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रायपुर। आज मनुष्य अपने माने हुए दुख से अधिक दुखी है जिसे कोई नहीं मिटा सकता और न ही इसका दूसरा इलाज है क्योंकि जब उसने मान ही लिया है और स्वीकार कर लिया है कि वह दुखी है तो फिर उससे उसे कैसे मुक्ति मिल सकती है। ऐसे में वह आत्मघाती कदम उठा लेता है। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। मनुष्य यह कदम उस समय उठाता है जब उसे अंधेरा और अकेलापन महसूस होता है और उसे कोई राह दिखाई नहीं देती। ऐसे में सद्गुरु और भगवान की शरण में ही जाने से उसका यह अकेला पन दूर हो सकता है। कथा श्रवण करने के लिए पूर्व मंत्री व विधायक बृजमोहन अग्रवाल सपत्निक पहुंचे। राजा दक्ष और सती के प्रसंग का वर्णन करते हुए यह बातें संत शंभूशरण लाटा ने श्रद्धालुओं को बताई। उन्होंने कहा कि पिता, गुरु, स्वामी और मित्र के यहां कोई भी मांगलिक कार्य हो यदि उसमें आमंत्रित नहीं किया गया है तो हमें वहां नहीं जाना चाहिए क्योंकि वहां जाने से विरोध होगा और विरोध के चलते निंदा भी होगी, निंदा सुनने का पाप भी हमें ही भोगना पड़ेगा। सती ने निंदा जैसे पाप लगने पर स्वयं को योग की अग्नि में जला लिया। पाप हो जाए उसका प्रायश्चित करना चाहिए और दोबारा फिर वही गलती न हो इसका हमें ध्यान रखना चाहिए। नारद को गुरु मानने के बाद उनकी बातों पर पार्वती द्वारा अमल किए जाने का दृष्टांत पर लाटा जी ने कहा कि उपवास हमेशा करना चाहिए, साल में 24 एकादशी आती है और हर एकादशी को उपवास करना चाहिए। उपवास करने से आकाश तत्व बढ़ जाता है, इस दिन किसी भी प्रकार के खाने का सेवन नहीं करना चाहिए।
खाना खाने से धरती तत्व बढ़ता है और शरीर भारी होने लगता है, नतीजा यह होता है कि मनुष्य कई बीमारियों से घिर जाता है, लेकिन आकाश तत्व वह अपने शरीर में बढ़ाए तो शरीर निरोग रहता है। यह उपवास की महिमा है। पार्वती ने शिवजी को प्राप्त करने के लिए जो तप किए है ऐसे तप कोई नहीं कर सकता, उन्होंने एक-एक करके सारी चीजों का त्याग कर दिया और अंत में उन्होंने सांस लेना भी बंद कर दिया। सबसे बड़ा धन परोपकार है इससे बड़ा धन और कुछ नहीं हो सकता, मन में यदि दूसरों के प्रति परोपकार की भावना भी मन में आती है तो वह भी किसी धर्म से कम नहीं है। संसार की हालत आज यह है कि घर-घर में पाप बढ़ने लगे है और यह पाप किस रुप में प्रवेश कर रहा है इसकी जानकारी होने के बाद बावजूद भी मनुष्य उसका निराकरण नहीं कर पा रहा है। जिसके पास में भगवान रहते है वहां पर पाप रह ही नहीं सकता क्योंकि भगवान का कवच मनुष्य को उन पापों से बचाया रखता है जिससे कि उसका अनिष्ट होने की संभावना रहती है। जिन घरों में साधु-संतों के आने पर उनके चरण धोए जाते है वास्तविकता यह है कि उन संतों और साधुओं की पुण्याई चरण धोने वाले के पास चली जाती है। साधु-संत और भगवान भी उन्हीं घरों में जाते है जहां पर पितरों और भगवान का वास होता है और उनका सम्मान होता है। लाटा ने कहा कि क्रोध करना या आना कोई बूरी बात नहीं है यह एक प्रवृत्ति है लेकिन क्रोध करने से पहले इसका पता लगा लेना चाहिए कि क्रोध का कारण क्या है।
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Shantanu Roy
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