ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव
कर्नाटक में लगभग एक सवा साल बाद विधानसभा चुनाव होना है। हिजाब विवाद चुनाव से पहले धुव्रीकरण की तैयारी तो नहीं है। कर्नाटक में हिजाब विवाद का सीधा संबंध यूपी से भी है जहाँ पर विधानसभा चुनाव चल रहा है। और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी पहले बोल चुके हैं कि यूपी चुनाव में मुद्दा 80 बनाम 20 है। यानि चुनाव को हिंदू बनाम मुस्लिम बनाने की तैयारी पहले से है। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव करीब सवाल साल बाद है, लेकिन जिस तरह से वहां पर हिजाब बनाम भगवा स्कार्फ को तूल दिया जा रहा है, उससे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी वहां पर अभी से चुनाव की तैयारी में जुट गई है। फिलहाल, कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद पहले से Óयादा गहरा गया है। याद कीजिए, सीएम योगी ने एक सवाल के जवाब में क्या कहा था हिजाब बनाम स्कार्फ विवाद में खास बात यह है कि भगवा ब्रिगेड की चाहत यूपी चुनाव को हिंदू बनाम मुस्लिम के आधार पर चुनाव कराने की है। यही वजह है कि यूपी में भाजपा का चुनावी मुद्दा 80 और 20 है, न कि विकास। ऐसा लगता है उस अजेंडे को कर्नाटक से उसे केवल हवा देने का काम हो रहा है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि नारी की नग्नता का विरोध होना चाहिए लेकिन विरोध हो रहा हिजाब का। जिस वक्त हिजाब पर विवाद किया जा रहा है यह चुनाव का वक्त है और स्कूल कालेजों में हिजाब अभी से नहीं काफी पहले से पहना जा रहा है लेकिन इसके पहले विवाद नहीं हुआ। अभी विवाद खड़ा करना राजनीति से ओतप्रोत लगती है। हिजाब विवाद का मकसद उत्तरप्रदेश और कर्णाटक सहित चुनावी प्रदेशों में सांप्रदायिक धुव्रीकरण के लिए जमीन तैयार करना है। किसी ने ठीक ही कहा है कि पर्दा तो हर धर्म में है, फिर इस परदे की कैसी लड़ाई। हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, हम सब भाई-भाई।
कका के छग मॉडल ने दौड़ लगाई यूपी में
कांग्रेस महासचिव और यूपी की चुनाव प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी में काग्रेस का घोषणा पत्र जारी की है जिसमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ मॉडल को प्रमुखता से स्थान दिया गया है। छत्तीसगढ़ में शत-प्रतिशत सफलता देनी वाली गोधन न्याय योजना, नरवा,गरवा,घुरवा, बाड़ी के साथ किसानों की कर्जमाफी,राजीव गांधी कृषि मजदूर न्याय योजना को घोषणा पत्र में शामिल किया है। इन योजनाओं से सीएम भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की आर्थिक विकास की दिशा और दशा बदल दी है। गरीब, किसान, मजदूरों ने महामारी के संकटकाल में भी भूपेश सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर आर्थिक समृद्धि को बरकरार रखा, जबकि इस दौरान पूरे देश में आर्थिक मंदी छाई थी, जिसका प्रभाव छत्तीसगढ़ के कर्मवीरों,किसानों पर बिलकुल ही नहीं पडऩे दिया। लगातार मेहनत कर सरकारी योजना को क्रियान्वयन करने में जी-जान से जुटकर प्रदेश को आर्थिक मंदी की चपेट से बचा लिया। अब यह योजना यूपी में कांग्रेस की सरकार बनने पर लागू होगी। सीएम भूपेश यूपी के मुख्य आब्र्जवर भी है, इस लिहाज से देखा जाय तो हाईकमान ने भूपेश बघेल के कामकाज पर मुहर लगाकर अग्रिम पंक्ति में प्रदेश को खड़े कर दिया है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि कका के योजना के यूपी में दौड़ लगाने के पीछे सीएम भूपेश बघले की मेहनत है, जो प्रदेश के गरीब, किसान, मजदूर के हित में काम कर रही है और जिसकी मानिटरिंग खुद सीएम भूपेश कर रहे है। भूपेश हर वर्ग को साथ लेकर चल रहे है इस कारण यह योजना सफल हुई है।
काले झंड़े की राजनीति वाली नई जमीन तैयार
राजनीति में हमेशा ट्रेंड बदलते रहते है। इस बार इसकी शुरूआत छत्तीसगढ से शुरू हो गई है। जिसका अनुसरण दोनों प्रमुख पार्टी करने में जुट गई है। काले झंडे की राजनीति ने नेताओं की जुबान भी काली कर दी है। दोनों तरफ से अपशब्दों को लेकर तलवार खींच गई है। वहीं पुलिस बेचारगी की शिकार हो गई है। आखिर नौकरी जो करनी है। नेता तो आते-जाते रहते है लेकिन अधिकारी तो कम से कम 35 साल तक सेवा देते हैं। ऐसे में प्रोटोकाल के दौरान अब हर बार नेताओं को काले झंडे का सामना करना पड़ेगा। अब प्रदेश में राजनीति का स्तर हल्केपन में आ गया है। भाजपा-कांग्रेस के नेता नई अवसरवादी वाली राजनीति में संलिप्त होकर राजनीति के मापदंड को खंडित कर दिया है। काले झंडे की जमीन पर क्या होगा कल्पना से परे है। क्योंकि काली मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है लेकिन काले झंडे की जमीन गुंडई-दबंगई और शासन-प्रशासन के दुरुपयोग के साथ आरोप-प्रत्यारोप की फसल ही पैदा करेगी। प्रदेश की राजनीति का यह काला अध्याय है जहां सिर्फ कालापन और कालिख ही दिखाई दे रहा है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि राजनीति के हमाम में सभी बराबर है। ये लड़ाई वर्चस्व की है न की पार्टी कि अपनी नेता गिरी चमकाने के लिए नेता इस तरह के फसाद करते रहते है। यह तो शुरूआत है इसका तो अभी चुनावी माहौल में और स्तर गिरता नजर आने वाला है। जनता तो सिर्फ मूक दर्शक बनकर तमाशा देखेगी और साड़ी-साटी और दारू लेकर नेता को चुनेगा।
