लोगों का दम घोंट रहा फैक्ट्रियों से निकलने वाला जहरीला धुंआ
राजधानी में काले धुएं से लोग परेशान
जहरीला धुआं, घोंट रहा है दम, सांस लेना भी दुभर
रायपुर। पर्यावरण मंडल संरक्षण मंडल बना सफेद हाथी। काम के नाम पर हाथी के दांत की तरह प्रदर्शन हो रहा है यानी खाने के दांत अलग और दिखाने के दांत अलग। पिछले कुछ सालों में वायु प्रदूषण लोगों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बनकर सामने आया है। आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ में तेजी से बढ़ते पेट्रोल-डीजल चलित वाहनों की संख्या, निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल के अति सूक्ष्म कण, कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं, ठोस कचरे और खेत में फसलों के अवशेष जलाने, पराली, पटाखे, फैक्ट्रियां एवं अन्य कई कारणों से वैश्विक आबोहवा बिगड़ती जा रही है। जिसकी वजह से लोगों का सांस लेना भी दूभर होता जा रहा है।
वायु प्रदूषण के मामले मेंछत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर देश के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शुमार है। यहां तेजी से बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण प्रदूषण का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा है। नतीजा यह है कि यहां आधी आबादी कई बीमारियों की चपेट में है। राजधानी के आसपास में ज्यादातर फैक्ट्री और पावर प्लांट स्थापित है। जिस वजह से पूरा इलाका ही प्रदूषण का दंश झेल रहा है, लेकिन इसके अलावा भी यहां शहर के बीचों बीच फैक्टरियां, कारखाने है। इन कंपनी की चिमनियों से उगलता धुआं इलाके के घरों में घुसकर दीमक की तरह लोगों की जिंदगी को धीरे-धीरे खोखला कर स्लो-पॉयजन का काम कर रहा है।
इस जहरीले धुएं से अपनी जान बचाने के लिए इन फ्लैटों के लोगों को अपनी खिड़कियां हमेशा बंद रखनी पड़ती हैं। धुएं से निकलने वाले जानलेवा काले कण खाने-पीने के बर्तनों और घरों में रखे सामानों पर भी जम जाते हैं। पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण विभाग की निगाह भी संभवत: इन कंपनियों से निकलने वाले जहरीली धुएं पर नहीं पड़ रही है।
आबोहवा प्रदूषित
मौसम के बदले रूख और बढ़ी आद्रता के बीच जिले की हवा खराब होती जा रही है। फैक्टरी और विद्युत उत्पादक कंपनियां प्रदूषण का प्रमुख कारण माना जा रहा है। एप पर जारी रिकॉर्ड के मुताबिक, 1 नवंबर को वायु गुणवत्ता इंडेक्स 300 के करीब दर्ज किया गया है। इसे सबसे खराब स्थिति माना जा रहा है।