छत्तीसगढ़

जिस सिम्त की हवा है उसी सिम्त चल पड़े, जब कुछ न हो सका तो...

Nilmani Pal
1 April 2022 5:23 AM GMT
जिस सिम्त की हवा है उसी सिम्त चल पड़े, जब कुछ न हो सका तो...
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जाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव

किसी ने ठीक ही कहा है जिस सिम्त की हवा है उसी सिम्त चल पड़े, जब कुछ न हो सका तो यही फैसला किया। लेकिन पंजाब के नए मुख्यमंत्री जी ने तो हवा का सिम्त ही बदल दिया। शपथ लेते ही ऐसा काम कर दिखाया जो कोई नहीं कर पाया। जैसा कि विधायक को एक कार्यकाल के लिए 75,000 रुपये की पेंशन मिलती है। इसके बाद आगे के प्रत्येक कार्यकाल के लिए अतिरिक्त 66 प्रतिशत पेंशन राशि मिलती है। उन्होंने कहा कि राज्य में पूर्व विधायक भले ही पांच बार या 10 बार चुनाव जीते हों, उन्हें अब सिर्फ़ एक कार्यकाल के लिए पेंशन मिलेगी। हज़ारों करोड़ रुपये जो विधायक पेंशन पर ख़र्च किए जा रहे थे, उसका इस्तेमाल पंजाब के लोगों के कल्याण के लिए किया जाएगा। शाबाश मान जी। इसी तरह देश के 28 राज्यों के मुख्यमंत्री भी कड़े निर्णय लेकर अपने प्रदेश को कर्ज से उबार सकते है। इस तरह से पंजाब में विधायकों को प्रत्येक कार्यकाल के लिए पेंशन मिलने की प्रथा समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि कई सांसदों को भी विधायक रहने के लिए पेंशन मिल रही है। यह आश्चर्यजनक है और देश के काफी लोगों को यह मालूम भी नहीं है कि तीन बार, चार बार या पांच बार जीतने वाले कई विधायकों को और फिर चुनाव हार जाने वाले या चुनाव लडऩे के लिए टिकट नहीं मिलने के बाद उन्हें प्रति माह लाखों रुपये की पेंशन मिलती है। किसी को 3.50 लाख रुपये, किसी को 4.50 लाख रुपये और किसी को 5.25 लाख रुपये की पेंशन मिलती है। इसका सरकारी खजाने पर करोड़ों रुपये का वित्तीय बोझ पड़ता है। काश ऐसा फैसला देश के अरबपति विधायक और सांसद भी लेते। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से भी उम्मीद है कि वे भी सांसदों और विधायकों को ऐसा करने की सलाह देंगे ताकि हजारों करोड़ रूपये देश के खजाने से जाने से बच जाये। हरियाणा ने कुछ साल पहले पूर्व विधायकों के लिए कई पेंशन खत्म कर दी थी। पंजाब में अमरिंदर सिंह की सरकार ने भी ऐसा करने की सोची थी जिसे अमली जमा पहनाने के पहले ही वे सत्ता से बाहर हो गए। पंजाब में आठ साल में पूर्व सांसदों के पेंशन पर लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च हो गए है ना चौकाने वाली बात।

कश्मीरी पंडितों को क्या मिला

फिल्म कश्मीर फाइल्स आई हिट भी हुई। कई राज्य सरकारों ने टेक्स फ्र्री कर दी। प्रधानमंत्री जी ने भी फिल्म की तारीफ कर ऐसी फिल्म बनते रहने की भी वकालत की। अब बात ये उठ रही है कि जब कश्मीरी पंडितों के साथ ज्यादती हो रही थी तब केंद्र में भाजपा के समर्थन से वीपी सिंह विराजमान थे और अटल बिहारी बाजपेयी जी के स्वीकृति से जगमोहन जी कश्मीर के राज्यपाल बने थे। उस समय कश्मीरी पंडितों का दर्द किसी को याद नहीं आया बल्कि जगमोहन जी ने तो पंडितों को जाने के लिए वाहनों का भी इंतजाम किया। पिछले आठ साल से मोदी जी प्रधानमंत्री हैं उनको कश्मीरी पंडितों के हित में कुछ ठोस काम करना था और सुरक्षा की गारंटी देना था, जिससे वे वापस कश्मीर चले जाते, सिर्फ फिल्म का प्रचार प्रसार से ही पंडितों के समस्या का हल निकल जायेगा? उनके वापसी का रास्ता खुल जायेगा? ऐसा नहीं है। जनता में खुसुर फुसुर है कि फिल्म की तारीफ के बजाये उन लोगों के हक़ में काम करें जो घर से बेघर हो चुके हैं। फिल्म से कश्मीरी पंडि़तों को फायदा नहीं हुआ नजर आता है लेकिन ये जरूर नजर आ रहा है कि राजनीतिक पार्टी जमकर फायदा उठा रहे है। फिल्म निर्माता अग्निहोत्री ने जितनी कमाई की है उसका एक चौथाई कश्मीरी पंडि़तों के हित में लगा दे तो फिल्म बनाना सार्थक हो जाएगा।

