को दोनों के खिलाफ जानकारी मिली थी। वहीं दोनों के ठिकानों पर दबिश देकर पुलिस ने गिरफ्तार किया। पुलिस दोनों आरोपियों से पूछताछ कर रही ?है। संभावना जताई जा रही है कि इस कालाबाजारी में कुछ और लोग शामिल हो सकते हैं।
नकली रेमडेसिविर के मामले सामने आये
राजधानी में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन खपाने के आरोप में बड़ी कार्रवाई करते हुए दर्जन भर दलालों, दवा कारोबारियों और अस्पताल संचालक को गिरफ्तार किया है। इनके तार गुजरात के एक गिरोह से जुड़े हुए हैं जो नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाकर उसे बाजार में खपा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में राजधानी सहित कई शहरों में ेंरेमडेसिविर की कालाबाजारी के मामले सामने आए हैं, जिनमें कुछ कालाबाजारी, कुछ मेडिकल फिल्ड से जुड़े लोग
और कुछ सरकारी कर्मचारी भी पकड़े गए। लेकिन पुलिस ने मामले में गिरफ्तारी से बढ़कर आगे कुछ नहीं किया नतीजा रेमडेसिविर के कालाबाजारी में शामिल अस्पताल, दवा कारोबारी और इन्हें संरक्षण देने वालों पर आंच नहीं आई। पुलिस ने यह भी पड़ताल करने की जरूरत नहीं समझी कि कालाबाजारियों से जब्त इंजेक्शन और अस्पतालों में इस्तेमाल किए जा रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन असली है या नकली।
कालबाज़ारी करने वाले आरोपी जेल से बाहर
इंदौर पुलिस ने नकली रेमडेसिविर पकड़े गए सभी आरोपी से पूछताछ की थी पूछताछ में रायपुर के कई व्यापारियों का नाम आया लेकिन व्यापारियों की इतनी ताकत थी कि पुलिस पर भारी पड़ी और मामला रफा-दफा कर दिया गया। जबकि मध्यप्रदेश पुलिस ने सभी जब्त इंजेक्शन को जांच के लिए लेबोरेटरी दे दिया था। जिसके बाद सभी आरोपियों पर कार्रवाई की गई थी। लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस में कालाबाज़ारी मामलों को अपने स्तर पर रफा-दफा करना ही उचित समझा और अदालत का बहाना बनाकर स्वास्थ्य विभाग के ऊपर मामले को धकेल दिया। यह आश्चर्य किंतु सत्य बात है कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने नकली रेमडेसिविर कालाबाज़ारी मामले को गंभीरता से नहीं लेकर इंजेक्शन की जांच भी नहीं कराई। इंजेक्शन असली और नकली की जांच लेबोरेटरी में नहीं कराई इससे सीधा असर कोरोना मरीज़ों पर पड़ा और आपदा को अवसर बनाकर काली कमाई करने वाले सारे अपराधी बच गए और लोगों की जान लेने वाले आज सलाखों के बाहर घूम रहे है।
जनता से रिश्ता ने खबर प्रकाशित कर किया था खुलासा
कोरोना काल के समय जनता से रिश्ता ने समाचार प्रकाशित किया था उसमें यह स्पष्ट किया था कि अधिकांश मौतें रेमडेसिविर इंजेक्शन के लगाने के बाद ही हुई थी। सर्वे जो कब्रिस्तान और श्मशान घाटों से जो रिपोर्ट ली गई थी उसके आधार पर सभी मरीजों को लगभग रेमडेसिविर का इंजेक्शन लगाया गया था। किसी को दो इंजेक्शन लगाया गया था किसी को चार और किसी को छह लगाया था उसके बाद भी मरीज़ों की मौतें हुईं। ये आश्चर्यचकित घटना थी। जिसकी जांच पुलिस को गंभीरता से करनी थी और नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन का काला कारोबार करने वाले सभी नकली रेमडेसिविर बेचने वाले दवा