छत्तीसगढ़

झारखंड के कद्दावर नेता का बेटा है मांगुर तस्करी का किंगपिन

Nilmani Pal
20 Jun 2022 4:24 AM GMT
झारखंड के कद्दावर नेता का बेटा है मांगुर तस्करी का किंगपिन
x
  1. मांगुर माफिया पूरे देश में तस्करी के रास्ते फैला रहे हैं जहर
  2. पाबंदी के बाद भी बेच रहे कैंसर वाहक थाई मांगुर
  3. मछली बाजार में देशी मोंगरी, हाईब्रिड या बायलर मांगुर बता कर बेच रहे
  4. मत्स्य विभाग-निगम की अनदेखी से चोरी-छिपे हो रहा पालन
  5. कम खर्च में बेहतर पालन होने से चोरी छिपे हो रहा कारोबार
  6. माना, छेरीखेड़ी, खुटेरी, लालपुर, और मंदिर हसौद के आस-पास के गांव में अवेध रुप से कर रहे पालन
  7. सड़े हुए मांस खाने से मछलियों के शरीर की वृद्धि होता है तेजी से
  8. मछलियों के अंदर घातक आरसेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड अधिक जिससे बीमारी का खतरा
  9. प्रतिबंध लगने के बाद तालाबों में मांगुर के बीज नष्ट किए गए और तालाबों को तोड़ा गया लेकिन पिछले चार सालों से अधिकारियों की मिलभगत के चलते कारवाई पर ब्रेक

थाई मांगुर मछली को 2000 में भारत सरकार ने किया प्रतिबंधित

छत्तीसीगढ़ में मांगुर माफिया का गिरोह सक्र्रिय है जो बांग्ला देश से मांगुर मछली का बीज मंगाकर किसानों को ज्यादा मुनापा का लालच देकर खेतों में तालाब बनवाकर मांगुर का उत्पादन करने के साजिश को अंजाम दे रहा है। इसमें कई बड़े राजनीतिक दल से जुड़े छुटभैया नेताओं की साझेदारी है जो अपने राजनीतिक पहुंच का फायदा उठाकर मार्केट में मांगुर की बिक्री करवा रहे है। प्रदेश की सीमा से जुड़े शहरों में मांगुर को बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है जिसे मांगुर माफिया मौंगरी के नाम से बाजार में बेच कर करोड़ों का कारोबार कर रहे है। गिरिडीह क्षेत्र में रहने वाले झारखंड के एक कद्दावर नेता का पुत्र ही मांगुर की तस्करी का किंगपिन है। जिससे दूसरे प्रदेश के मांगुर माफिया का कनेक्शन है,जो पूरे दबंगई के साथ एक राज्य से दूसरे राज्य में मोंगरी के नाम पर मांगुर की सप्लाई कर रहे है। मांगुर लदे प्रत्येक पिकअप से 12 हजार, मालवाहक ट्रक से 20 से 22 हजार और बड़े ट्रकों से 35 से 40 हजार रुपए रोड टैक्स नाम पर वसूली जाती है। प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली का वैज्ञानिक नाम क्लेरियस गेरीपाइंस है, यह मांस खाने वाली मछली होती है। मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में सरकारी तालाबों और खेतों में निजी तालाब बनाकर पाल रहे हैं। यह मछली चार माह में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है। जिसकी कीमत बाजारों 80 से 100 रुपये किलो है। मछली पालक प्रतिबंधित मछली को कमेले का गंद और मुर्गे आदि का कबाड़ डालकर पाल रहे हैं।

