महासमुन्द। बालयोगी पं विष्णु अरोड़ा ने कहा कि हनुमान चरित्र से हमें सीख लेना चाहिए। हनुमान चरित्र से हमारे जीवन, व्यक्तित्व व समाज को प्रेरणा मिलती है। दादाबाडा में चल रहे श्री मारुति महायज्ञ के मुख्य प्रवचनकर्ता पं विष्णु अरोड़ा ने हनुमान जन्मोत्सव पर हनुमान चरित्र को समझाते हुए भगवान हनुमान को शंकर सुमन कहने के पीछे के कारणों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
उन्होंने शिव पुराण का उल्लेख करते हुए कहा कि एक बार भगवान शिव व पार्वती बैकुंठ गए और नारायण से कहा कि जब समुद्र मंथन हुआ तो मुझे जहर पीना पड़ा और जब अमृत निकला तो मैं आपके मोहिनी स्वरूप का दर्शन नहीं कर पाया। भगवान शिव की मंशा समझ नारायण ने मोहिनी स्वरूप का दर्शन कराया। इस रूप को देखकर भगवान शिव मोहित हो गए और उनका तेज गिर गया। जिसे सप्तऋषियों ने पत्ते में एकत्र कर तपस्यारत अंजना के कर्ण माध्यम से प्रवेश कराया, इससे हनुमान का जन्म हुआ और शंकर सुमन कहलाए। यहीं पर उन्होंने उपस्थितजनों को व्याख्यान के माध्यम से बताया कि हमें समझने की जरूरत है। जो व्यक्ति मोहनी का अर्थ समझ लेगा उसे सारी बाते समझ आएगी। मोहिनी का अर्थ है मोह का नाश। मतलब मोह नही रहेगा तो विरक्ति का भाव आएगा। विरक्ति के भाव के बाद जो दिव्य तेज प्रगट हुआ वह ज्ञान था। ज्ञान की सात अवस्था होती है। ज्ञान को जीवन में उतारना चाहिए। जिसे सप्तऋषियों ने भोजपत्र में उतारकर उस दिव्य ज्ञान को माता अंजना को सुनाया। सुनने का माध्यम कर्ण का काम है। उस दिव्य ज्ञान को प्राप्त करने जो पुत्र हुआ वह हनुमान कहलाए। पं विष्णु अरोड़ा ने इसी तरह हनुमान के पवनपुत्र, केशरीनन्दन के नाम पड़ने का भी विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने इतिहास व शास्त्र के अंतर को भी उदाहरण सहित वर्णन करते हुए कहा कि दोनों बिलकुल अलग-अलग होता है। भारतीय ऋषियों ने शास्त्र लिखने की परंपरा डाली है, शास्त्र बार-बार पढ़ी जाती है। इसका हर काल में लाभ मिलता है। प्रवचन के बाद हनुमान चालीसा का पाठ किया गया बाद इसके प्रसादी का वितरण किया गया।