कांग्रेस-भाजपा मिलकर बना रहे सरकार
राजनीति में कोई पुस्तैनी विरोधी या दुश्मन कोई नहीं होता नहीं होता, समय परिस्थिति के अनुसार राजनीतिक नफा-नुकसान के हिसाब से दोस्ती-दुश्मनी की परिभाषा बदलते रहती है । दो पारंपरिक राजनीतिक विचारधारा वाली भाजपा और कांग्रेस मिलकर मेघालय में एक गठबंधन में है। अंपरीन लिंगदोह के नेतृत्व में मेगालय में सभी पांच कांग्रेसी विधायकों ने मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की नेसनल पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन एमडीए को समर्थन दिया है। इस गठबंधन में भाजपा भी भागीदार है,भाजपा विधायक सोनबोर शुल्लाई मेगालय सरकार में मंत्री भी है,मेघालय के सियासी पर तृणमूल कांग्रेस की इकाई ने कहा कि सत्ता के भूखे लोगों ने हाथ मिलाकर कोनराड संगमा को समर्थन दिया है। जबकि ये दोनों पारंपरिक विरोधी रहे है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि कॉस केंद्र में भी ऐसा कुछ हो जिससे कांग्रेस और भाजपा को मेघालय से प्रेरणा मिले और केंद्र में मोदी और राहुल की सरकार साथ चले। मेघालय की सरकार देश के लिए ऐतिहासिक-सौगात होगी जिसमें दो विपरीत ध्रुव एकसाथ सरकार में होंगे। जनता में खुसुर-फुसुर है कि नेताओं को सिर्फ कुर्सी चाहिए, उसके लिए कुछ भी किया जा सकता है। दोस्ती-दुश्मनी से नहीं तालमेल के पेट्रोल से चलती है राजनीति। इसमें ये नहीं देखा जाता है कि कौन किसका प्रतिव्दंदी है कौन किसका समर्थक है। ये राजनीति की असल परिभाषा?
रामरहीम को जमानत और आजम की सुनवाई तक नहीं
सुप्रीम कोर्ट से समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया है। उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने का निदेश दिया है। वहीं दुष्कर्म के आरोपी बाबा राम रहीम को 23 दिन के पेरोल पर बाहर आ चुका है, केंद्र सरकार ने राम रहीम पर रहमी बरती है। जबकि आजम खान दुष्कर्म के आरोपी नहीं होने के बाद भी उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई नहीं हो रही है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि भैया राम रहीम के साथ राम जुड़ा है,जबकि आजम खान के साथ ऐसा कुछ नहीं है, जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली सरकार चल रही है। सरकार जिसको चाहे छोड़े जिसको चाहे हांक सकती है। बाबा हो या बबुआ सभी को न्याय का अधिकार है।
चर्चा में रिकमेंडेट पद्म पुरस्कार
गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले पद्म सम्मानों की घोषणा की गई। कई सरकारों में इन पुरस्कारों की घोषणा को लेकर सवाल उठते रहे हैं। मोदी सरकार में 2022 के गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले यह घोषणा हुई तो भी कुछ नामों को लेकर काफ़ी चर्चा हुई। पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने पद्म भूषण सम्मान लेने से इनकार कर दिया। सीपीएम के प्रमुख रहे और केरल के मुख्यमंत्री रहे ईएमएस नंबूदरीपाद ने भी 1992 में पद्म विभूषण लेने से इनकार कर दिया था। इसके पहले भारतीय मूल के अमेरिकी होटल व्यवसायी संत सिंह चटवाल को भी दिया गया था जिनके नाम पर भाजपा ने काफी विरोध किया था। गायिका संध्या मुखर्जी ने भी पद्मश्री सम्मान लेने से इनकार कर दिया था। 25 जनवरी को 128 हस्तियों को सम्मान की घोषणा की गई थी, जिन्होंने लेने से इनकार किया उनकी तो चर्चा है ही लेकिन जिन्होंने स्वीकार किया, उनकी भी खूब चर्चा हुई। सीनियर कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश की एक टिप्पणी को लेकर भी काफ़ी चर्चा है। जयराम रमेश ने बुद्धदेब भट्टाचार्य के पद्म भूषण लेने की तारीफ़ करते हुए कहा, उन्होंने सही फ़ैसला लिया। वह आज़ाद रहना चाहते हैं न कि ग़ुलाम। कहा जा रहा है कि जयराम रमेश ने इस टिप्पणी के ज़रिए गुलाम नबी आज़ाद पर तंज़ किया था। जनता में खुसुर-फुसुर है कि सम्मान भी अब चेहरा देखकर और अपने राजनीतिक फायदे के लिए दिए जाने लगे हैं।