छत्तीसगढ़

भाजपा शासनकाल में उपकृत वेब पोर्टलों का आज भी दबदबा!

Nilmani Pal
13 Dec 2021 5:04 AM GMT
भाजपा शासनकाल में उपकृत वेब पोर्टलों का आज भी दबदबा!
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  1. फर्जी वेबपोर्टल के नए-नए पत्रकारों बने के माफिया संगठन ने अधिकरियों पर लगाया आरोप, सीबीआई-ईडी से जांच की मांग
  2. फर्जी वेब पोर्टल वालों की हिमाकत देखिए कि अब अधिकारियों के खिलाफ भी ईओडब्ल्यू-एसीबी से जांच की मांग करने लगे
  3. सूचना के अधिकार को ले कर भी वेब संगठन नाराज, जन सूचना अधिकारी पर आरोप
  4. फर्जी वेब पोर्टल के सरगना और माफिया लोग अब अपनी मांगों को ले कर हाईकोर्ट जाने की कर रहे तैयारी
  5. माफिया संगठन के द्वारा संचालित वेब पोर्टल के कर्ता धर्ता विभाग द्वारा विज्ञापन की जानकारी लेने के लिए कोई भी कीमत देने को तैयार
  6. फर्जी वेब पोर्टल संगठन आने वाले समय में सरकार और विभाग के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं
  7. इंटरनेट बना फर्जी पत्रकारों का हथियार - इंटरनेट और डिजिटल के जमाने में न्यूज वेबपोर्टल सोशल मीडिया की ही तरह तेजी से प्रचलन में आ रहा है। लोग टीवी पर न्यूज चैनल देखने और अखबार पढऩे की जगह न्यूज पोर्टल और वेबसाइट के माध्यम से मोबाइल पर खबरों का अपडेट लेना पसंद कर रहे हैं। लेकिन इसका बुरा पहलू भी सामने आ रहा है कि कोई भी 10-12 हजार में वेबसाइट बनवा कर न्यूज पोर्टल संचालित करने लगा है। न्यूज पोर्टल चलाने के लिए कोई मापदंड और पात्रता नहीें होने के कारण न्यूज पोर्टलों की बाढ़ आ गई है। पत्रकार तो पत्रकार, कारोबारी, बिल्डर के साथ अपराधी और छुटभैय्ये नेता भी न्यूज पोर्टल की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने लगे हैं। फर्जी न्यूज पोर्टल का मतलब ही अवैध वसूली न्यूज पोर्टल ब्लेकमेलिंग, वसूली यहां तक की लोगों की निजता और व्यक्तिगत जिंदगी में दखलदांजी का प्लेटफार्म बनते जा रहा है। सोशल मीडिया पर किसी के खिलाफ अपमान जनक पोस्ट करने पर संबंधित प्लेटफार्म के साथ पुलिस का साइबर सेल भी शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करता हैं लेकिन न्यूज वेबपोर्टल पर ऐसे कंटेट और पोस्ट पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं होती। शिकायत तक दर्ज नहीं की जाती है, इससे न्यूज पोर्टल संचालित करने वाले बेखौफ होकर किसी को भी अपमानित और बदनाम कर ब्लेकमेल करते हैं।

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। छत्तीसगढ में फर्जी न्यूज-पोर्टल और वेबसाइट धड़ल्ले से चल रहे हैं। सरकारी रहमो-करम से ये वेबसाइट लगातार अपना पांव पसार रहे हैं। जिन पर किसी का भी नियंत्रण नहीं है। भाजपा के शासन काल में जिस तरह ये वेब पोर्टल फल-फूल रहे थे उसी तरह आज भी ये वेबपोर्टल राजनीति और सरकार में दखल रखने वाले नेताओं और संबंधित विभाग के अधिकारियों के सहयोग से बड़ा लाभ कमा रहे हैं। संबंधित सरकारी विभाग में आज भी उन्हीं वेबसाइटों का दबदबा है जिन्हें भाजपा शासनकाल में लाखों के विज्ञापन मिला करते थे। आज भी उन्हें महीने में लाखों के विज्ञापन मिल रहे हैं। भले ही उन वेबसाइट्स के न तो काम-स्कवेयर और गुगल एनालिटिक रिपोर्ट सबमिट होते हैं और ना हि उनके व्यूवर्स की संख्या और हिट्स मानक के अनुरूप हैं। वहीं जिन वेबसाइट्स के काम-स्कवायर और गुगल एनालिटिक रिपोर्ट मानकों से भी ज्यादा और जिनके व्यूवर्स की संख्या हर महीने लाखों में है उन्हें नियम कानून बताकर सिर्फ झूनझूना पकड़ाया जाता है। खबर तो यह भी है कि कुछ वेबसाइट्स को तो महीने में चार-पांच लाख तक के विज्ञापन दिए जाते हैं। इससे वंचित और ठगे जा रहे वेबपोर्टल वाले अब आरटीआई के माध्यम से इसकी सच्चाई का पता लगाने का मन बना रहे हैं। ताकि उन्हें अपने साथ हो रहे छलावे का सच पता चल सके।

