रायपुर। जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत है और हम कभी भी उनके ऐतिहासिक, सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान को विस्मृत नहीं कर सकते। भारतीय संस्कृति, पर्यावरण और परम्पराओं को संरक्षित करने में जनजातीय समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जनजातीय समाज का पर्यावरण संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान रहा है और उनके बिना पर्यावरण संरक्षण की कल्पना नहीं की जा सकती। यह बातें आदिवासी गौरव दिवस पर शासकीय नागार्जुन स्नातकोत्तर विज्ञान महाविद्यालय में ’जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीतः ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में विद्वानों ने कहीं।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सामाजिक कार्यकर्ता एच.एस. आरमो ने जनजातीय समाज की परम्पराओं और दैनिक जीवन की गतिविधियों में पर्यावरण संरक्षण में दिए जाने वाले महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शासकीय स्नातकोत्तर विज्ञान महाविद्यालय, रायपुर के प्राचार्य डाॅ. ए. के मिश्रा ने जनजातीय समाज के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम की मुख्य वक्ता पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की सहायक प्राध्यापक डाॅ. बन्सो नुरेटी थीं। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समाज के योगदान के साथ ही उनकी संस्कृति पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज का योगदान केवल समाज के लिए ही नहीं रहा है, राष्ट्र निर्माण और पर्यावरण संरक्षण में भी रहा है।
विशिष्ट अतिथि पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक डाॅ. सुनील कुमार कुमटी ने जनजातीय समाज के रहन-सहन, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसम्पर्क विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. आशुतोष मंडावी ने जनजातीय समाज की परंपराओं पर उद्बोधन दिया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि शंकर लाल कुंजाम, संयोजक ओमप्रकाश मरावी, सह-संयोजक पदम दिलीप ने भी अपने विचार रखे। इसके पूर्व इस कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यापर्ण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ किया गया। यह जानकारी पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की सहायक प्राध्यापक डाॅ. बन्सो नुरेटी ने दी।