छत्तीसगढ़

कैंसर के इलाज की उपलब्धता में मौजूद अंतर को पाटने की जरूरत - अनिल अग्रवाल

Nilmani Pal
5 Feb 2022 10:01 AM GMT
कैंसर के इलाज की उपलब्धता में मौजूद अंतर को पाटने की जरूरत - अनिल अग्रवाल
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रायपुर। मैं एक ऐसा समाज चाहता हूं जहां हर कोई कैंसर मुक्त रहे। एक ऐसा समाज जहां बच्चों को माता-पिता के बिना बड़ा नहीं होना पड़े, प्रियजनों को खोना नहीं पड़े और लोग अपना पूरा जीवन जी सकें। यह कहना है वेदांता रिसोर्सेस के चेयरमेन अनिल अग्रवाल का । विश्व कैंसर दिवस 2022 (डब्ल्यूसीडी) के मौके पर हम अभी भी इस सपने को एक वास्तविकता बना पाने से दूर हैं। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हर नौ भारतीयों में से एक अपने जीवन में एक बार इस जानलेवा बीमारी से पीडि़त हो सकता है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत में 2020 में कैंसर के 13,92,179 नए मामले सामने आए थे।

अगर हम देश में कैंसर की जांच एवं इलाज केंद्रों की उपलब्धता पर विचार करें तो अभी भी हमें बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। हमारे अधिकांश कैंसर केयर अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं और टीयर-1 शहरों में केंद्रित हैं। कैंसर को लेकर सामान्य जागरूकता की कमी और कैंसर का महंगा इलाज इस स्थिति को और भी जटिल बना देते हैं, जिस कारण से उच्च आय वाले देशों की तुलना में भारत में कैंसर से मृत्यु दर का अनुपात बहुत अधिक है।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल पर काम करना और निजी एवं गैर-लाभकारी संगठनों को इस दिशा में पहल के लिए प्रोत्साहित करना समय की मांग है। ऐसा ही एक उदाहरण रायपुर, छत्तीसगढ़ में हमारा नॉन प्रॉफिट केयर सेंटरबाल्को मेडिकल सेंटर (बीएमसी) है, जो सरकार के साथ साझेदारी में चलता है और यहां 1,01,008 से अधिक मरीजों का इलाज हुआ है, जिनमें से 60 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं और उनका इलाज विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत किया जा रहा है। यहां टेलीहेल्थ, पर्सनलाइज्ड मेडिसिन, डिजिटाइजेशन और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी उच्च तकनीकों का प्रयोग करते हुए सभी को कैंसर का सस्ता इलाज उपलब्ध कराया जाता है। यह मध्यम भारत में अपनी तरह का पहला कैंसर केयर सेंटर है। वेदांता में, हम वास्तव में कैंसर मुक्त समाज की आकांक्षा रखते हैंऔर हम इस सपने को साकार करने में मदद के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ सहयोगात्मक साझेदारी के लिए तैयार हैं। जैसे-जैसे अधिक से अधिक निजी कंपनियां जिम्मेदारी उठाएंगी और अपने क्षेत्रों में कैंसर केयर सेंटर स्थापित करेंगी, भारत में कैंसर केयर की उपलब्धता की खाई को कम करना संभव होता जाएगा।

हम इस समय एक गंभीर महामारी का सामना कर रहे हैं और इस महामारी के दौर में कैंसर के इलाज की उपलब्धता के अंतर को पाटना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य सुविधाओं की सीमित उपलब्धता पहले से ही कैंसर रोगियों के लिए एक समस्या थी और मौजूदा महामारी ने उनकी मुश्किल को और बढ़ा दिया है।

राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत में प्रति एक लाख पुरुषों पर 94.1 पुरुष और एक लाख महिलाओं पर 103.6 महिलाएं किसी न किसी प्रकार के कैंसर से प्रभावित हैं। कैंसर के 100 से अधिक प्रकार हैंऔरउनमें से सभी घातक नहीं हैं। हालांकि, भारत में मृत्यु दर अधिक है। यहां सालाना 13 लाख नए कैंसर रोगियों का पता चलता है और सालाना 8.5लाखसे अधिक रोगी इस बीमारी से जान गंवा देते हैं। वयस्कों में होने वाली मौत में 8 प्रतिशत हिस्सा कैंसर रोगियों का होता है। उच्च आय वाले देशों (एचआईसी) की तुलना में भारत में कैंसर से मृत्यु दर अनुपात बहुत अधिक है। इस मामले में यह भी कहा जाता है कि एचआईसी में जागरूकता के कारण गैर-घातक कैंसर के मामले भी बड़ी संख्या में जांच के दायरे में आ जाते हैं। इसके अलावा भी मृत्यु दर अधिक होने के कई कारण हैं। लोगों में कैंसर के प्रति जागरूकता की कमी के साथ-साथ संसाधनों का खराब बंटवारा, स्वास्थ्य सेवा का अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, मरीजों के घरों के आसपास कैंसर केयर की उपलब्धता न होना और कैंसर के उपचार की सीमित क्षमता भी यहां उच्च मृत्यु दर का कारण है।

उच्च मृत्यु दर के पीछे एक और कारण इलाज का डर। यह पाया गया है कि कई रोगी कैंसर से संबंधित ऑन्कोलॉजिकल उपचार प्रक्रियाओं से घबराते हैं। कई लोग कीमोथेरेपी के दर्द से डरते हैंऔर कुछ लोगों को सर्जरी से डर लगता है। मरीजों को बीमारी से डरना चाहिए न कि इलाज से; उन्हें बीमारी के दुष्प्रभावों से अवगत कराना चाहिए और बताना चाहिए कि इलाज से इन दुष्प्रभावों को कैसे कम किया जा सकता है।

कहावत कभी नहीं से देर भली, यह अन्य मामलों में तो सही हो सकता है, लेकिन कैंसर के मामले में यह सही नहीं है। कैंसर के मामले में जितनी जल्दी जांच हो जाए, मौत का खतरा उतना कम होता है। महामारी विज्ञान के अध्ययन से पता चलता है कि कैंसर के 70 से 90 प्रतिशत मामले पर्यावरण संबंधी कारणों से जुड़े हैं। इनमें जीवनशैली से जुड़े कारक सबसे महत्वपूर्ण हैं। कैंसर का कारण बनने वाले इन कारकों की पहचान और इनमें सुधार से कैंसर की रोकथाम संभव है। भारत में कैंसर नियंत्रण कार्यक्रमों के 50 साल पूरे होने के मौके पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि तंबाकू से जुड़े कैंसर के मामले पुरुषों में सभी कैंसर का 35 से 50 प्रतिशत और महिलाओं में लगभग 17 प्रतिशत हैं। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि प्राथमिक रोकथाम के माध्यम से इन कैंसर का प्रबंधन किया जा सकता हैऔर इन्हें काफी हद तक नियंत्रित करना संभव है।

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