धर्मांतरितों को डी-लिस्ट कराने राजधानी में जुटे आदिवासी...

आरक्षण का लाभ नहीं देने की मांग, निकाली रैली
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। राजधानी रायपुर में जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा डीलिस्टिंग की मांग को लेकर रविवार को एक बड़ा आंदोलन एवं महारैली निकाली। महारैली में हजारों की संख्या में जनजाति नागरिक शामिल हुए। रैली के बाद वीआईपी रोड स्थित राम मंदिर के सामने सभा हुई। सभा को भाजपा के बड़े आदिवासी नेता नंदकुमार साय, जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत, संयोजक छत्तीसगढ़ भोजराज नाग सहित अन्य नेताओं ने संबोधित किया। भाषण में नेताओं ने कहा, जनजाति समाज की यह मांग है कि जिन नागरिकों ने अपनी मूल संस्कृति और अपने मूल धर्म को छोडक़र विदेशी धर्म (जैसे ईसाई या इस्लाम) अपनाया है उन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से तत्काल बाहर किया जाए और इसके लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधन किए जाए। छत्तीसगढ़ में भी बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों के द्वारा मूल जनजातियों के हिस्से की सुविधाओं को अवैध रूप से छीना जा रहा है, जिसमें आरक्षण भी एक प्रमुख तत्व है, इसलिए हम चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ के जनजातियों के साथ-साथ देश के करोड़ों जनजातियों के साथ हो रहे अन्याय को रोका जाए और धर्मान्तरितों को डी-लिस्ट किया जाए।
रायपुर में रविवार को हुए आदिवासियों के कार्यक्रम में बस्तर, अंबिकापुर, जशपुर, रायगढ़, कांकेर, नारायणपुर के आदिवासी पहुंचे थे। इनकी मांग है कि धर्म बदल चुके आदिवासियों को आरक्षण के फायदे से अलग किया जाए। इस प्रक्रिया को डी-लिस्टिंग कहा जाता है। यहां आए प्रदेशभर के आदिवासियों ने इस सवाल का जवाब दिया कि क्या आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण होता है ? बस्तर जिले से रायपुर आई बालमति नागेश ने बस्तर जिले के दूर-दराज के गांवों का हाल बयां किया। उन्होंने बताया, पिछले साल मेरे परिचय के कुछ आदिवासी परिवार ईसाई मान्यताओं के साथ जीने लगे। इसी तरह कई गांवों में ये पिछले कुछ सालों में हुआ है। ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले लोगों से मिलते हैं, गरीबी दूर करने, स्वास्थ्य लाभ देने (चंगाई सभा ले जाकर), शिक्षा की सुविधा दिलाने की बात कहकर प्रलोभन देकर ईसाई बनाया गया है। वो कहते हैं कि यदि किसी घर का एक सदस्य ईसाई मान्यताओं के साथ जीना शुरू करता है तो उसके पूरे परिवार और रिश्तेदारों को ईसाई बनने को कहा जाता है। इसके बाद देवी देवताओं की तस्वीरों को हटवाया जाता है। तुलसी चौरा को तोडऩे, तुलसी के पौधे को हटाने जला देने को कहा जाता है। ऐसा बहुत से ग्रामीण कर भी रहे हैं।
कांकेर जिले के अमाबेड़ा गांव से आए आदिवासी युवक ने बिंसु राम मंडावी ने बताया कि हमारे इलाके में ईसाई धर्म का प्रचार होता है। कई आदिवासी समुदाय के लोग चर्च में प्रार्थना करने जाते हैं। मैंने देखा है कि गांव में कुछ लोग उन्हें फिर से हिंदू मान्यताओं से जीने को कहते हैं तो विवाद होता है, मगर बात थाने तक नहीं जाती, वो लोग नहीं मानते और ईसाई परंपरा के अनुसार जी रहे हैं। मेरे छोटे चाचा को भी वो लोग ले जाकर ईसाई बना दिए। अंबिकापुर से आईं श्याम कुमारी कुजूर ने कहा, उन्हें भी ईसाई बनाने का प्रयास कुछ लोगों ने किया। उनसे कहा कि आप भी चर्च आया करें, जीवन के कष्ट दूर होंगे। मगर इसके जवाब में श्याम कुमारी ने उनसे कह दिया कि हम अपने पुरखों को नहीं छोड़ेंगे, उनकी बताई जीवनशैली में ही जीना है और उसी में हम खुश हैं।