न नियम न कायदे, चल रही भर्राशाही

सरकार के संबंधित विभाग द्वारा न्यूज पोर्टल और वेबसाइट के लिए निर्धारित नियम-मापदंड तय नहीं करने से बड़ी संख्या में लोग इसे कमाई का माध्यम बना रहे हैं। फर्जी वेबपोर्टल वाले पत्रकारों ने इसे कमाई का जरिया बना लिया है। राजघानी सहित पूरे प्रदेश में बड़ी संख्या में फर्जी पत्रकारों की फौज सक्रिय हैं, जो पत्रकारिता के नाम पर बट्टा लगा रहा है। पूरे प्रदेश में फर्जी पत्रकारों का गिरोह सक्रिय है, जो सरकारी अधिकारियों और कारोबारियों को धमकी, चमकी देकर अवैध वसूली में संलग्न है। लाइजनिंग करने वाले पत्रकारों से लेकर कारोबारियों, बिल्डरों, भू-माफिया और अवैध कारोबार करने वालों ने भी अपना वेबपोर्टल बनाकर अपनी राजनीतिक पहुंच और अधिकारियों को प्रलोभन देकर सरकारी विज्ञापन के साथ अन्य लाभ दबाव व बल पूर्वक हासिल कर रहे हैं।

पत्रकारिता की आड़ में अवैध गतिविधि

न्यूज़ पोर्टल की आड़ में अपराधी, छुटभैय्ये नेता, असामाजिक गतिविधि वाले लोग अपने काले कारोबार को चला रहे है। सरकार में बैठे लोगों के नज़दीकी और संबंधों का फायदा उठा रहे है। छुटभैय्ये नेता, अवैध कारोबारियों, यहां तक बिल्डर और इंडस्ट्रलिस्ट के लिए भी यह धंधा फायदे का साबित हो रहा है। वेबपोर्टल शुरू कर पत्रकार का टैग लगाकर आसानी से अधिकारियों को धौंस दिखाकर सरकारी विज्ञापन हासिल करना, उगाही करना आसान हो गया है। वही सोशल मीडिया पर मज़ाक बनाकर रख दिया है। जिधर देखो उधर वेब मीडिया की आवश्यकता है। जिले में रिपोर्टर, कैमरामैन तो मोबाइल से ही रिपोर्टिंग करना जानते है। पत्रकारिता को आज के समय में न्यूज़ वेबपोर्टलों द्वारा मज़ाक बनाया जा रहा है। कुछ गुंडे-दादा लोग भी अपने सगे-संबंधों के नाम से फर्जी वेबपोर्टल का डोमिन खरीद कर रजिस्ट्रेशन करवा लेते है। और दो चार रिपोर्टर और कैमरामैन रखकर खुद को पत्रकार घोषित करते है।

पत्रकारिता हो रही कलंकित

मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। व्यवस्थागत कमियों को दूर करने की पहल के साथ समाज और लोकहित में शोषितों-वंचितों और पीडि़तों के लिए आवाज उठाना पत्रकारिता का धर्म है, लेकिन आज पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। मीडिया भी पूरी तरह से व्यवसायिक हो गई है। लोग इसका इस्तेमाल व्यक्तिगत फायदे के लिए करने लगे हैं। पत्रकार भी अब पत्रकार नहीं रहा। स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले जहां अखबार, न्यूज पोर्टल की आड़ में आर्थिक लाभ के रास्ते तलाशते रहते हैं वहीं बड़े-बड़े बैनर्स, अखबार और न्यूज चैनल से संबद्ध पत्रकारों को संस्थानों ने पत्रकार की जगह समाचार संकलन और लाइजनर बना दिया है। जिन्हें ये विशेषज्ञता हासिल नहीं है उनकी पत्रकारिता ही संकट में है। अब न्यूज पोर्टलों को माध्यम बनाकर कोई भी आदमी पत्रकारिता के आड़ में व्यवसाय के साथ ब्लेमेलिंग और धौंस दिखाकर वसूली जैसा कृत्य कर रहे हैं।

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