चमड़ा बना मांगुर का भोजन

जब से केंद्र सरकार व्दारा चमड़ा व्यवसाय पर रोक लगाया है तब से मांगुर मछली उत्पादकों की चांदी हो गई है। केंद्र सरकार का प्रतिबंध मांगुर मछली के उत्पादन की बढ़ोत्तरी का एक कारण है। देश भर लाखों के तादात पर बकरे या अन्य जानवर कटते है जिसके अपशिष्ट पदार्थ और विशेष तौर पर चमड़ा मांगुर मछली के उत्पादक कम रेट पर खरीदते है और मांगुर को परोसते है। जिससे उनके विकास में तेजी से बढ़ोतरी होती है। जो मांगुर उत्पादकों को मोटी कमाई का जरिया बना हुआ है। उनको जनता के स्वास्थ्य सो कोई लेना देना नहीं है। जबकि स्पष्ट रूप से शासन ने जन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक घोषित करते हुए इस मछली पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा रखा है। मांगुर माफिया मोटी कमाई के फेर में लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। शासन-प्रशासन को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। जनता से रिश्ता लगातर जन सरोकार को लेकर शासन प्रशासन के संज्ञान में इन बातों को लाने की कोशिश कर रहा है।

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। अगर आप मांगुर मछली खाने के शौकीन है, तो सावधान हो जाएं. क्योंकि राजधानी सहित प्रदेशभर के मछली बाजार में थाईलैंड की थाई मांगुर मछली की बेखौफ बिक्री हो रही है। मछली बाजार में यह जिंदा बिकता है। इसे हाईब्रिड मांगुर या बॉयलर मांगुर बता कर बेचा जा रहा है। जबकि थाई मांगुर की बिक्री और उत्पादन पर पूरी से रोक है। मत्स्य विभाग और निगम की अनदेखी के चलते मछली कारोबारी चोरी-छूपे दूसरे राज्यों से मंगाकर इसे देशी मोंगरी के नाम से भी बेच रहे हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2000 में थाईलैंड की थाई मांगुर नामक मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसकी बेखौफ बिक्री जारी है। इस मछली के सेवन से घातक बीमारी हो सकती है। इसे कैंसर का वाहक भी कहां जाता है। ये मछली मांसाहारी होती है, इसका पालन करने से स्थानीय मछलियों को भी क्षति पहुंचती है। साथ ही जलीय पर्यावरण और जन स्वास्थ्य को खतरे की संभावना भी रहती है।

राजधानी के कई इलाको में मांगुर का पालन

थाई मांगुर के पालन और बिक्री पर रोक के बाद भी कुछ लोग चोरी छिपे इसको न सिर्फ पाला जा रहा है, बल्कि शहर में इसकी अच्छी खासी खपत भी है। माना, छेरीखेड़ी, लालपुर सहित राजधानी के कई इलाकों में इस प्रजाति की मछलियों का पालन हो रहा है। लोगों में इसकी मांग होने के कारण मछली कारोबारी प्रतिबंध के बावजूद इसे पाल रहे हैं। वहीं राज्य का मत्स्य विभाग और नगर निगम का अमला मछली बाजार में समुचित जांच की कार्रवाई नहीं कर रहे हैं जिसके चलते मछली व्यवसायी को इसे खपाने में भी कोई बाधा नहीं झेलनी पड़ रही है। राजधानी में ओडि़सा-आंध्रप्रदेश से इसकी खेप पहुंचती है। कम खर्च में इसका पालन बेहतर होता है। यही कारण है कि इसका चोरी छिपे कारोबार किया जा रहा है। थाई मांगुर के बीज की आपूर्ति बांग्लादेश-कोलकाता से चोरी छिपे होती है।

कम खर्च में पालन, बेहतर मुनाफा

थाई मांगुर मछली को सबसेे गंदी मछलियों में शुमार किया जाता है। यह गंदगी में पलने के साथ ही सड़ा-गला मांस और गंदी चीजें खाती है। इसके बढऩे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चार महीने में ही यह तीन किलो वजन तक की हो जाती है। दूषित पानी में जहाँ दूसरी मछलियाँ ऑक्सीजन की कमी से मर जाती हैं, वहीं यह उस गंदगी में भी जिंदा रहती है। यह छोटी मछलियों सहित अन्य जलीय कीड़े-मकोड़े खाती है, जिससे तालाबों-नदियों का पर्यावरण भी खतरे में पड़ता है। इस प्रकार कम खर्च में इसका पालन होता है और यह 50 से 75 रुपए किलो तक बिक जाती है।

