छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में भी वेब-न्यूजपोर्टल मेें TRP जैसा खेल

Admin2
12 Oct 2020 6:52 AM GMT
छत्तीसगढ़ में भी वेब-न्यूजपोर्टल मेें TRP जैसा खेल
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फर्जी व्यूवर्स दिखाकर सरकारी खजाने की लूट, कब रोकोगे साहब...

सभी अखबार के दफ्तरों को भौतिक सत्यापन जांच के दारयरे में लाना चाहिए

सभी वेब व न्यूज पोर्टल का आईटी एक्सपर्ट के साथ मिलकर संबंधित विभाग को छापेमार कार्रवाई करना चाहिए

सरकार के खजाने में डाका डालने वाले तथा जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ करने वाले फर्जी वेबसाइड व समाचार पत्रों के दफ्तरों में तत्काल छापेमार कार्रवाई कर शपथ पत्र के अनुसार दिए गए व्यूवर्स की संख्या की सत्यता जांचना जरूरी

डीएवीपी के बनाए नियम को राज्य में लागू क्यों नहीं किया जा रहा है?

फर्जी टीआरपी दिखाने वाले संस्थान टीवी-न्यूज चैनल व वेब पोर्टल पर अभी तक एक भी एफआईआर दर्ज नहीं, कंपनी एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो

ज़ाकिर घुरसेना


रायपुर। सुशांत मामला हो या तब्लीगी मामला या फिर अन्य राजनितिक मामला जिस प्रकार से सरकार के समर्थन में माहौल बनाकर जनता का विश्वास हासिल किया था रिपब्लिक टीवी वालो ने, सब उजागर हो गया। देश के विश्वास के साथ खिलवाड़ किया ये सब टीआरपी बढ़ाने के लिए किया गया था जिससे आँख मूंदकर विज्ञापन से पैसा बटोरा जाये। मुंबई पुलिस कमिश्नर ने खुलासा किया कि टीआरपी घोटाले में पकड़े गए आरोपियों ने रिपब्लिक टीवी वालों का नाम लिया है। गौरतलब है कि टीवी चैनलों को टीआरपी के आधार पर सरकारी और प्राइवेट विज्ञापन मिलते है। टीआरपी के आधार पर विज्ञापनों के दर तय होते है.. ठीक उसी प्रकार अख़बार में विज्ञापन उसके प्रसार संख्या के आधार पर विज्ञापन मिलते है अखबारों को ऑडिट ब्यूरो ऑफ़ सक्र्युलेशन्स द्वारा प्रसार संख्या प्रमाणित की जाती है। अब सवाल उठता है कि रिपब्लिक टीवी हो या अन्य जो भी चैनल इस प्रकार की फर्जी टीआरपी दिखा कर सरकार और प्राइवेट कम्पनियों से विज्ञापन लिया गया है इसकी जाँच होनी चाहिए, उनके खातों की भी जाँच होनी चाहिए। गिरफ्तार आरोपियों ने रिपब्लिक टीवी का नाम लिया और रिपब्लिक टीवी वालो ने इंडिया टुडे का नाम लिया है। रायपुर शहर में भी ऐसे कई दलाल घूम रहे हैं जो हर चैनल से टीआरपी बढ़वाने का दावा कर पैसा ऐंठ रहे है।

