छत्तीसगढ़

रूतबा तो खामोशी का होता है, अल्फाज़ का क्या वो बदल जाते हैं हालात देखकर

Nilmani Pal
10 Sep 2021 5:49 AM GMT
रूतबा तो खामोशी का होता है, अल्फाज़ का क्या वो बदल जाते हैं हालात देखकर
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जाकिर घुरसेना/कैलाश यादव

छत्तीसगढ़ में तीज-त्योहारों का अपना अलग ही रंग है। पिछले दिनों चल रहे राजनीतिक तूफान में गतिरोध की शांति और सुकून का आठवां आश्चर्य राजनीतिक प्रेक्षकों को देखने को मिला। ढाई-ढाई साल की सत्ता को लेकर राजधानी रायपुर से दिल्ली तक शक्ति प्रदर्शन और एक पक्ष को हाईकमान का भरोसा ने निश्चिंत कर रखा है। पोला के मौके पर सीएम निवास में आयोजित बहनों का मायका कार्यक्रम में भाइयों ने भी जमकर त्योहार मनाकर पुराने सभी गिले शिकवे को दूर कर दिए। जहां राजनीतिक बवाल मचाने वालों को ढाई-ढाई साल के एपिसोड को और खींचना था, सीएम निवास में जो दृश्य देखा उसके वहीं विराम देना पड़ा। बहनों ने भाइयों के साथ जमकर थिरके और सेल्फी जोन में नंदी की जगह लोग बाबा के साथ सेल्फी लेने के लिए उतावले नजर आए। इससे पूरे देश सहित छत्तीसगढ़ में यहीं संदेश गया कि नो ढाई-ढाई, हम है भाई-भाई। जय हो छत्तीसगढ़ महतारी...बनी रहे जय-वीरू की जोड़ी।

भूपेश सरकार ह बने काम करत हे

वैष्णोमाता के दरबार में भूपेश सरकार को सौ में से सौ नंबर मिल गया। दरअसल कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी इस समय वैष्णोमाता के दर्शन दौरे पर है। इस दौरान पदयात्रा करते हुए राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के एक परिवार जो वैष्णोदेवी दर्शन के लिए आया था, उससे मुलाकात कर छत्तीसगढ़ का हालचाल जाना। इस परिवार ने भूपेश सरकार के गुणगान करते हुए सरकार के लिए संजीवनी बूटी के रूप में काम किया। राजनीतिक उठापटक के बीच राहुल गांधी को इस परिवार ने बताया कि भूपेश भैया है तो भरोसा है, बने काम करते हे सरकार ह, मय तो गोबर बेच के 86 हजार कमाए हवव, एक स्कूटी बिसाय के साथ माता के दर्शन करे बर अपन परिवार संग आए हवं।

ममता के आगे सब फीके

पश्चिम बंगाल में 30 सिंतबर को उपचुनाव है, जहां से मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी उपचुनाव लडऩे जा रही है। उनके खिलाफ भाजपा को बड़े प्रत्याशी नहीं मिल रहे है। जो थे, वो चुनाव लडऩे से इंकार कर चुके है। क्योंकि उनको डर था कि कहीं उनका जमानत जब्त न हो जाए। चुनाव घोषणा से पहले भाजपा शुभेंदु अधिकारी को ममता के सामने उतारने की घोषणा की थी, लेकिन अब शुभेंदु सहित बड़े बड़े नेताओं ने चुनाव लडऩे से इंकार कर दिया है। क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में पीएम सहित केंद्र के सारे मंत्री और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार में आए तो तब चुनाव परिणाम अपेक्षित न होकर ममतामयी परिणाम देखकर अब उपचुनाव लडऩे वाले सहम गए है। अंत में प्रियंका एंटली जो पिछला विधानसभा चुनाव टीएमसी के मामूली कार्यकर्ता से हार गई थी, उन्हें ममता दीदी को पटकनी देने मैदान में उतारा गया है।

