ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव
वैसे तो देश में कोरोना के चरम में रहने के बावजूद राजनीतिक दलों के कर्ताधर्ता और नेता अपने आप को रोक नहीं पाए थे और सियासी उधेड़बुन में लगे रहे। कोरोना संक्रमण के बाद भी प्रधानमंत्री सहित बड़े बड़े नेता विरोधियों को सियासी मात देने में कोई कोरकसर बाकी नहीं रखे। वो बात अलग है कि आशातीत सफलता नहीं मिल पाई। बंगाल में प्रधानमंत्री जी की प्रतिष्ठा दॉंव में लगी हुई थी उसके बावजूद मजा किरकिरा कर दिया बंगाल की जनता ने। अब खेल चला अपने अपने पाले में लेने की तो उत्तरप्रदेश के कांग्रेस के बड़े नेता के पुत्र भाजपा में चल दिए वहीँ तृणमूल से भाजपा में आये एक नेता अपने पुत्र सहित वापस अपने घर वापस चले गए। देखा जाये तो फायदे में दोनों रहे, जितिन प्रसाद मंत्री बनने वाले हैं और तृणमूल नेता मुकुल रॉय शारदा घोटाले से पाक दामन हो गए वैसे ही जैसे शरद पवार के भतीजे अजित पवार पर लगे लगभग ढाई सौ करोड़ का घोटाला के आरोप से बरी कर दिए गए क्योकि ये भी भाजपा का साथ देकर महाराष्ट्र में कुछ ही दिन के लिए भाजपा की सरकार बना दिए और वापस अपने घर कूच कर गए। बंगाल भाजपा के नेता अर्जुनसिंह ने कहा कि मुकुल रॉय भेदिया हैं उनके कारण ही पार्टी बंगाल में हारी है। वे जब तृणमूल छोड़कर भाजपा में आये थे तो सच्चे जनसेवक थे जाते ही भेदिया हो गए। जनता में खुसुर-फुसुर है कि इसे कहते हैं तू डाल डाल मै पात पात।
पार्टी बदलने में ही मलाई
कहा जा रहा है कि जितिन प्रसाद को भाजपा में लाने का मकसद ब्राम्हण विरोधी छवि की काट के लिए था। उत्तरप्रदेश में योगी सरकार की छवि ब्राम्हण विरोधी माना जा रहा है । ऐसे में किसी ब्राम्हण नेता को पार्टी में लेकर मंत्री बना दिया जाये। अब योगी सरकार में अतिशीघ्र जितिन प्रसाद और पूर्व आईएएस अरविन्द कुमार शर्मा मंत्री बनने वाले हैं । अब सवाल ये उठता है कि हर समाज से नेता आयातित कर मंत्री पद दे दिया जाये और वह अपने समाज के भलाई में लग जाये लेकिन किसान विरोधी छवि का क्या होगा? क्या किसानो का कोई समाज नहीं है? किसान तो सब समाज के हैं उनके बारे में कौन सोचेगा, उनकी कौन सुनेगा? देखा जाये तो अन्नदाताओं के मेहनत का प्रतिफल ये है कि आज देश को अनाज से कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और विटामिन उनके द्वारा उपजाए गए अनाजों से ही मिलता है। अंग्रेजो के शासन में किसानो का शोषण और आर्थिक पतन को लोग भूले नहीं हैं जो अमिट स्याही से इतिहास के पन्नो में दर्ज है। इन सबको देखते हुए सरकार को चाहिए कि अंग्रेजी हुकूमत की याद ताजा न करते हुए अन्नदाताओं को भी समाज का एक हिस्सा मानकर उनकी मांगो पर गंभीरता से विचार उनका आंदोलन ख़त्म कर सम्मानपूर्वक घर रवाना करें। इसी बात पर एक शेर याद आया कि उसी दीपक ने हाथो को जला दिया मेरे,जिस दिए को हम हवाओं से बचाया करते थे।
राजस्व की चिंता
पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक अजय चंद्राकर इन दिनों रेत माफियाओ द्वारा प्रदेश के राजस्व की हानि पहुचाये जाने को लेकर चिंतित हैं। जनता में खुसुर-फुसुर है कि ऐसा लग रहा है जैसे भाजपा शासन में रेत उत्खनन हुई ही नहीं थी।
तेल का खेल, टैक्स का तो नहीं
केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार थी तब तेल का रेट बढ़ा था उस समय बड़े बड़े भाजपा नेता सड़क पर उतर आये थे और सरकार को तेल का रेट बढऩे पर कोस रहे थे। समय बीता केंद्र की सरकार भाजपा के हाथो में आ गई। तेल का रेट फिर आसमान छूने लगी। अब बारी कांग्रेसियों की थी सो वे भी सड़क पर उतर आये और आंदोलन करने लगे तेल का रेट कम करवाने। अब दोनों दलो के नेता ये कह रहे हैं कि हमारे प्रयास या मेहनत कोई कमी तो नहीं है। सड़क से संसद की लड़ाई तो हम जनता के लिए ही लड़ रहे हैं। इन नेताओ के मेहनत से जनता को क्या फायदा हुआ? तेल का रेट तो कम नहीं हुआ उलटे बढ़ते ही चला गया। जनता में खुसुर-फुसुर है कि कहीं फ्री वेक्सिनेशन का टैक्स तो सरकार नहीं ले रही है तेल का रेट बढाकर।
हर मामले में राजनीति
कोरोना महामारी से देश की स्थिति किसी से छुपी नहीं है गरीबों की हालत खऱाब है। सरकारें जानती हैं। प्रधानमंत्री जी ने ऐसे हालात में राजनीति न कर देश के बारे में एक होकर काम करने की बात कहते हैं, जो ठीक भी है। और जब दिल्ली की केजरीवाल सरकार घर घर राशन पहुंचने की बात करती है तो इनको उसमे राशन घोटाला होने का अंदेशा नजऱ आता है और दिल्ली सरकार की इस योजना को हरी झंडी देने से मना कर देते हैं । कल तक मिलकर जंग लडऩे की बात करने वाले अब राशन पर ही जंग लडऩे उतारू हो गए। जनता में खुसुर-फुसुर है कि सरकार को जनता के हित में काम करना चाहिए न कि अपनी राजनीति चमकानी चाहिए।
खाना पानी को तरसते परिवार
पिछले दिनों एक खबर ने विचलित कर दिया। अलीगढ का एक परिवार दो माह से भूखा था पांच बच्चे और महिला समेत खाने के लिए तरस गए थे। विभिन्न एनजीओ और तथाकथित समाजसेवियों का झुंड जो दो केला व दो संतरा किसी गरीब को देते हुए दस से पंद्रह लोग फोटो खिंचवाकर मीडिया में छपने के भेजते हैं, अब ये लोग कहाँ चल दिए थे ,क्या इनको समाज में ऐसे लोग भी हैं इसकी जानकारी नहीं थी। या सिर्फ अपनी फोटो अख़बार में छपवाने को इतिश्री समझने वाले कहाँ थे । सरकार गरीबो के लिए तरह तरह की योजनाएं लाती है अधिकारियो को भी इसकी भनक नहीं लगी। क्या मुफ्त में वेतन लेते रहे। जनता में खुसुर-फुसुर है कि सभ्य समाज में ऐसे असभ्य लोगों पर कड़ी करवाई करनी चाहिए। क्या यही अच्छे दिन है।
वर्दी का धौंस काम नहीं आया
पिछले दिनों बस्तर में एक थानेदार साहब ने वर्दी का धौंस दिखाते हुए अपने स्टाफ की चप्पलो से पिटाई कर दिए। कोई कार्रवाई नहीं होने से उनका हौसला बुलंद हो गया। अब वे अवैध रूप से सागौन के फर्नीचर की तस्करी के आरोप में धरे गए। और अब एसपी ने उन्हें लाइन हाजिर कर दिया। जनता में खुसुर-फुसुर है कि हर जगह वर्दी का धौंस दिखाना काम नहीं आता