दर्द इतना ज्यादा मिला कि अब 'दुआ' बन गए हैं डॉक्टर जैनेंद्र, मानसिक रोग की पीड़ा से मिली प्रेरणा
नारायणपुर। डॉ जैनेंद्र कुमार शांडिल्य, अबूझमाड़ यानी नारायणपुर इलाके में यह नाम काफी जाना-पहचाना है। डॉ जैनेंद्र पेशे से डॉक्टर (एमबीबीएस) हैं। डॉक्टर का पेशा ही उन्होंने क्यों चुना, यह कहानी काफी प्रेरक है। डॉ जैनेंद्र ने वह दौर काफी नजदीक से देखा है, जब उनका आधा परिवार मानसिक रोग से ग्रसित था लेकिन इससे बचाव के उपाय का दूर-दूर तक पता नहीं था। विवशतावश झाड़-फूंक वाला ही इलाज चलता रहा और देखते ही देखते परिवार के कई सदस्य काल के गाल में समा गए, लेकिन डॉ जैनेंद्र कुमार के प्रयासों से अब काफी कुछ अच्छा होने लगा है।
10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाएगा और इस अवसर पर वनांचल में एक सेवाभावी डॉक्टर के प्रयास स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता की प्रेरणा दे रहे हैं। डॉ जैनेंद्र, धमतरी जिले की नगरी तहसील स्थित भीतररास गांव के निवासी हैं जो वर्तमान में नारायणपुर (अबूझमाड़) जिले से 52 किमी भीतर धनोरा गांव में चिकित्सा अधिकारी के पद पर पदस्थ हैं। अस्पताल में रोजाना चिकित्सकीय सेवा देने के साथ ही साथ डॉ जैनेंद्र स्वयं सबंधित उप स्वास्थ्य केंद्र के स्टाफ के साथ नदी-पहाड़ पार कर गांव-गांव जाकर घर-घर चिकित्सकीय सेवा पहुंचा रहें हैं। रविवार या छुट्टी के अन्य दिनों में भी सेवा देने में वह तत्पर रहते हैं। डॉ जैनेंद्र ने बताया, मेरा पूरा जीवन उन लोगों के लिए समर्पित है जो गरीब हैं-लाचार हैं। जिन्हें बेहतर स्वास्थ्य के लिए उपचार की जरुरत होती है, वह सब मेरे अपने हैं। इसकी वजह यह है कि मैंने खुद अपने निजी जीवन में बहुत परेशानियां झेली हैं। मध्यम वर्गीय परिवार से होने के कारण मैंने खेती-किसानी, मेहनत-मजदूरी कर अपनी पढ़ाई पूरी की है। मेरा पूरा परिवार मानसिक रोग से ग्रसित था। बड़े दुख के साथ मुझे यह बताना पड़ रहा है कि उस दौर में मेरे आधे परिवार को इस मानसिक रोग ने निगल लिया था। एक छोटे से गांव में स्वास्थ्य जागरुकता के अभाव में चिकित्सकीय इलाज नहीं बल्कि झाड़-फूंक ही चलता था। तब मैं बहुत छोटा था और इसका खामियाजा हम सबको भुगतना पड़ा है। मानसिक रोग के दुष्प्रभाव से पिताजी के गुजर जाने के बाद मैंने ठान लिया था कि मुझे डाक्टर ही बनना है। इसी बीच एक समय ऐसा भी था, जब एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए मेरे पास फीस तक के पैसे नहीं थे। हास्टल में रहने और खाने-पीने का खर्च वहन कर पाने का मुझमें सामर्थ्य नहीं था। तब मेरे शिक्षकों व दोस्तों ने मदद की। वह हर महीने मेरे बैंक खाते में पैसे भेजते थे। ऐसी ही परेशानियों से गुजरते हुए मैंने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की है। इसलिए मैं असहाय मरीज या किसी बीमारी के इलाज संबंधी जानकारी के अभाव में घुटते लोगों की पीड़ा को आसानी से समझ सकता हूं। मेरा प्रयास यही रहेगा कि मेरा पूरा जीवन स्वास्थ्य जागरुकता व मरीजों की सेवा में ही लगाऊं"। डॉ जैनेंद्र कहते हैं, समय पर जांच कराई जाए या उपचार शुरु कर दिए जाए तो किसी भी मानसिक बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है। लोगों को चाहिए कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े असहज लक्षण महसूस होने पर शीघ्र डॉक्टर से परामर्श लें, ताकि समय रहते रोग का उपचार किया जा सके। धनोरा पंचायत व गांव के स्थानीय लोगों अनुसार, ऐसी जगह में एक एमबीबीएस डाक्टर का आना हमारे लिए भगवान के आने के बराबर है। छोटे से गांव धनोरा में स्टाफ क्वार्टर व किराए के मकान के अभाव में भी वह धनोरा में ही रहकर लोगों की सेवा कर रहे हैं। दिन-रात कभी भी उनको याद करने पर तुरंत पहुंच जाते हैं। सभी गांव वाले डॉ जैनेंद्र के काम से बहुत खुश हैं।
छत्तीसगढ़ पर्यटन को भी बढ़ावा दे रहे हैं डॉ जैनेंद्र ...
डॉ जैनेंद्र एक डाक्टर होने के साथ ही समय निकालकर अपनी पत्नी रीता शांडिल्य के साथ यूट्यूब चैनल के माध्यम से छत्तीसगढ़ पर्यटन को भी बढ़ावा दे रहे हैं। वह दोनों यूट्यूब वीडियो बनाकर बस्तर और छत्तीसगढ़ की खूबसूरती देश-दुनिया में फैला रहे हैं, जिसे लोग काफी पसंद भी कर रहे हैं।