अमृत महोत्सव विष महोत्सव न बन जाए

मोदी सरकार व्दारा पिछले दिनों आजादी का अमृत महोत्सव मनाया गया। जिस प्रकार से पोस्टर बनाया गया था, उसमें जिन नेताओं को शामिल किया गया था, देख कर लगने लगा था कि अमृत महोत्सव विष महोत्सव न बन जाए। क्योंकि जिस प्रकार से अमृत महोत्सव के पोस्टर में इन चेहरों को जगह दी गई थी जिन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी, जबकि आजादी की लड़ाई में तकरीबन 10 साल जेल में गुजारने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री जावाहर लाल नेहरू की फोटो नहीं थी, देखा जाए तो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाले नेताओं के बीच इतनी दूरियां नहीं रही जितनी दूरियां आज के सरकार ने कर दी। जबकि सारा देश जानता है कि आजादी की लड़ाई में माफी नामे का भी अहम योगदान था। अंग्रेजों व्दारा लिखे इतिहास को कैसे बदल सकते है।

अब न्याय की गुहार लगाने का क्या फयदा

चुनाव में ध्रुवीकरण कैसे किया जाता ये तो कोई देश के राजनीतिक पार्टियों से सीखे। मध्यप्रदेश हो उत्तरप्रदेश हो या देश का अन्य हिस्सा हो चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई और राजनीतिक पार्टियां अपना चोला उतार कर असली चोला पहनकर ध्रुवीकरण कर चुनाव जीतने पर ही फोकस करते हैं। अभी देखा जा रहा है कि उत्तरप्रदेश के आसन्न चुनाव के ठीक पहले पूरे उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यो में सांप्रदायिक तनाव भड़काने की अनवरत कोशिश करते नजऱ आ रहे हैं। पडोसी प्रदेश मध्यप्रदेश में एक फेरीवाले हो या एक कबाड़ी हो या फिर नीमच के एक आदिवासी युवक कान्हा से मारपीट कर ट्रक से घसीट कर जान लेने की घटना हो सब इस बात की ओर ही इंगित करता है। जब पूरा देश भगवान श्रीकृष्ण के भावरस में सराबोर था उसी दिन नीमच में एक आदिवासी युवक कान्हा उफऱ् कन्हैयालाल के साथ दबंगो ने बर्बरता की सारी हदें पार कर रहे थे। वह घटना रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। अब जब पीडि़त की जान चली गई तो उसके लिए न्याय का गुहार लगाने का क्या फायदा।

भाजपा का चिंता शिविर

पिछले सप्ताह भाजपा का चिंतन शिविर बस्तर में हुआ। भाजपा के छत्तीसगढ़ प्रभारी डी पुरंदेश्वरी चिंतन शिविर में बोल गईं कि यदि छत्तीसगढ़ में भाजपा कार्यकत्र्ता पलटकर थूक दें तो भूपेश बघेल की सरकार बह जाएगी। हालांकि वहां उपस्थित नेता और कार्यकर्ताओं ने खूब तालियां बजाईं। लेकिन बाद में उनके माथे पर पसीना भी निकल आया की प्रभारी ने क्या कह दिया। जनता में खुसुर फुसुर है कि भाजपा के छत्तीसगढ़ प्रभारी ने भाजपा के चिंतन शिविर को चिंता शिविर बना दिया क्योकि इस प्रकार की बात करके पूरे छत्तीसगढ़ के लोगो की बेज्जती की है, क्या कांग्रेस के कार्यकत्र्ता नेता मंत्री छत्तीसगढिय़ा नहीं है। एक छत्तीसगढिय़ा दूसरे छत्तीसगढिय़ा के मुँह पर कैसे थूकेगा समझ नहीं आ रहा है। जो भी हो फिलहाल हर नेता हाथ में थूकदान लिए नजर आ रहे है और एक दूसरे को गिफ्ट भी कर रहे है।

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