छत्तीसगढ़

जीवन में धर्म अपनाकर ही आत्मा का कल्याण होगा

Nilmani Pal
26 Oct 2024 4:22 AM GMT
जीवन में धर्म अपनाकर ही आत्मा का कल्याण होगा
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रायपुर। श्री संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर रायपुर में जारी आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 में दीपावली पर्व प्रवचनमाला शुरू हो गई है। शुक्रवार को मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि जैन शास्त्रों अनुसार जो काल की व्यवस्था बताई गई है उसमें एक कालचक्र के 12 विभाग अर्थात आरा और 12 विभागों में से पांचवें और छठवें आरे की बात करते हुए मुनिश्री ने कहा कि परमात्मा के मोक्ष में जाने के बाद पांचवे आरे में धर्म की अत्यंत हानि होगी।

मुनिश्री ने आगे कहा कि धर्मीजनों की तकलीफ बढ़ेगी,पापी लोगों का बोलबाला होगा। पारिवारिक संबंधों में भी दरारें आएंगी, संपत्ति को लेकर जायदाद को लेकर बाप और बेटे के बीच में लड़ाइयां, भाई और भाई के बीच में लड़ाइयां होगी, एक दूसरे के सामने अदालत में जाएंगे, घर की बहु, बेटियां मर्यादाहीन बनेगी, उनके वस्त्र और पहनावा आदि आर्य समाज की शोभा को कलंक लगाएंगे। बाप और बेटी, भाई और बहन के बीच में भी मर्यादा सभर संबंध नहीं होगा। इस समय में दुष्काल का प्रभाव ज्यादा होगा। बरसात कम होगी, व्यापारी अनीति करेंगे,बच्चे मां-बाप का तिरस्कार करेंगे, पिता की हाजिरी में ही पुत्र की मृत्यु होगी,लोगों को धर्म श्रवण में रुचि नहीं होगी। साधु और सन्यासी भी घर बारी जैसे होंगे और वह भी संपत्ति आदि के मालिक बनेंगे। मंत्र आदि विद्या अपने प्रभाव नहीं दिखा सकेंगे। ऋतु चक्र अपने नियत समय अनुसार नहीं चलेगा। ठंडी में गर्मी होगी,गर्मी में बरसात होगी। बरसात भी कभी बहुत कम और कभी अत्यधिक ज्यादा होगी। इस तरह से पांचवें आरे में अंदर सुखी कम होंगे और दुखी व्यक्ति ज्यादा होंगे।

मुनिश्री ने कहा कि उसी तरह छठवे आरे में मनुष्य का आयुष्य शक्ति कद रूप सभी में हानि होगी। मात्र मछलियों का भोजन होगा। पाचन शक्ति अत्यंत कमजोर होने से वह भी पचेगी नहीं। उत्कृष्ट आयुष्य 16 वर्ष का होगा। 6 वर्ष की उम्र में लड़की मां बनेगी और जिस तरह से श्वान बहुत से बच्चों को जन्म देती है उस तरह से वह भी बहुत से बच्चों को एक साथ जन्म देगी। इस समय का मनुष्य अत्यंत दुखी होगा खूब कामासक्त होगा, क्रोधी होगा, झगड़ालू होगा,अत्यंत गर्मी और अत्यंत ठंडी के कारण दिन में और रात में निकलना उसके लिए मुश्किल होगा। गंगा और सिंधु नाम की नदी के किनारों पर बने बिलों के अंदर में मनुष्य रहेगा और संध्या के समय निकल करके अपने आहार की खोज के लिए जाएगा। इस काल में जन्मे मनुष्य प्राय: नर्क और दुर्गति में जाएंगे और इस तरह से उनके जन्म मरण की परंपरा चलेगी। परमात्मा महावीर स्वामी ने अपनी अंतिम देशना में कहा कि यदि सुखी होना हो ,सद्गति का भाजन बनना हो तो जीवन में धर्म को अपनाओ और अपनी आत्मा को कल्याण के मार्ग पर लगाओ।

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