आज पूरे देश में रिपब्लिक टीवी वालो का शोर है की ये लोग टीआरपी घोटाला कर रहे है पैसा देकर टीआरपी बढ़ा रहे है। इस सम्बन्ध में मुंबई पुलिस कमिश्नर ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया की उनकी जाँच में इनका फर्जीवाड़ा पकड़ाया है। पहले जब केवल प्रिंट मीडिया हुआ करता था तब इस प्रकार की गड़बड़ी की संभावना नहीं के बराबर थी तब परिस्थिति भी अच्छी थी। जब से टीवी चैनल वाले आये है तब से पत्रकार पत्रकारिता कम करते हुए किसी पार्टी का लाइजनिंग करते नजऱ आते है, तब से ये सब घोटाले होने लग गए हैं। अभी-अभी सोशल मीडिया के आने के बाद तो स्थिति और भी बुरी हो गई है। लोग पान ठेलों और मोबाइल फोन से वेबसाइट व न्यूजपोर्टल चलाकर लाखों व्यूवर्स का दावा बिना प्रमाण के कर रहे हैं। सरकार को चाहिए इसके लिए भौतिक सत्यापन करवाए और जनसम्पर्क वालो को सभी अख़बार और टीवी चैनलों के दफ्तर जाकर पड़ताल करना चाहिए। सभी वेबसाइट का आईटी एक्सपर्ट और गूगल एनालिटिक एक्सपर्ट के साथ सत्यापन हेना चाहिए साथ ही न्यूज़ चैनल और लोकल टीवी वाले सब की टीआरपीकी जांच मुंबई पुलिस की तरह रायपुर पुलिस को करना चाहिए जिससे फर्जीवाडा पकड़ में आ सके।

प्रिंट मीडिया में सर्कुलेशन और टीवी में टीआरपी ही सब कुछ होता है इसके बिना ये रीढ़ विहीन है बिना दन्त के शेर होते हैं इसका घोटाला कैसे होता है सब को मालूम है। सरकार भी जानती है लेकिन जब तक टीवी या अख़बार वाले सरकार की गुणगान करते रहते हैं तब तक इस पर ध्यान किसी का जाता नहीं। जब सरकार के हितों को चोट इनके द्वारा चोट पहुंचती है तब सरकार जागती है और कार्यवाही करती है। सरकार और जनता दोनों को स्वहित से ऊपर उठ कर इस पर कार्य करना होगा तब जाकर देश का भला हो सकेगा। अभी ऐसा है कि टीआरपी घोटाले को भी राजनीतीकरण कर दिया गया है. हाथरस दुष्कर्म मामले को हिन्दू मुस्लिम एंगल से देखने वाली पार्टी के एक केंद्रीय मंत्री का कहना है कि यह टीआरपी घोटाला नहीं बल्कि मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला है और ऐसे हर प्रयास का मुँह तोड़ जवाब दिया जायेगा। देश की जनता सरकार की कमियों को उजागर करने वाली एनडीटीवी का हश्र तो देख ही रही है।

इस सम्बन्ध में राजनितिक विश्लेषक आशुतोष का कहना है कि सुशांत के आड़ में रिपब्लिक टीवी ने टीआरपी की जम कर चोरी की है जो देश की जनता के भरोसे के साथ खिलवाड़ करने का संगीन जुर्म है। टीआरपी बढ़ा कर उसने करोड़ों का विज्ञापन लेकर सरकार और प्रिवेट कंपनियों के जेब में डाका डाला है ,इसकी जाँच होनी चाहिए इस प्रकार ऐसा कृत्या सरकार और जनता के साथ धोखा है। मुंबई पुलिस कमिश्नर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका खुलासा किया है।

आजादी का मतलब सरकार की गोद में बैठकर उस आजादी का नाजायज फायदा उठाना ठीक नहीं। जब तक सरकार है ठीक है सरकार के जाते ही स्वामिभक्ति बदलनी होती है जो पत्रकारिता के दृष्टिकोण के विपरीत है। देखा गया है की ये टीवी चैनल वाले कोर्ट के फैसले के खिलाफ भी बोलते देखे गए हैं जैसा की सुनंदा थरूर कमला हो या सुशांत आत्मत्या मामला या अन्य कई मामले हो। सुनंदा केस में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मौत को आत्महत्या करार दिया था ,सुशांत केस में आल इंडिया इंस्टीटूट ऑफ़ मेडिकल साइंस ने अपने रिपोर्ट में इसको आत्महत्या बताया था लेकिन रिपब्लिक टीवी वाले चीख चीख कर बोल रहे है की ये हत्या का मामला है। अब सवाल उठता है की कोर्ट बड़ा या टीवी चैनल बड़ा। हालाकि कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी को लताड़ भी लगाई थी और हिदायत भी दी थी कि इस प्रकार तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर जनता को गुमराह न करें।

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