देशी मछलियों को कर देगी खत्म

बताया गया कि थाई मांगुर मछली छोटे से टैंक में ही बड़ी संख्या में पनप जाती हैं। इनको जानवरों का सड़ा मांस दिया जाता है। यदि टैंक ओव्हरफ्लो होगा और ये पानी के बहाव में नदी तक पहुँचेंगी, तो वहाँ की मछलियों को खा जाएँगी। यही कारण है कि एनजीटी ने इन्हें जलीय पर्यावरण के लिए खतरा मानते हुए इनके पालन और बिक्री पर रोक लगाई है।

पर्यावरण को भी मछली पहुंचाती है नुकसान

थाईलैंड में विकसित थाई मांगुर पूरी तरह से मांसाहारी मछली है। इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह जीवित रहती है। ये मछली सड़ा गला मांस, स्लॉटर हाउस का कचरा खाकर तेजी से बढ़ती है, नदियों के इको सिस्टम के लिए भी खतरा है ये मछली. ये मछली नदियों में मौजूद जलीय जीव जन्तुओं और पौधों को भी खा जाती है और इसका व्यापार भी प्रतिबंधित है। इससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है।

थाई मांगुर से कई बीमारियों का खतरा

थाईलैंड की थाई मांगुर मछली के मांस में 80 प्रतिशत लेड और आयरन पाया जाता है. इस मछली को खाने से लोगों में गंभीर बीमारी हो सकती है। थाई मांगुर मछली मांसाहारी मछली है. मांस को बड़े चाव से खाती है। सड़े हुए मांस खाने से मछलियों के शरीर की वृद्धि एवं विकास बहुत तेजी से होता है। यह मछलियां तीन माह में दो से 10 किलोग्राम वजन की हो जाती हैं। इन मछलियों के अंदर घातक हेवी मेटल्स जिसमें आरसेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड अधिक पाया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है। थाई मांगुर के द्वारा प्रमुख रूप से गंभीर बीमारियां, जिसमें हृदय संबंधी बीमारी के साथ न्यूरोलॉजिकल, यूरोलॉजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियां और कैंसर जैसी घातक बीमारी अधिक हो रही है।

देश में इन मछलियों की बिक्री पर है रोक

थाई मांगुर, बिग हेड और पाकु विदेशी नक्सल की हिंसक मांसाहारी मछलियां हैं. जिसका भारत में अवैध तरीके से प्रवेश हुआ है. भारत सरकार ने इन तीनों प्रजाति की मछलियों की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दिया है। कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और केरल उच्च न्यायालय, ग्रीन ट्रिब्यूनल के द्वारा थाई मांगुर के पालन पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया है।

लगातार कर रहे मॉनीटरिग

हालाकि मत्स्य विभाग के अधिकारियों का दावा है कि वे शहर के बड़े मछली विक्रेताओं सहित मछलियों की आपूर्ति की लगातार निगरानी करते हैं। विक्रेताओं के टैंकों का हर सप्ताह निरीक्षण किया जाता है। यह मछली कैंसर के साथ ही कई अन्य बीमारियों को जन्म देती है। जलीय पर्यावरण के साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह घातक है।

मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता में किसी खबर को छपवाने अथवा खबर को छपने से रूकवाने का अगर कोई व्यक्ति दावा करता है और इसके एवज में रकम वसूलता है तो इसकी तत्काल जानकारी अखबार प्रवंधन और पुलिस को देवें और प्रलोभन में आने से बचें। जनता से रिश्ता खबरों को लेकर कोई समझोता नहीं करता, हमारा टैग ही है-

जो दिखेगा, वो छपेगा...

Next Story