दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय, यहां एक पाटन ही काफी है
ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव
छत्तीसगढ़ विधानसभा के विशेष सत्र में बनी अप्रिय स्थिति पर मंत्री डा. शिव डहरिया ने कहा है कि, मैं अनुसूचित जाति का हूं। इसलिए मेरे साथ धक्का-मुक्की की गई। डहरिया ने कहा कि, भाजपा एससी वर्ग का कभी भला नहीं चाहता। विधानसभा के विशेष सत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच नोक-झोंक हाथापाई में तब्दील हो गई थी। सदन में ही मंत्री शिव डहरिया और पूर्व मंत्री कुरूद विधायक अजय चंद्रकार के बीच धक्का-मुक्की के साथ नौबत हाथापाई तक पहुंच गई। दो वरिष्ठ सदस्यों के बीच बनी इस स्थिति से उपजी असहजता को टाला गया। माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में ऐसी स्थिति पहली बार निर्मित हुई है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि हिम्मत है तो कवासी लखमा से धक्का मुक्की करके देखो, अजय को पता चल जाएगा कि धक्के-धक्के में क्या अंतर है। इसलिए तो यह कहावत लोगों की जुबां में हमेशा रहता है। दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय। यहां एक ही पाटन काफी है।
भूपेश के भरोसे ने भाजपा को तलवा दिए समोसे
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले को समोसा बनाकर दोनों राष्ट्रीय पार्टी सहित निर्दलीय राजनीति की कढ़ाई गरम करते रहे, लेकिन इस चुनाव में भूपेश सबसे ज्यादा भरोसेमंद साबित हुए जिसने जनता के भरोसे सभी पार्टियों को तल दिया। 2023 का विधानसभा चुनाव अभी दूर है, लेकिन भूपेश बघेल लगातार यही कहते आ रहे है कि जिस दिन सत्ता संभाली है उसी दिन से चुनाव की तैयारी करते आ रहे है। यही नहीं हिमाचल में भी छत्तीसगढ़ मॉडल की पैरवी कर हिमाचल में शानदार जीत दर्ज करवा कर लोहा मनवा दिया और जता दिया कि भूपेश है तो भरोसा है। भूपेश सरकार की नीति योजना से तो केंद्र की भाजपा सरकार भी कायल है । स्वयं पीएम मोदी ने भूपेश सरकार के अनेक योजनाओं की खुले मंच से तारीफ कर चुके है।
2023 के चुनाव से पहले सत्ता के सेमीफाइनल कहे जाने वाले भानुप्रतापुपर के उपचुनाव में जीत दर्ज करके मिशन 2023 का रास्ता साफ कर लिया है। प्रदेश में आदिवासी वर्ग की आरक्षण कटौती पर नाराजगी के मुद्दे की हवा निकाल दी है। आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर जीत मिलने को कांग्रेस नेता भूपेश सरकार के आदिवासी हितैषी फैसलों की जीत करार दे रहे हैं। भूपेश की सरकार बनने के बाद यह पांचवां उपचुनाव है। दंतेवाड़ा, चित्रकोट, मरवाही, खैरागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी। अब भानुप्रतापपुर में कांग्रेस जीत गई है। कांग्रेस ने इस जीत को भूपेश सरकार के चार साल के काम पर जनता की मुहर बताया है। आदिवासी समाज ने एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी और उसकी नीतियों पर भरोसा जताया है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि भूपेश है तो भरोसा है का नारा मामूली नहीं है। इसे विपक्षी दल ने बहुत हल्के में लेकर अपने पैर में कुल्हाड़ी मार ली है। जनता के बीच भूपेश ऐसे राजनेता बन गए है जो सामने वाले को चारों खाने चित करने की क्षमता रखते हैं। अब तो हिमाचल वाले भी कह रहे है छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा फिर क्यों भाजपाई उस भरोसे में अपना समोसा बना रहे है।
सिंहदेव-मूणत ढूंढ रहे है पेट दर्द की दवा
पूर्व मंत्री और वर्तमान मंत्री ईडी की कार्रवाई को लेकर अपने-अपने दर्द की दवा तलाशते नजर आ रहे हैं। दोनों ही पार्टियों के नेता इस मामले में एक दूसरे से दवा पूछ रहे हैं। सिंहदेव ने पूछा कि ईडी भाजपा के भ्रष्ट लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं करती। वहीं मूणत पूछ रहे हैं कि भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई से कांग्रेसी मंत्रियों के पेट में क्यों दर्द हो रहा है। पूर्व मंत्री मूणत ने कहा कि-भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी-व्यापारी पर कार्रवाई हो रही है तो टीएस सिंहदेव ने पलटवार करते हुए कहा- भाजपा से जुड़े लोगों की जांच क्यों नहीं होती, ये कोई मानेगा क्या कि भाजपा के लोग भ्रष्टाचार से जुड़े नहीं है। केवल विपक्ष के लोगों की ही जांच क्यों हो रही है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए बयानों का पोस्टमार्टम कर माहौल को गरमाकर उसमें राजनीतिक रोटी सेंकने की मुहिम में मूणत का कोई जवाब नहीं है। किसी शायर ने ठीक ही लिखा है कि दूसरों पे उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबां पर झाकों यारों, ये तो राजनीति है प्यारे जब चाहे जहां डुबकी लगा लो।
