छत्तीसगढ़

अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में, जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरूर है...

Admin2
12 Feb 2021 5:40 AM GMT
अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में, जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरूर है...
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ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव

पिछले दिनों प्रधानमंत्री जी ने राज्यसभा में संबोधन के दौरान कहा था कि हम लोग कुछ शब्दों श्रमजीवी और बुद्धिजीवी से परिचित हैं । लेकिन मैं देख रहा हूं कि पिछले कुछ समय से इस देश में नई जमात पैदा हो गई है 'आंदोलनजीवी'। ये किसी का भी आंदोलन हो वहां पहुंच जाते हैं। जनता में खुसुर-फुसुर है कि चलो अब अच्छे दिन आने वाले है,क्योंकि अब न ये आंदोलनजीवी रहेंगे और न आंदोलन होगा। सब कुछ ठीक चलेगा। लेकिन जहां भाजपा का शासन नहीं वहां के भाजपाई परेशान है, अब हम क्या करेंगे। अगर आंदोलन करते है तो प्रधानमंत्री जी की मुखालफत होगी। अगर नहीं करते है तो सत्ता का स्वाद कैसे चखेंगे। कुल मिलाकर गैर कांग्रेसी सरकार के लिए यह एक प्रकार से तोहफा है।लेकिन भाजपाई सोच में हैं कि अब आंदोलन करे कि नहीं करें । इसी बात पर एक शायर कहता है - किसान जब मजबूर होकर मरता है तो कायर कहलाता है ,जब अपने हक के लिए लड़ता है तो आन्दोलनजीवी कहलाता है।

हर साख में उल्लू

मामला भाटागांव के पास की कालोनी का है। प्लाट खरीदते समय दो बड़े अखबार में विज्ञापन भी छपा था, लेकिन बैंक की आपत्ति नहीं आई, सर्च रिपोर्ट निकालने पर राजस्व अधिकारियों ने भी नहीं बताया कि उक्त प्लाट में लोन है।सब कुछ ओके बताया गया। जनता में खुसुर-फुसुर है कि इतनी प्रक्रिया के बाद भी गलती नहीं पकड़ में आयी तो जनता किस पर भरोसा करे ,किसके पास जाए। जिसे देखों भ्रष्टाचार में लिप्त है। किसी ने ठीक ही कहा है एक ही उल्लू काफी है बर्बादे गुलिस्ताँ को ,हर साख में उल्लू बैठा हो अंजामें गुलिस्तां क्या होगा।

उल्लू बनाने वाले पुलिस विभाग में भी

यही हाल पुलिस का भी है, आम जनता रिपोर्ट लिखाने जाए तो लिखा नहीं जाता बल्कि क्या होता है आजाद चौक पुलिस से पूछ लिया जाय हालांकि पुलिस महानिदेशक साहब ने सीधे वाट्सएप पर शिकायत मंगा कर हल भी कर रहे है। कबीले तारीफ है। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा, जनता में खुसुर फुसुर है कि सिस्टम को सुधारना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, एफआईआर लिखने में आनाकानी ना हो वर्ना में ये बाद में नौटंकी लगने लगेगा ।

दोनो पक्ष अड़े

दो माह से ऊपर हो गया किसानों को आंदोलन करते लेकिन अभी तक बात नहीं बनी है। दोनों पक्ष अड़े हुए हैं। किसान कहते हैं कि तीनों कानून वापस लेना होगा, तभी हम घर जाएंगे। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि किसी भी सूरत में कानून वापस नहीं होगा। सवाल उठता है आगे क्या होगा, जबानी जंग पूरे विश्व मे हो रही है। कोई किसानों के समर्थन में बोला तो आतंकवादी की श्रेणी में आ जाता है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि सरकार जिसे चाहे घरेलू मामला तय कर दें और जिसे चाहे बाहरी। जैसे कश्मीर से 370 हटाने के समय घरेलू सांसदों को श्रीनगर एयरपोर्ट से ही वापस भेज दिया गया, दूसरी ओर यूरोप के 27 सांसदों को स्थिति का जायजा लेने कश्मीर जाने दिया ये समझ में नही आया ये कौन सा मामला था। अब ऐसा क्या हो गया कि सरकार जिसको चाहे समर्थन करो जिसको नहीं चाहे उसका विरोध करो। किसानों का साथ दो तब आतंकवादी, देशद्रोही और विरोध में खड़े हो तो देशप्रेमी। क्या देशभक्ति की नई परिभाषा है।वर्तमान हालत को देखते हुए किसी सज्जन ने ठीक ही कहा है जो दोनों पर फिट बैठ रहा है -हमारा जीने का तरीका थोड़ा अलग है, हम उम्मीद पर नहीं अपनी जिद पर जीते हैं।