व्यापारियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजना था। लेकिन छत्तीसगढ़ के एक व्यापारी नेता ने मामले में दखल देकर अपने आपको भी बचाया और नकली रेमडेसिविर के व्यापारियों को भी बचा ले गया। और व्यापारी नेता के दबाव में पुलिस ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया और अब स्वास्थ्य अमला हाथ पर हाथ धरे बैठा है, विश्वसनीय सूत्रों ने जानकारी आई है कि सभी नकली रेमडेसिविर बेचने वाले व्यापारियों से भारी लेनदेन करके मामले में समझौता किया गया है। तथा जब्ती रेमडेसिविर को असली रेमडेसिविर से बदली कर दिया गया है। जिससे अगर लैबरेटरी में असली और नकली इंजेक्शन की जांच होती भी है तो खूनी दवा कारोबारी और व्यापारी नेता बच निलकलेंगे।
कोरोना के इलाज में रेमडेसिविर का इस्तेमाल बंद, छग में 30 हजार डोज डंप होने का खतरा
कोरोना पीक के दौरान 35 हजार रुपए में बिकने वाले रेमडेसिविर के तीस हजार इंजेक्शन के अब खराब होने का खतरा बढ़ गया है। केस कम होने और डब्लूूएचओ की सिफ ारिश पर इसे गंभीर मरीजों के उपचार की गाइडलाइन से बाहर किए जाने के बाद इंजेक्शन डंप हो गए हैं। अप्रैल में इसकी किल्लत इतनी बढ़ गई थी कि अस्पतालों तक इंजेक्शन पहुंचाने का जिम्मा औषधि विभाग को लेना पड़ गया था। कोरोना की पहली लहर के दौरान इसकी खपत कम थी, मगर दूसरी लहर में केस बढ़े और रेमडेसिविर की डिमांड इतनी बढ़ गई कि बाजार से स्टाक रातों रात गायब हो गया था। इसके बाद इंजेक्शन की कालाबाजारी शुरू हुई और एक हजार से कम में आने वाला रेमडेसिविर का एक इंजेक्शन 35 हजार तक में बिकने लगा था। जरूरतमंद मरीजों तक इसे पहुंचाने के लिए राज्य शासन के हस्तक्षेप के बाद इसकी सप्लाई अस्पतालों तक की गई और निजी अस्पतालों में भी इसके नाम पर जमकर वसूली की गई। औषधि विभाग द्वारा कंपनियों से सीधी सप्लाई लेकर इसका वितरण जरूरत के हिसाब से निजी और सरकारी अस्पतालों को किया जा रहा था, इसी दौरान कोरोना के केस कम हो गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस इंजेक्शन को कोरोना मरीजों के उपचार की दवा की गाइडलाइन से हटा दिया था। इसके बाद इसकी मांग खत्म हो गई और खरीदे गए रेमडेसिविर के इंजेक्शन डंप हो गए।
औषधि विभाग ने निजी अस्पतालों की डिमांड के आधार पर स्टाकिस्ट के माध्यम से उन्हें इंजेक्शन की सप्लाई की थी। कंपनी द्वारा स्टाकिस्ट और सीएंडएफ के माध्यम से भेजे गए तीस हजार इंजेक्शन अभी गोदाम में डंप पड़े हैं। रायपुर जिला थोक दवा विक्रेता संघ के अध्यक्ष संजय रावत ने बताया कि इंजेक्शन अस्पतालों और दवा दुकानों में भी रखे हुए हैं, जो नॉन रिफंडेबल नियम के तहत खरीदे गए थे और वापस नहीं किए जा सकते।
कोरोना की स्थिति पैनिक होने के दौरान इंजेक्शन निर्माता कंपनियों द्वारा थोक विक्रेताओं को 821280 रेमडेसिविर बेचा गया था, जिसे राज्य सरकार ने अपने आधिपत्य में लेकर मांग के अनुसार सप्लाई की थी। इसके अलावा सीजीएमएससी ने लगभग 90 हजार इंजेक्शन का आर्डर दिया था, जिसमें से लगभग 40 हजार की सप्लाई हुई थी और आधे ही अस्पतालों को भेजे गए थे और बाकी स्टाक में था, जिसके भी एक्सपायर होने का खतरा है।
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