मंत्री को नारियल नहीं वोट चाहिए
चंदखुरी में स्थित माता कौशल्या के मंदिर का नारियल लेने से मंत्री ने इनकार कर दिया । नारियल लेकर पहुंचे संविदा कर्मचारियों को मंत्री ने अपने बंगले से लौटा दिया, कह दिया कि समय लेकर मंत्रालय आना। मंत्री से मिलने सर्व विभागीय संविदा कर्मचारी संगठन के लोग पहुंचे हुए थे यह सभी अलग-अलग विभागों में संविदा पर काम कर रहे हैं। लंबे वक्त से कर्मचारी नियमितीकरण की मांग को लेकर आंदोलनरत थे, मंत्री से मुलाकात कर नियमितीकरण की गुहार लगा रहे हैे मगर मंत्री ने इन्हें बंगले से ही चलता कर दिया। जनता में खुसुर-फुसुर है कि आखिर कहां जाए संविदा कर्मचारी, दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय । क्योंकि ये मामला 20 सालों से लंबित होकर इतना लंबा हो गया है कि जो कर्मचारी तीस-पैंतीस साल की उम्र में काम कर रहे वो अब रिटायरमेंट से 10-5 साल पहुंच गए जहां उन्हें सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा है। कर्मचारियों के संगठनों को समझना चाहिए कि मंत्री को नारियल नहीं वोट चाहिए।
एंटी क्राइम एंड साइबर यूनिट के जवानों परीक्षा
राजधानी में डकैती, लूट, चोरी और हत्या जैसे दर्जनभर से ज्यादा ब्लाइंड केस की एसएसपी प्रशांत अग्रवाल ने समीक्षा कर एंटी क्राइम एंड साइबर यूनिट के जवानों को अनसुलझे मामले पर काम करने का निर्देश दिया है। उन्होंने बीट अनुसार ब्लाइंड केस की सूची बनाकर काम करने को कहा है ताकि आरोपियों को जल्द पकड़कर केस को सुलझाया जाए। वहीं बड़े लॉ एंड ऑर्डर और वीआईपी मूवमेंट के दौरान अलर्ट रहने के लिए कहा गया है। सादी वर्दी में उन इलाकों में ड्यूटी करने का निर्देश दिया गया है। रायपुर में कई बड़ी चोरियां अब तक अनसुलझे हैं। पुलिस ने गिरोह को ट्रैस कर लिया है, लेकिन चोर पकड़े नहीं गए हैं। देवपुरी में मेडिकल कारोबारी के घर डकैती, देवेंद्र नगर में मिर्ची पाउडर झोंककर लूट, गाडिय़ों के शो रूम में चोरी, हत्या जैसे मामले पेडिंग है। इसमें पुलिस अब तक आरोपियों तक पहुंच नहीं पाई है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि कानून अपना काम कर रही है,पुलिस अपना काम कर रही है, गुंड़े-बदमाश, चोर-डकैत भी कानून और पुलिस की चूक का फायदा उठाकर अपना काम कर रहे हैं। हर कोई अपने काम में मुस्तैद है।
ताकि एडमिशन का मनरेगा चलता रहे
मेडिकल कालेजों में पीजी कोर्स में एडमिशन पूरा हो चुका है, दो निजी मेडिकल कॉलेजों में संचालित पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स की फाइनल फीस तय नहीं हो सकी है। फीस विनियामक कमेटी की लेटलतीफी से छात्रों की परेशानी बढ़ गई है। कमेटी ने सालाना 5 से 8.5 लाख रुपए अंतरिम फीस ही तय की है। जबकि हाईकोर्ट के आदेश के बाद भिलाई का एक निजी कॉलेज सालाना 10 व 25 लाख रुपए वसूल कर रहा है। हालांकि हाईकोर्ट ने फीस तय करते हुए यह आदेश दिया है कि फीस विनियामक कमेटी व कॉलेज प्रबंधन आपस में चर्चा कर अंतिम फीस तय करे। अधिकारियों का दावा है कि दो निजी कॉलेज अपने आय-व्यय का ब्यौरा नहीं दे रहे हैं, जिससे पीजी की फाइनल फीस तय की जा सके। एएफआरसी व कॉलेजों के बीच विवाद के कारण कई छात्र ज्यादा फीस की वजह से एडमिशन भी नहीं ले सके। इसके बाद भी फीस तय नहीं होने से छात्र अधर में है। एडमिशन के ठीक पहले एएफआरसी ने अंतरिम फीस तय की थी, जिसे कॉलेजों ने कम बताया था। अंतरिम फीस तय करने के बाद कमेटी फाइनल फीस तय नहीं कर सकी। जनता में खुसुर-फुसुर है कि मेडिकल कालेजों की अर्थव्यवस्था फीस पर ही टिका है। क्योंकि मेडिकल कालेज वालों ने फीस तय कर देंगे तो दलालों की कमाई नहीं हो पाएगी। इसलिए मेडिकल कालेजों के प्रबंधन अपनी पालिसी पर ही काम करती है ताकि एडमिशन का मनरेगा चलता रहे।