छत्तीसगढ़

कोई नहीं है यहां बिना मुखौटे का, सभी असली चेहरे छिपाने में लगे हैं

Nilmani Pal
1 March 2024 5:53 AM GMT
कोई नहीं है यहां बिना मुखौटे का, सभी असली चेहरे छिपाने में लगे हैं
x

ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव

लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों में जोर आजमाइश चल रही है। भाजपा के पास तो इतने उम्मीदवार हो गए हैं कि उसे पेनल बनाकर नाम की सूची बनाई है, वही सत्ता से बेदखल होने के बाद कांग्रेसी चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही मैदान छोड़ते नजर आ रहे हैं। जिन लोगों के नाम कांग्रेसी पेनल में हैं वो भी कन्नी काट रहे हंै।जबकि भाजपा में उल्टा हो रहा है। वहां दावेदारों की भीड़ ने भाजपा के दिग्गजों का सिरदर्द बढ़ा दिया है। मोदी लहर 400 पार में अपनी वैतरणी पार करने के लिए दिल्ली से लेकर बगिया तक चक्कर लगा रहे हंै। जनता में खुसुर फुसुर है कि ये तो वक्त-वक्त की बात है यारो कभी भाजपा कि टिकट पर कोई चुनाव नहीं लडऩा चाहता था, आज ऐसी स्थिति बन गई है कि कांग्रेसी टिकट की आस में भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं। मशहूर शयर राहत इंदोरी साहब ने ठीक ही कहा है कि जो अपने नहीं उन्हें मनाने में लगे है, गैरों को अपनापन दिखाने में लगे है। कोई नहीं है यहां बिना मुखौटे का, सभी असली चेहरे छिपाने में लगे हैं।

पूर्वमंत्री की मंत्राणी... सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास का नारा भाजपा ने दिया था, लेकिन फायदा कांग्रेस के पूर्वमंत्री शिव डहरिया और उनकी धर्म पत्नी ने उठाया। लेकिन सरकार जाते ही विकास विनाश में बदलते दिखने लगा, सबका साथ अब नहीं रहा तथा सबने अविश्वास दिखा दिया। नगर निगम और स्मार्ट सिटी के अधिकारी जिनके एक इशारे पर कुछ भी करने तैयार रहते थे उन्ही लोगों ने अब नजरे टेढ़ी करना शुरू कर दिया। ऊपर से पूर्व मंत्री और तेजतर्रार विधायक राजेश मूणत ने कसर पूरी कर दी। राजधानी के शताब्दी नगर में सरकारी भूमि भवन पर कब्जे का मामला विधानसभा में भाजपा विधायक राजेश मूणत ने उठाया। 2020 में बना भवन बाद में भवन की प्रस्ताव बाद में आया। एम आई सी के संकल्प के आधार पर कैसे भवन दे दिया गया। आयुक्त ने भवन हस्तांतरित कैसे किया। कार्रवाई तो इन अधिकारियों पर भी होनी चाहिए। और पूर्व मंत्री की धर्मपत्नी के एनजीओ की भी जांच होनी चाहिए कि उन्होंने जनता की क्या सेवा किया जनता को क्या फायदा मिला किस बिना पर उन्हें सामुदायिक भवन दिया गया। जनता में खुसुर फुसुर है की यह स्वहित था या जनहित ये देखना तो अधिकारियों और सरकार का काम है लेकिन अगर ऐसा ही चलता रहा तो आधा कार्यकाल पिछली सरकार की गलती ढूंढने में बीत जायेगा, सबका विकास सबका साथ सबका विश्वास कैसे होगा। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में भगदड़ लोकसभा चुनाव के मद्देनजर छत्तीसगढ़ से लेकर मध्यप्रदेश तक कांग्रेस में भगदड़ मची हुई है।

