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फाइल फोटो
रायपुर. कोरोना पीक के दौरान 35 हजार रुपए में बिकने वाले रेमडेसिविर के तीस हजार इंजेक्शन के अब खराब होने का खतरा बढ़ गया है। केस कम होने और डब्लूूएचओ की सिफारिश पर इसे गंभीर मरीजों के उपचार की गाइडलाइन से बाहर किए जाने के बाद इंजेक्शन डंप हो गए हैं। अप्रैल में इसकी किल्लत इतनी बढ़ गई थी कि अस्पतालों तक इंजेक्शन पहुंचाने का जिम्मा औषधि विभाग को लेना पड़ गया था।
कोरोना की पहली लहर के दौरान इसकी खपत कम थी, मगर दूसरी लहर में केस बढ़े और रेमडेसिविर की डिमांड इतनी बढ़ गई कि बाजार से स्टाक रातों रात गायब हो गया था। इसके बाद इंजेक्शन की कालाबाजारी शुरू हुई और एक हजार से कम में आने वाला रेमडेसिविर का एक इंजेक्शन 35 हजार तक में बिकने लगा था। जरूरतमंद मरीजों तक इसे पहुंचाने के लिए राज्य शासन के हस्तक्षेप के बाद इसकी सप्लाई अस्पतालों तक की गई और निजी अस्पतालों में भी इसके नाम पर जमकर वसूली की गई। औषधि विभाग द्वारा कंपनियों से सीधी सप्लाई लेकर इसका वितरण जरूरत के हिसाब से निजी और सरकारी अस्पतालों को किया जा रहा था, इसी दौरान कोरोना के केस कम हो गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस इंजेक्शन को कोरोना मरीजों के उपचार की दवा की गाइडलाइन से हटा दिया था। इसके बाद इसकी मांग खत्म हो गई और खरीदे गए रेमडेसिविर के इंजेक्शन डंप हो गए।
स्टाकिस्ट के पास 30 हजार
औषधि विभाग ने निजी अस्पतालों की डिमांड के आधार पर स्टाकिस्ट के माध्यम से उन्हें इंजेक्शन की सप्लाई की थी। कंपनी द्वारा स्टाकिस्ट और सीएंडएफ के माध्यम से भेजे गए तीस हजार इंजेक्शन अभी गोदाम में डंप पड़े हैं। रायपुर जिला थोक दवा विक्रेता संघ के अध्यक्ष संजय रावत ने बताया कि इंजेक्शन अस्पतालों और दवा दुकानों में भी रखे हुए हैं, जो नॉन रिफंडेबल नियम के तहत खरीदे गए थे और वापस नहीं किए जा सकते।
सीजीएमएससी ने आर्डर किया था 90 हजार
कोरोना की स्थिति पैनिक होने के दौरान इंजेक्शन निर्माता कंपनियों द्वारा थोक विक्रेताओं को 821280 रेमडेसिविर बेचा गया था, जिसे राज्य सरकार ने अपने आधिपत्य में लेकर मांग के अनुसार सप्लाई की थी। इसके अलावा सीजीएमएससी ने लगभग 90 हजार इंजेक्शन का आर्डर दिया था, जिसमें से लगभग 40 हजार की सप्लाई हुई थी और आधे ही अस्पतालों को भेजे गए थे और बाकी स्टाक में था, जिसके भी एक्सपायर होने का खतरा है।
Admin2
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