छत्तीसगढ़

भगवान जगन्नाथ को स्नान कराने की परंपरा 14 जून से, जानिए किस दिन शुरू होगी रथ यात्रा

Nilmani Pal
12 Jun 2022 4:32 AM GMT
भगवान जगन्नाथ को स्नान कराने की परंपरा 14 जून से, जानिए किस दिन शुरू होगी रथ यात्रा
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रायपुर: चार धाम में से एक जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ को स्नान कराने की परंपरा ज्येष्ठ पूर्णिमा पर निभाई जाती है। स्नान के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं। भगवान जल्द स्वस्थ हों इसलिए काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाती है। इस दौरान मंदिर के पट 15 दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैंं। पुरी की तर्ज पर रायपुर के जगन्नाथ मंदिरों में भी ज्येष्ठ स्नान और भगवान के बीमार होने तथा काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाएगी। इस साल स्नान परंपरा 14 जून को निभाएंगे।

तीन प्रसिद्ध मंदिरों में श्रद्धालु कराएंगे स्नान
पुरानी बस्ती स्थित 400 साल से अधिक पुराने जगन्नाथ मंदिर के महंत रामसुंदर दास बताते हैं कि मंदिर में ज्येष्ठ पूर्णिमा पर स्नान कराने की परंपरा मंदिर के स्थापना समय से चली आ रही है। प्राचीन प्रतिमाओं को गर्भगृह से बाहर मंदिर के प्रांगण में रखते हैं। पुजारीगण भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा को मंदिर की बावली के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कराते हैंं इसके बाद श्रद्धालु भी भगवान को स्नान कराते हैं। अभिषेक के पश्चात प्रतिमा को पुन: गर्भगृह ले जाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ज्यादा स्नान करने से भगवान बीमार हो जाते हैं, भगवान को विश्राम देने के लिए 15 दिनों के लिए मंदिर के पट को बंद कर दिया जाता है।
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इस साल 14 जून की शाम पूर्णिमा तिथि पर मंदिर के पट बंद होने के पश्चात भगवान को स्वस्थ करने के लिए काढ़ा का भोग अर्पित किया जाएगा। श्रद्धालुओं को प्रतिमाओं का दर्शन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। भगवान का हाल पूछने के लिए आने वाले श्रद्धालु बाहर से मत्था टेककर जाएंगे।
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गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर सेवा समिति के प्रमुख पुरंदर मिश्रा बताते हैं कि 14 जून को पूर्णिमा स्नान के पश्चात शाम को महाआरती की जाएगी। मंदिर के पट बंद होने के बाद श्रद्धालु मंदिर आएंगे लेकिन बाहर से ही मत्था टेककर वापस जाएंगे। प्रसिद्ध पुरी के मंदिर की तर्ज पर ही पूजन, अभिषेक, आरती की जाती है। इसी तरह सदरबाजार स्थित 150 साल पुराने जगन्नाथ मंदिर के अलावा गुढ़ियारी, लिलि चौक, बांसपारा, आमापारा, अश्विनी नगर के छोटे मंदिरों में भी स्नान परंपरा निभाएंगे।
भगवान के बीमार होने के बाद जिस काढ़े का भोग लगाया जाता है, उस काढ़े का प्रसाद लेने के लिए काफी लोग पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान को अर्पित काढ़े काे प्रसाद रूप में ग्रहण करने से शरीर स्वस्थ रहता है। बीमारी ठीक होती है।
15 दिनों बाद मंदिर के पट खुलने पर तीन दिवसीय आयोजन होगा। भगवान के नेत्र खोलने की रस्म निभाई जाएगी। स्वस्थ होने के बाद भगवान जगन्नाथ इस साल एक जुलाई को अपनी प्रजा से मिलने के लिए नगर भ्रमण पर निकलेंगे। उनके साथ बहन सुभद्रा और भैय्या बलदेव भी रथ पर विराजित होंगे। मंदिर से भगवान अपनी मौसी के घर विश्राम करने जाएंगे। भगवान जहां विश्राम करेंगे उसे गुंडिचा मंदिर कहा जाता है।
भगवान जगन्नाथ 10 दिनों के पश्चात अपनी मौसी के घर से वापस आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन लौटेंगे। इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं, इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम करेंगे और चातुर्मास का प्रारंभ हो जाएगा।
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