छत्तीसगढ़

ये किस ने हमसे लहू का खिराज फिर माँगा, अभी तो सोए थे मक़तल को सुर्ख-रू कर के...

Nilmani Pal
1 Oct 2021 4:53 AM GMT
ये किस ने हमसे लहू का खिराज फिर माँगा, अभी तो सोए थे मक़तल को सुर्ख-रू कर के...
x

ज़ाकिर घुरसेना। कैलाश यादव

पिछले दिनों मोदी जी के जन्मदिवस पर भाजपा शासित प्रदेश के मुखियाओं ने जमकर टीकाकरण करवाया। राज्यों की माने तो गुजरात में 24 लाख 73 हजार 539, मध्यप्रदेश में 29 लाख 4 हजार 611, उत्तरप्रदेश में 25 लाख 20 हजार 473 और आसाम में 7 लाख 90 हजार 293 लोगों को ठीके लगवाए गए। साथ ही कर्नाटक में रिकार्ड 32 लाख से भी अधिक लोगों का टीकाकरण एक दिन में हुआ, अब सवाल ये उठता है कि जब देश में एक दिन चार राज्यों में इतने लोगों को टीके लग सकते हैं तो पूरे देश में एक दिन में करोड़ों लोगो को टीका लगाया जा सकता है। लेकिन टीकाकरण की रफ़्तार इतनी सुस्त क्यों? क्या मोदी जी के जन्मदिन में रिकार्ड बनाने के लिए टीकाकरण में सुस्ती की गई। उनके इस सुस्ती से लाखों लोगों को जानबूझकर मौत के मुँह में धकेल दिए या फिर ये आंकडे झूठे हैं। सबको पता है जब मोर आत्ममुग्ध होकर नाच रहा होता है तब वह वास्तव में अपनी खुद की नग्नता को प्रदर्शित कर रहा होता है। इसी प्रकार का कुछ हाल सरकार का हो गया है कि जब रिकार्ड टीकाकरण की सफलताओं का डंका बजाया जा रहा था तब अपरोक्ष रूप से सरकार अपनी असफलताओं को स्वीकार ही कर रही थी, क्योंकि टीकाकरण की वास्तविकता से पूरा देश वाकिफ ही है।

पुलिस आखिर इतना निर्दयी क्यों?

पिछले दिनों असम में पुलिस बर्बरता का एक वीडियो सामने आया है जिसमें पुलिस के सामने एक फोटोग्राफर एक शव पर कूदता दिखाई दे रहा है,शव के सीने में लात-घूसे मार रहा है। हालात को रिकार्ड करने के लिए फोटोग्राफर को बुलाया गया था, लेकिन उक्त फोटोग्राफर फोटोग्राफी करना छोड़ मृत व्यक्ति के शव पर कूद रहा था वह भी पुलिस के सामने। क्या पुलिस वाले अपने साथ फोटोग्राफी के आड़ में गुंडे बदमाशों की फौज लेकर चलने लगी है जिस शख्स के शव के साथ बर्बरता की गई, उस शख्स के हाथ में सिर्फ डंडा था और वहां भारी संख्या में पुलिस वाले भी थे, ऐसे में पुलिस आसानी से उस शख्स पर काबू पा सकती थी लेकिन बहादुर पुलिस ने उस पर सीधे गोली चला दी। पुराने ज़माने में अंग्रेज या शिकारी प्रवित्ति के लोग शिकार के पास बैठकर फोटोग्राफी करवाते थे और अपनी तथाकथित बहादुरी का नुमाइश करते थे। क्या असम पुलिस और फोटोग्राफर भी कुछ इसी प्रकार का नुमाइश कर सरकार से इनाम पाने की लालसा तो नहीं पाल रखे थे? अगर यह बात सच है तो यह लोकतंत्र के लिए सबसे खराब दिन और धब्बा है। असम के मुख्यमंत्री केे भाई उस जिले के पुलिस अधीक्षक हैं जहाँ निहथ्थों पर पुलिस गोली चला रही है ये कैसा लोकतंत्र है, कैसा मानवाधिकार है? क्या देश और पूरी दुनिया ने इस घटना को देखी नहीं होगी? सवाल यह भी है कि पिछले 26 जुलाई को आसाम और मिजोरम में सीमा विवाद को लेकर दोनों राज्यों की पुलिस में फायरिंग हुई थी और मिजोरम पुलिस की फायरिंग से आसाम पुलिस के 5 जवानों की मौत हो गई थी। परित्राणाय साधुनाम...पर चलने वाली पुलिस इतनी क्रूर कैसे हो सकती है? आम आदमी तो आम आदमी अपने विभागीय साथियो से ऐसी हरकत। भगवान कृष्ण ने श्रीमद भगवतगीता में कहा है कि साधु मनुष्यो के द्वारा ही अधर्म का नाश और धर्म का प्रचार होता है। क्या पुलिस को आम नागरिक शैतान या अधर्मी दिख रहे हैं। अपराधियों से दोस्ती की स्थिति हर जगह की पुलिस में देखने को मिलती है, इसीलिए अपराधी आसानी से थाने से ही छूट जाते हैं, अपराधियों का जन्म दिन थाने में मनाया जा रहा है थानेदार अपने हाथो से अपराधियों को केक खिलाते हैं। थानेदार के सामने एक पादरी को पीटा जाता है, आम नागरिक थाने जाकर भी असुरक्षित है? पुलिस को आम लोगों के प्रति अपने चेहरे को मानवीय बनाना ही होगा। शायर मोहसिन नकवी ने ठीक ही कहा है - ये किस ने हमसे लहू का खिराज फिर माँगा, अभी तो सोए थे मक़्तल को सुर्ख-रू कर के.....