अब प्रदेश में इसी बात पर विवाद है। रविवार को इसी वजह से रायपुर में डी लिस्टिंग सभा की गई। जिसमें मांग की गई कि जो धर्म बदल चुके हैं उन्हें सरकार से आदिवासियों को मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए। इसी वजह से प्रदेश के कई गांवों में टकराव और हिंसा के हालात बने हैं।
जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक और भाजपा से पूर्व विधायक भोजराज नाग ने कहा, प्रदेश में अधिकांश जगहों पर रिकॉर्ड यानी की सरकारी तौर पर कोई भी आदिवासी ईसाई नहीं है। यानी की वो आदिवासी जो मान्यताओं को बदलकर ईसाई की तरह रहते हैं, सरकारी रिकॉर्ड में उन्होंने अपनी जाति नहीं बदलवाई वो आदिवासी ही हैं। उनके नाम वही है।
धर्मांतरण करने वाले भी कोई डॉक्यूमेंट पर किसी का धर्मांतरण कर रहे हों, प्रशासन को जानकारी दे या ले रहे हों ऐसा नहीं है। बस्तर, नारायणपुर, सुकमा, कांकेर, रायगढ़ जिले के अंदरूनी गांव ऐसे हैं जहां पिछले कुछ सालों में चर्च बने हैं। वहां स्थानीय आदिवासी ही प्रार्थना के लिए जाते हैं। अब ये परिस्थिति भी अजीब है कि सरकारी रिकॉर्ड में कोई धर्मांतरण नहीं और चर्च किसके लिए बन रहे।
प्रदेश में धर्म परिवर्तन करने का कोई ठोस आंकड़ा मौजूद नहीं है। समय-समय पर सरकार की तरफ से कहा जाता रहा है कि धर्मांतरण को लेकर आंकड़ों में कोई जानकारी नहीं है, न ही कहीं जबरन धर्म परिवर्तन की कोई स्नढ्ढक्र दर्ज हुई है। ऐसा इस वजह से भी है क्योंकि धर्म को बदलने वाले और दूसरा धर्म मानना शुरू कर चुके लोगों ने इसकी जानकारी प्रशासन को दी ही नहीं है। सब विश्वास के जरिए हो रहा है। दूसरी तरफ जशपुर, रायगढ़ जैसे हिस्सों में घर वापसी यानी की दूसरे धर्मों में आ चुके आदिवासियों को मूल धर्म में लाने का अभियान चलता है। इसका भी कोई प्रशासनिक आंकड़ा नहीं है। केंद्रीय स्तर पर, भारत में कोई कानून नहीं है जो जबरन ‘धर्म परिवर्तन के मामले में कार्रवाई की बात करता हो। 1968 में ओडिशा और मध्य प्रदेश ने बल से ‘धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कुछ अधिनियमों को पारित किया। उड़ीसा के ‘धर्म परिवर्तन विरोधी कानून में अधिकतम दो साल की कारावास और जुर्माना लगाया गया जाता है। तमिलनाडु और गुजरात जैसे अन्य राज्यों में इसी तरह के कानून पारित हुए, जिसने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295 ए और 298 के तहत अपराध के रूप में इस पर कार्रवाई होती है। इन प्रावधानों के अनुसार जबरदस्ती ‘धर्म परिवर्तन के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को कारावास के साथ दंडित किए जाने का प्रावधान है। छत्तीसगढ़ में हमेशा प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ये बात मीडिया में कहते रहे हैं, कि कोई भी जबरन किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करवा सकता, इसकी शिकायत मिलने पर हम सख्त कार्रवाई करेंगे।