मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से हुए नहरों की पक्की लाइनिंग ने कई गांवों में सिंचाई व्यवस्था को पुनर्स्थापित कर दिया है। बीजापुर जिले में नौ लघु जलाशयों में निर्मित पक्के नहरों से अंतिम छोर में स्थित खेतों तक समय पर सिंचाई के लिए पानी पहुंचने से किसान गदगद हैं। खरीफ मौसम के दौरान पक्की नहरों से खेतों तक पानी पहुंचने से इस साल किसानों ने अच्छी पैदावार ली है। मनरेगा और डीएमएफ (जिला खनिज न्यास निधि) के अभिसरण से वर्ष 2019-20 में जलाशयों की सिंचाई परियोजनाओं को पुनर्स्थापित करने का एक महती काम शुरू किया गया था। इसके सकारात्मक परिणाम अब जमीनी स्तर पर नजर आने लगे हैं। इस काम से बीजापुर जिले के 799 हेक्टेयर रकबे में सिंचाई व्यवस्था की पुनर्स्थापना हुई है।
नहरों की पक्की लाइनिंग से जहां एक ओर जिले का सिंचित रकबा बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर यह किसानों की आर्थिक उन्नति का रास्ता खोल रहा है। मनरेगा अभिसरण से बीजापुर के भैरमगढ़ विकासखण्ड के कोडोली ग्राम पंचायत में भी नहर लाइनिंग का कार्य कराया गया है। कोडोली जलाशय की नहरों (तालाब क्रमांक-1 व 2 से) में 1800 मीटर लम्बाई की सी.सी. लाइनिंग कर सिंचाई व्यवस्था पुनर्स्थापित की गई है। महज एक साल में ही बीजापुर जिला प्रशासन की इस पहल के सुखद परिणाम देखने को मिल रहे हैं। यह परियोजना कोडोली के श्री नरहर नेताम जैसे किसानों के जीवन में खुशहाली लेकर आई है जिनकी सात एकड़ कृषि भूमि इस नहर से लगी हुई है।
श्री नरहर नेताम का घर-आंगन आज बासमती चावल की खुशबू से महक रहा है। नहर लाइनिंग के बाद मिल रही सिंचाई सुविधा को देखते हुए उन्होंने इस साल खरीफ मौसम में अपने चार एकड़ खेतों में बासमती और तीन एकड़ में महेश्वरी धान की बुआई की थी। खेतों तक सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी पहुंचने से इस बार पिछले वर्षों की तुलना में अच्छा धान हुआ है। श्री नेताम कहते हैं कि नहर लाइनिंग का यह काम उनके जैसे किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है। पहले यह कच्ची नहर थी। जब भी किसी किसान को पानी की जरूरत होती थी, तो वह नहर के किनारों को काटकर अपने खेतों की सिंचाई कर लेता था। इसके कारण जलाशय के नजदीक के ही कुछ खेतों को पानी मिल पाता था। वहीं नहर कच्ची होने के कारण उसमें गाद भरने के साथ-साथ झाड़ियां भी उग आई थीं। इन सब वजहों से आखिरी गांव तक नहर का पानी नहीं पहुँच पाता था।
श्री नरहर नेताम बताते हैं कि रबी की फसल तो दूर, खरीफ फसल में भी नहर से सिंचाई को लेकर किसानों के बीच झगड़े की स्थिति निर्मित हो जाती थी। पर अब नहरों की पक्की लाइनिंग हो जाने से यह समस्या दूर हो गई है। अब खरीफ फसल के बाद किसान दूसरी फसल ले रहे हैं। श्री नेताम ने भी तीन साल बाद अपने एक एकड़ खेत में भुट्टा, आधा एकड़ में चना व सरसों तथा आधा एकड़ में खरबूजा लगाया है। मनरेगा और डीएमएफ के अभिसरण से विकसित हुई सिंचाई सुविधा के फलस्वरूप आने वाले कुछ महीनों में भैरमगढ़, कोडोली, मिरतुर और नेलसनार के बाजारों में इनके उत्पाद नजर आएंगे।
श्री नेताम के परिवार को मनरेगा से हुए इस नहर लाइनिंग के काम में 185 दिनों का सीधा रोजगार भी मिला है। उनके परिवार को वर्ष 2019-20 में 80 दिनों के रोजगार के एवज में 14 हजार रूपए से अधिक की मजदूरी मिली थी। वहीं चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 में उनके परिवार को 105 मानव दिवस काम के बदले करीब 20 हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया है।