छत्तीसगढ़

पानी को साक्षी मानकर शादी के बंधन में बंध जाते है नए जोड़े

Nilmani Pal
13 May 2022 7:16 AM GMT
पानी को साक्षी मानकर शादी के बंधन में बंध जाते है नए जोड़े
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जगदलपुर। बस्तर अपनी कला, आदिवासी संस्कृति, वेशभूषा, प्राकृतिक सौंदर्य, लोकगीत की वजह से देश में विख्यात है। बस्तर में निवासरत आदिवासी प्रकृति के पूजक हैं। यही कारण है कि बस्तर में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बस्तर के आदिवासी धुरवा समाज के 17 नवदंपतियों ने अग्नि नहीं बल्कि पानी को साक्षी मानकर विवाह किया है। दरअसल धुरवा समाज बस्तर के मूल निवासी हैं और यह समाज हजारों सालों से पानी को अपनी माता मानते आ रहे हैं और सभी शुभकार्यों में पानी को महत्व देते हैं। इसी कड़ी में जिला मुख्यालय से महज 35 किलोमीटर दूर दरभा ब्लॉक मुख्यालय में धुरवा समाज के लोगों ने 17 जोड़ों का विवाह पानी को साक्षी मानकर सम्पन्न कराया है।

समाज के प्रमुखों ने बताया कि प्रतिवर्ष धुरवा समाज मई माह में स्थापना दिवस भव्य रूप से मनाता है। इस वर्ष भी यह स्थापना दिवस संभागीय स्तर पर भव्य रूप से मनाया। इसके बाद 17 जोड़ों का विवाह दूसरे दिन कराया गया। संभाग अध्यक्ष ने बताया कि धुरवा समाज की पुरानी पीढ़ी कांकेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के समीप निवास करती थी और लगातार कांकेर नाला के पानी को साक्षी मानकर शुभ कार्य करती थी। आज भी कांकेर नाला से पानी लाया गया था और सभी दंपतियों के ऊपर पानी छिड़ककर रस्म को पूरा किया गया। इसके अलावा यह भी बताया गया कि इससे पूर्व भी समाज के लोगों ने 2 दंपति का विवाह दरभा ब्लॉक के छिंदवाड़ा में कराया था और आने वाले दिनों में भी परम्पराओं को मानते हुए ही पानी को साक्षी मानकर लगभग बस्तर संभाग से 100 जोड़ों का सामूहिक विवाह कराया जाएगा। इससे बस्तर के अधिकतर आदिवासी ग्रामीण जो वनोपज पर आश्रित रहते हैं। उन्हें फिजूल खर्चे से निजात मिलेगा।


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