किरायेदारों का वेरिफिकेशन

रायपुर पुलिस पिछले कई सालों से किरायेदारों के वेरिफिकेशन अभियान चला रही है ताकि आसामाजिक तत्व धरे जायें। लेकिन पुलिस का ये अभियान फेल होता नजऱ आ रहा है। यानी सब कागजों में हो रहा है। तभी तो एक हत्यारा बिहार से रायपुर आकर नौकरी करने लगे और पुलिस को भनक तक नहीं लगी। वो भी प्रदेश के एक आईएएस के घर रसोइया बनकर। आज एक हत्यारे की आईएएस के घर तक एंट्री हो गई कल मंत्री और मुख्यमंत्री के घर तक एंट्री हो जाये तो आश्चर्य नहीं होगा। पुलिस हत्यारे को लेकर रिमांड पर बिहार तो ले गई लेकिन उसको आईएएस के घर नौकरी पर किसने लगवाया इसकी भी खोजबीन होनी चाहिए। सरकार को भी चाहिए इसकी जाँच गंभीरता से करवाए और छत्तीसगढिय़ों को संभावित खतरे से बचाये।

धरनास्थल बुढ़ापे से जवानी की ओर

राजधानी में सरकारी कर्मियों की कर्मभूमि बूढ़ातालाब किनारे से फुंडहर में नया धरनास्थल बनाने की कवायद तेज हो गई है। बढ़ते आबादी और वाहनों के दबाव के चलते पीक आवर्स में 10 से 6 बजे तक रेलमपेल मचा रहता है वहीं यदि इस दौरान कोई धरना प्रदर्शन हो रहा है तो राहगीरों और वाहन चालकों को जाम झेलना ही पड़ता है। रोज-रोज के जाम से मुक्ति के लिए सामाजिक संगठनों ने धरना स्थल बदलने की मांग की थी, जिसकी कवायद शुरू होने के साथ सर्वे भी हो चुका है। फुंडहर नया धरनास्थल बन सकता है। जनता में खुसुर-फुसर है कि बूढ़ातालाब का धरनास्थल वाकई बूढ़ा हो चुका था, अब फिर से फुंडहर में जवान हो जाएगा। क्योंकि अब तो पुरानी पेंशन नीति से पेंशन मिलना शुरू हो जाएगा। बूढ़ातालाब धरना स्थल ने बूढ़ापे का सहारा दे दिया है अब कोई चिंता फिकर नहीं है। जय हो कका।

नए वित्तीय वर्ष में उपभोक्ताओं को लग सकता है झटका

विद्युत नियामक आयोग नए टैरिफ की घोषणा अप्रैल के पहले सप्ताह में कर सकती है। पिछली बार की तरह इस बार सभी श्रेणियों के उपभोक्ताओं को बिजली दर में मामूली झटका लग सकता है। छग राज्य विद्युत नियामक आयोग बिजली की नई दर निर्धारित करने के लिए कवायद शुरू कर दी है। .जनता में खुसुर-फुसुर है कि पिछले साल दो 10 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, कही अगले साल चुनाव होने वाले है इस कारण जोर का झटका लगाने के बजाय धीरे से लगाने की मंशा तो नहीं है। पुराने पेंशन बहाली के साथ शिक्षक संवर्ग और पंचायत सचिवों के नियमीतिकरण के लिए समिति गठन कर रहे है तो बिजली संविदा कर्मियों के लिए कुछ कर देते तो संविदा कर्मियों के घरों में रोशनी पहुंच जाती।

जीएसटी को लेकर कका के पत्र को लेकर विपक्ष की राजनीति

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने देश के 28 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को जीएसटी के लिए एकजुट होकर केंद्र से मांग करने के लिए पत्र लिखा है जिसके कारण विपक्ष के पेट में दर्द शुरू हो गया है। विपक्ष ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया है कि भूपेश बघेल राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एकजुट कर राजनीतिक संगठन बनाकर केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ अभियान चलाना चाहते है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि जब सरकारी कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर संगठन बना सकते है तो मुख्यमंत्रियों को भी अपनी मांग केंद्र से मनवाने के लिए संगठन बना लेते है तो क्या हर्जा है। विपक्ष मुख्यमंत्री के बढ़ते कद से हमेशा परेशान हो जाते है। यदि आप सत्ता में रहते और आपको केंंद्र से जीएसटी का हिस्सा मिलना बंद रहो जाता तो आप क्या करते।

अब आधीरात तक छलकेंगे जाम

छत्तीसगढ़ सरकार की नई आबकारी नीति एक अप्रेल से लागू हो गई है। ये अप्रेलफूल वाला समाचार नहीं है, सरकार ने इस बार नीति में बदलाव करते हुए पीने-पिलाने वालों पर मेहरबान होकर रात 12 बजे तक मॉल, क्लब, रेस्टारेंट में शराब पिलाने की छूट दे दी है। आबकारी विबाग व्दार जारी अधिसूचना के मुताबिक शराब की बोतल पर लगने वाले होलोग्राम के संबंध में भी संशोधन किया गया है। कहीं ये चुनावी रणनीति का हिस्सा तो नहीं है। क्योंकि 2023 दिसंबर में विधानसभा का चुनाव होना है। तब तक शराब के शौकीनों को शराब के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। साथ ही अवैध शराब की खरीद-बिक्री पर पूरी तरह अंकुश लग जाएगा। सरकार ने अवैध शराब को रोकने का अच्छा तरीका निकाला है। कका के इस फैसले का शौकीनों ने दिल से तारीफ की है।

Nilmani Pal

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