मध्यप्रदेश में तो कमलनाथ जाते-जाते रूक गए, लेकिन छत्तीसगढ़ में तो जिन नेताओं के भरोसे कांग्रेस लोकसभा चुनाव में उतरने जा रही है वो ही मैदान छोड़कर पल्ला मार रहे है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के सवाल के जवाब में सीएम साय ने ठीक ही कहा था कि यदि आप लोग पांच साल जनता की सुनी होती तो जनता आपकी बात जरूर सुनती और आप सत्ता में होते। लेकिन कांग्रेस तो कांग्रेस है भाई वो अपनी खुद की बात नहीं सुनती तो जनता की बात कैसे सुनती। अब जो लोग जनता की सुन रहे कांग्रेसी उनके साथ जुड़ते जा रहे है। शकुन को सुकून राजश्री सद्भावना समिति के शताब्दी नगर में सरकारी सामुदायिक भवन में कब्जे के मामले में हाईकोर्ट ने शकुन डहरिया को सुकून दे दी है। परसो खाली करवाने के बाद नगर निगम ने सामुदायिक भवन पर ताला लगा दिया है जिस पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने स्टे देते हुए ताला खोलने के आदेश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई 13 मार्च को होगी। राजश्री सद्भावना समिति की अध्यक्ष शकुन डहरिया ने कहा कि अभी हम सामुदायिक भवन का उपयोग नहीं करेंगे। जब तक हाईकोर्ट का अंतिम निर्णय न आ जाए। जनता में खुसुर फुसुर है कि जितना उपयोग करना था, मंत्री पति के कार्यकाल में कर लिया गया। अब सदभावना दुर्भावना में बदल गया है तो उपयोग का सवाल ही नहीं उठता।

बेचारे पुलिस वाले...

पहुना में सीएम से मिलने पहुंचे शख्स ओएसडी के साथ गाड़ी से उतरा और सीधे सीएम के कक्ष तक पहुंच गया, वो कौन नेता और उद्योगपति हैं जो सीएम सुरक्षा को ताक में रखकर 8 पुलिस कमियों को निलंबित करा दिया है। ऐसी स्थिति रही तो कोई भी सुरक्षा को तोड़ देगा। जनता में खुसुर-फुसुर है कि पुलिस कर्मियों की भी मजबूरी थी, कि अगर ओएसडी के खास आदमी की तलाशी लेते तो ओएसडी नाराज हो जाते और निलंबन तय था, और नहीं किए तब भी 8 पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया गया। अब बेचारे पुलिस वाले करे तो करें क्या? कानून -व्यवस्था सबसे लिए एक सा होना चाहिए चाहे ओएसडी हो या उसके खास हो। चेक तो करना ही पड़ेगा। विधानसभा सत्र समय सेे पहले क्यों खत्म हो गया? विधानसभा का बजट सत्र कई मायने में सारगर्भित रहा। बजट पर तमाम सरकारी विभागों के अनुदानों पर चर्चा हुई या नहीं पर सभी लिखित सवालों का लिखित जवाब दे दिया गया। कई ऐसे वाकये भी आए जब सत्ता पक्ष और विपक्ष में तीखी नोंक-झोंक दिखाई दी। कार्यवाही के बहिष्कार के साथ बहिर्गमन भी हुआ। लेकिन बजट सत्र समय से पहले समाप्त होने पर कई नए विधायकों को समझ में नहीं आया। जनता में खुसुर फुसुर है कि माननीयों जब आप पुराने हो जाएँगे तो सदन की राजनीति समझ जाएंगे। अभी तो आपने देखा होगा कि यहां विपक्ष के बजाय सत्ता पक्ष के विधायकों के अधिक सवाल लगे थे, विपक्ष तो तमाशबीन बनकर देख रहा है। सत्ता पक्ष के विधायक ही विपक्ष की भूूमिका में थे। जनता में खुसुर -फुसुर है कि शायद इसीलिए सरकार ने अपने ही पार्टी के विधायकों के सवालों से बचने के लिए सत्र का समापन तो नहीं कर दिया।

Next Story