छत्तीसगढ़

अंततोगत्वा छत्तीसगढ़ से पुनिया की छुट्टी, शैलजा नई प्रदेश प्रभारी

Nilmani Pal
6 Dec 2022 6:17 AM GMT
अंततोगत्वा छत्तीसगढ़ से पुनिया की छुट्टी, शैलजा नई प्रदेश प्रभारी
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रायपुर। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व में बदलाव होने का असर प्रदेश संगठनों पर पडऩे लगा है। पिछले पांच सालों से प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी रहे पीएल पुनिया की छत्तीसगढ़ से छुट्टी हो गई है। हरियाणा की खांटी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया गया है। इस नियुक्ति को 2023 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की नई रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। प्रदेश प्रभारी बनाए जाने पर सीएम भूपेश बघेल ने कुमारी शैलजा को बधाई दी है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े की अध्यक्षता में हुई स्टीयरिेंग कमेटी की पहली बैठक के बाद नई नियुक्तियां होने लगी है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोमवार रात प्रदेश प्रभारियों के नियुक्ति आदेश जारी किए। इसमें तीन प्रदेश प्रभारियों का जिक्र है। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया है।

शक्तिकांत गोहिल को हरियाणा का प्रभारी बनाया गया है। उनके पास दिल्ली के प्रभारी की जिम्मेदारी रहेगी। वहीं सुखजिंदर सिंह रंधावा को राजस्थान का प्रभारी बनाया गया है। पिछले दिनों संगठन में विवाद के बाद राजस्थान के प्रभारी अजय माकन ने इस्तीफा दे दिया था। तबसे राजस्थान में कोई प्रभारी नहीं था। कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, पीएल पुनिया का कार्यकाल यहां पूरा हो गया था। ऐसे में उनकी जगह नई नियुक्ति की गई है। कुमारी शैलजा की नियुक्ति से प्रदेश कांग्रेस की चुनावी रणनीति में कुछ नयापन आएगा। यह पार्टी के लिए बेहद मददगार होगा।

कांग्रेस की राजनीति में मुखर चेहरा : कुमारी शैलजा को हरियाणा की खांटी राजनीति का चेहरा कहा जाता है। उका जन्म 24 सितंबर 1962 को हरियाणा के हिसार जिले हुआ था। नई दिल्ली के जीसस सेंट मेरी स्कूल में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एमफिल किया। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1990 में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनने से की। वह दो बार सिरसा व दो बार अंबाला से सांसद रही हैं। 2014 से वर्ष 2020 तक राज्यसभा सदस्य भी रह चुकी हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में अंबाला लोकसभा से चुनाव हार गई थी। वह यूपीए की दोनों सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। उनके पिता चौधरी दलबीर सिंह भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके पिता भी केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं।

सितम्बर में रायपुर आई थीं शैलजा : कुमारी शैलजा इस साल सितम्बर में पहली बार छत्तीसगढ़ आई थीं। उस समय उनको भारत जोड़ो यात्रा के बारे में प्रेस वार्ता की जिम्मेदारी मिली थी। उस समय उन्होंने प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी। कुमारी शैलजा बचपन से ही पढऩे में काफी तेज़ थीं। प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के जीसस एंड मेरी पब्लिक स्कूल और स्नातकोत्तर व एमफिल पंजाब विश्वविद्यालय से करने के बाद 1990 में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनकर शैलजा ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1991 में वे पहली बार 10वीं लोकसभा चुनाव में हरियाणा के सिरसा लोकसभा सीट से जीतीं और नरसिम्हा राव सरकार में शिक्षा और संस्कृति राज्यमंत्री रहीं। सितंबर 1995 से मई 1996 तक उक्त विभाग की केंद्रीय राज्यमंत्री रहीं। 1996 में 11वीं लोकसभा में दूसरी बार सिरसा सीट से जीत हासिल की तथा कांग्रेस संसदीय दल की कार्यकारी समिति की सदस्य बनीं।

जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा पुनिया को पड़ा भारी

प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया की विदाई की अटकलें पिछले एक साल से लग रही थी, प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम और पुनिया के सांठगांठ से निगम मंडलों में नियुक्तियों में गड़बड़ी की शिकायत लगातार छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कांग्रेसी दिल्ली जाकर हाईकमान से करते रहे है। एआईसीसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव के बाद से साफ हो गया था कि पुनिया और मरकाम को हटाया सकता है। 2017 में प्रभारी बनते ही तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस भूपेश बघेल के साथ तालमेल जमाकर मजबूती प्रदान की, लेकिन जय-वीरू की जोड़ी को तोड़कर प्रदेश की राजनीति में पुनिया राज शुरू करने की मंशा से जानबूझ कर भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के करीबियों को संगठन में जगह देने के बजाय मोहन मरकाम के साथ मिलकर नियुक्ति कर प्रदेश में कांग्रेसियों में असंतोष बढ़ाया। जिसकी समय-समय पर दिल्ली में पुनिया के खिलाफ शिकायतें होती रही। अभा कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव के बाद ही यह संकेत मिल गया था कि अब पुनिया की रवानगी तय है। संगठन में पैसा लेकर नियुक्ति की खबरें दिल्ली तक पहुंची। जिसे संज्ञान लेकर हाईकमान ने प्रभारी बदलने का फैसला लिया। यदा-कदा ढाई-ढाई साल का मुद्दा भी गरमाते रहा। लेकिन पुनिया इस मामले में मूकदर्शक बने रहे। भूपेश बघेल प्रदेश अध्यक्ष रहते पुनिया के प्रभारी बनने से पहले से ही कांग्रेस को मजबूत कर भाजपा के खिलाफ लगातार हमला कर 15 साल से सुप्त पड़ी कांग्रेस को जगा दिया था। प्रदेश भर के कांग्रेसी भूपेश बघेल के साथ कंध से कंधा मिलकार काम करने लगे। 2018 में विधानसभा चुनाव पहुंचते तक कांग्रेस पूरी तरह धारदार बन चुकी थी। भाजपा सरकार के खिलाफ हर मुद्दे पर आंदोलन कर भूपेश बघेल ने रमन सरकार की नींद हराम कर दी। तब लोगों को लगा की भूपेश ही कांग्रेस की उद्धार कर सकता है। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी तो पुनिया इसका पूरा श्रेय लेने के नियत से जय-वीरू के साथ भूपेश बघेल के सारे साथियों को भूपेश से दूरी बनाने में तोडफ़ोड़ करते रहे। जबकि संगठन प्रदेश प्रभारी का काम सत्ता और संगठन में समन्वय बनाना होता है पर पुनिया सत्ता और संगठन को बीच बेरिकेटस बन गए थे। जिसे लेकर कांग्रेसियों में असंतोष बढ़ा था। पुनिया 2017 से प्रभारी के तौर पर काम कर रहे थे, 2018 में कांग्रेस को 69 सीटों पर जीत मिलने का भी भूपेश ने पुनिया को दिया। लेकिन सरकार बनने के बाद पुनिया सुपर सीएम की तरह व्यवहार करने लगे थे। प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसियों पुनिया ने कभी आगे नहीं आने दिया। क्योंकि पुनिया जानते थे कि जो छत्तीसगढ़़ के वरिष्ठ नेता है वो उससे बहुत सीनियर है अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण जानबूढ कर वरिष्ठ कांग्रेसियों की उपेक्षा करते रहे। एक वरिष्ठ नेता ने अलाकमान को पुख्ता सबूत के साथ की थी इसका परिणाम पुनिया घर के ना घाट के। एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बेगानी शादी में अब्दुला दिवाना की भूमिका में अपने आप को छत्तीसगढ़ में रखते थे। जबकि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल एक मात्र नेता अपनी मेहनत और लगन से कांग्रेस पार्टी को सरकार में लाए थे। पुनिया का बड़बोलापन व भ्रष्टाचार की शिकायत पुनिया को ले डूबा।

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