पेगासस का जिन्न फिर बाहर आया

पिछले कई महीने से पेगासस का जिन्न बोतल में बंद हो गया था ऐसा लगता है की वह फिर बोतल से बाहर आ गया है। सुको ने हालांकि फैसला सुरक्षित रख लिया था क्योकि अदालत भी यह जानना चाहती थी कि क्या वाकई सरकार ने पेगासस सॉफ्टवयेर के जरिये आम लोगों की जासूसी की थी या नहीं। इस पर सरकार द्वारा हलफनामा देने के लिए इंकार इसलिए कर दिया था कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं होगा। अब लोगों के समझ में नहीं आ रहा है कि आम लोगों की जासूसी हो रही हो तो राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल नहीं था जब कोर्ट पूछ रही है तो राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल कैसे हो गया। जबकि सॉलिसिटर जनरल का भी मानना है कि ऐसी तकनीक खतरनाक होती है। इस बारे में कांग्रेस ने मांग की है कि इस मामले केंद्र सरकार की संलिप्तता जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में ही होना चाहिए। जनता में खुसुर-फुसुर है कि पेगासस जासूसी कांड पर राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में पर्दा नहीं डालना चाहिए।

कैसी नेतागिरी

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और भाजपा के नेता दलितों की गरिमा को लेकर भिड़ गए। दरअसल हुआ ये था कि भाजपा शाषित प्रदेश कर्नाटक में मंदिर में आशीर्वाद लेने एक दलित बालक पहुंच गया था इस पर उच्च वर्ग के लोगो ने उस दलित बच्चे के माता-पिता पर 23000 रूपये जुर्माना ठोंक दिया था। इस पर जीतनराम मांझी ने कहा कि ऐसे मामलो में धर्म की राजनीति करने वालों के जबान बंद हो जाते हैं। यह सदियों का दर्द है लेकिन गुस्से का इजहार हमने अभी तक नहीं किया। देखा गया है कि इसे धर्म के राजनीतिक ठेकेदार पसंद नहीं करते कि दलित मंदिर जाएँ। जनता में खुसुर-फुसुर है कि लोग अब मंगल पर घर बनाने की सोच रहे हैं और यहां अभी भी हम छुआछूत, सवर्ण-दलित, हिन्दू-मुस्लिम में उलझे हुए हैं।

किसानों के दिन फिरने की उम्मीद

जैसे जैसे विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे है कइयों की दिन फिरने की उम्मीद बढ़ गई है। इसमें व्यापरियों और बेरोजगारों की तो नहीं कह सकते लेकिन किसानो के साथ जरूर कुछ अच्छा हो सकता है। विधानसभा चुनवों में किसानों ने पश्चिम बंगाल वाला फार्मूला अपनाया हुआ है जिसे देखकर बड़े राजनीतिक दल के पसीने छूट रहे हैं। कमोबेश एक साल पूरा होने के कगार पर आ चुके किसान आंदोलन का हल निकलने की उम्मीद है। किसानो द्वारा तीनो कृषि कानून की वापसी और वर्तमान एमएसपी को क़ानूनी जामा पहनाने की मांग पर धरना दिया जा रहा है। जिस हिसाब से उत्तरप्रदेश के पश्चिमी हिस्से में किसान चुनाव को प्रभावित करते हैं साथ ही पूरे चुनाव को भी वे प्रभावित कर सकते हैं इस लिहाज से केंद्र सरकार एमएसपी को क़ानूनी जामा पहना सकती है।

दाऊजी के बल्ले-बल्ले, योजना के कायल हुए पीएम मोदी

दाऊजी की योजनाओं का डंका दिल्ली तक बज रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से फसलों को बचाने तथा लाभकारी खेती के लिए छत्तीसगढ़ में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। प्रधानमंत्री ने छत्तीसगढ़ राज्य में सुराजी गांव योजना के तहत गांव में निर्मित गौठानों में गोधन न्याय योजना के तहत गोबर की खरीदी और उससे जैविक खाद के साथ-साथ अब बिजली उत्पादन की राज्य सरकार की योजना को भी सराहा। जनता में खुसुर-फुसुर है कि जब प्रधानमंत्री मोदी सीएम भूपेश बघेल की योजना की तारीफ कर रहे है, तो प्रदेश के भाजपाई क्यों विरोध और घेराव की राजनीति कर रहे है। जब देश के मुखिया ने भूपेश बघेल की योजना की सराहा है तो प्रदेश के भाजपा नेताओं को भी अनुसरण करना चाहिए।

नयी पीढ़ी गांधी की बुनियादी शिक्षा से आत्मनिर्भर होगी

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अब नयी पीढ़ी को महात्मा गांधी की बुनियादी शिक्षा से जोडऩे जा रहे है। गांधीजी के आदर्शों और सिद्धांतों से बच्चों को अवगत कराने इन्हें कक्षा 5वीं से 12वीं के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। मुख्यमंत्री बघेल की पहल पर गांधी जी के आत्मनिर्भर ग्राम की संकल्पना को पूरा करने स्कूली बच्चों को गांव का भ्रमण कराकर सरकार की महत्वकांक्षी सुराजी गांव योजना के तहत नरवा, गरूवा, घुरूवा और बाड़ी के बारे में विस्तार से बताया जाएगा। इससे स्कूली बच्चों को ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जलसंरक्षण और मृदा संरक्षण जैसे विषयों पर जानकारी मिल सकेगी और आत्मनिर्भर ग्राम की कल्पना को साकार करने में मदद मिलेगी। जनता में खुसुर फुसर है कि गांधी की बुनियादी शिक्षा से बच्चों को जोडऩा अच्छी बात है, जनता में चर्चा है कि यह मिशन चुनावी तैयारी के साथ राजीव क्लब की सदस्यता बढ़ाने की कवायद तो नहीं है।

Next Story