हाथी के खाने के दांत अलग दिखाने के अलग

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के सांसद और केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह का बयान आया कि अगर मैं क्षेत्र का विकास नहीं करवा पाई तो राजनीति छोड़ दूंगी। अभी हाल ही में केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी ने भी ऐसा ही बयान दिया, उन्होंने कहा कि किसानों की एक इंच भी जमीन छीनी गई तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा। जनता में खुसुर-फुसुर है कि ये संन्यास वाकई लेने वाला संन्यास है या बोलने वाला क्योकि हाथी के खाने के दांत अलग होते हैं और दिखाने के अलग। अगर ऐसा हो गया तो काफी तादात में नेता घर बैठ जाएंगे।

निगम-मंडल तिहार महोत्सव कब

भूपेश सरकार की कार्ययोजना और सांस्कृतिक धरोहरों और तीज त्योहार को लेकर शानदार सफलता के दो वर्ष पूरे कर लिए हैं। कांग्रेसियों को बस अब निगम मंडल तिहार का इंतजार है। हरेली, तीजा-पोरा, दिवाली-दशहरा, फाग के रंग में रंगकर सरकार ने जो विकास कार्य किए हैं उसकी सराहना राष्ट्रीय नीति आयोग के साथ पूरे देश में हो रही है। सरकार मड़ई मेला के साथ पेंड्रा-गोरेला-मरवाही महोत्सव के बाद मैनपाट महोत्सव मनाने जा रही है लेकिन निगम-मंडल मड़ई मेला महोत्सव कब होगा कह नहीं सकते। इसे मनाने के लिए हाईकमान से लेकर प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया के साथ मुख्यमंत्री की मुहर लगने के बाद भी निगम-मंडल मड़ई मेला की शुरूआत नहीं हो पाई है। जनता में खुसुर फुसुर है कि निगम-मंडल मंडई मेला के लिए असम, बंगाल, केरल में विधानसभा चुनाव तक इंतजार करना पड़ेगा ?

भाजपा में नेतागिरी यानी चमचागिरी

भाजपा संगठन में सब कुछ बहुत अच्छा नहीं चल रहा है। गुटबाजी अब जगजाहिर हो चुकी है। भाजयुमो में नियुक्ति को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में नाराजगी तो है ही, हाल ही में केंद्रीय विमानन मंत्री पुरी के सामने अजय चंद्राकर ने भूपेंद्र सवन्नी को कुरूद स्टाइल में समझा दिया कि मुझसे ठीक से विहेब करो नहीं तो सब चमचागिरी उतार दूंगा। प्रदेश प्रभारी की नसीहत भी भाजपा में काम नहीं कर पा रही है। एक अनुशासित पार्टी की इस तरह की दशा को लेकर कार्यकर्ता चिंतित है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो सब कुछ ठीक नहीं होगा। विधायक अजय चंद्राकर ने भाजपा दफ्तर में जिस तरह से भूपेंद्र सवन्नी की आरती उतारी उससे उनकी नाड़ी ठंड़ी तो पड़ गई है। लेकिन जो बात छुपी रहनी थी वहीं उजागर हो गई। भाजपा ने राजनीति को चमचागिरी का नाम देकर कांग्रेसियों के लिए रास्ता खोल दिया है।

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